प्रयागराज महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. करोड़ों की संख्या में लोग, भक्त,साधु-संत गंगा में स्नान कर रहे हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं.
क्या आपके मन में ये सवाल आता है कि गंगा में स्नान करने के बाद गंगा में धोया पाप कहां जाता है...
ऐसा कहते हैं कि एक बार साधु ने सोचा कि सभी मनुष्य अपने पाप धोने के लिए गंगा स्नान करते हैं, तो इस तरह तो गंगा का जल भी पापी हो जाता होगा. ये सब देखकर साधु ने कठोर तप किया.
साधु के कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और साधु के सामने प्रकट हुए. तब साधु ने शिवजी से पूछा कि गंगा में धोया गया सारा पाप कहां पर जाता है.
साधु के इस प्रश्न को सुनकर शिवजी ने कहा कि यह हम गंगा जी से ही पूछ लेते हैं कि सारे पाप गंगा में धुलते हैं तो गंगा का जल भी पापी हो जाता है क्या..
शिवजी और साधु के सामने इस सवाल का जवाब देते हुए गंगा मैया ने कहा कि में सभी पापों को ले जाकर समुद्र में छोड़ देती हूं, इसलिए मैं पापी नहीं होती हूं. इसके बाद साधु और शिवजी समुद्र के पास गए.
समुद्र के पास जाने पर उन्होंने कहा कि मैं पापी कैसे हो सकता हूं. मैं सारे पापों को भाप बनाकर बादल बना देता हूं. यहां भी शिव और साधु को अपना जवाब नहीं मिला.
वे अपना सवाल लेकर बादल के पास पहुंच जाते हैं. बादल ने कहा कि मैं सारे पापों को वापस पानी बनाक धरती पर भेज देता हूं, जिससे अन्न उगता है और मनुष्य उस अन्न को खाता है.
मनुष्य जिस मानसिकता के साथ वह अन्न खाता है, उसी के अनुसार उसकी मानसिकता बन जाती है. इसलिए कहा जाता है कि जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.