Uttarkashi: पर्यावरण प्रेमी ने जिंदगी के 33 साल खपाकर खड़ा कर दिया जंगल, जानें जोशीमठ संकट के बीच क्यों सुर्खियों में आए प्रताप पोखरियाल
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Uttarkashi: पर्यावरण प्रेमी ने जिंदगी के 33 साल खपाकर खड़ा कर दिया जंगल, जानें जोशीमठ संकट के बीच क्यों सुर्खियों में आए प्रताप पोखरियाल

उत्तरकाशी के पर्यावरण प्रेमी प्रताप पोखरियाल ने अपने पैसे और जीवन के 33 साल लगाकर तैयार किया वरूणावत पर्वत पर एक जंगल तैयार किया है. आइए बताते हैं उन्होंने कैसे किया यह अद्भुत काम... 

Uttarkashi: पर्यावरण प्रेमी ने जिंदगी के 33 साल खपाकर खड़ा कर दिया जंगल, जानें जोशीमठ संकट के बीच क्यों सुर्खियों में आए प्रताप पोखरियाल

हेमकांत नौटियाल/उत्तरकाशी: आपने यह तो सुना ही होगा कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, उसके साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. क्योंकि प्रकृति जब अपना रौद्र रूप धारण करती है तो सब कुछ तबाह कर देती है. ऐसा हम केदारनाथ और हाल ही में जोशीमठ आपदा में देख चुके है. पर्यावरण का सम्मान कैसे करें इसकी इसका उदाहरण उत्तराखण्ड में देखने को मिला है. यहां उत्तरकाशी से दिल को खुश करने वाली खबर आई है. यहां पर्यावरण प्रेमी प्रताप पोखरियाल के काम की खूब तारीफ हो रही है. उन्होंने यहां वरूणावत पर्वत पर खुद के पैसों से करीब 45 हेक्टेयर भूमि में वन तैयार किया है. 

कौन हैं प्रताप पोखरियाल
वरूणावत पर्वत की तलहटी पर श्याम स्मृति वन को तैयार करने वाले प्रताप पोखरियाल एक ऐसे पर्यावरण प्रेमी हैं. इन्होंने वरूणावत पर्वत के भू-धंसाव वाले क्षेत्र में विभिन्न प्रजाति के 5 लाख पौधों का रोपण करके मिसाल कायम की है. आज इन पौधों ने वृक्षों का रूप ले लिया है, जो एक घने वन के रूप में विकसित हो रहे हैं. इन्होंने अपने निजी प्रयास से बगैर किसी सरकारी सहायता के 45 हेक्टेयर वन तैयार किया है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार से मदद मिलती तो वह इस क्षेत्र को और डेवलप करते. 

जानकारी के मुताबिक प्रताप पोखरियाल एक गरीब परिवार से हैं और गाड़ी मेकेनिक का कार्य करते हैं. मन मे पर्यावरण के प्रति अथक प्रेम के कारण इन्होंने अपने जीवन के 33 वर्ष प्रकृति संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित किए हैं. प्रताप पोखरियाल ने असम्भव जैसे कार्य को सम्भव करके एक मिसाल कायम की है. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वालों लोगों के लिए प्रताप पोखरियाल प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं. इस कार्य के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं. उत्तराखंड के राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी उनके इस काम की प्रशंसा कर चुके है.

2003 में हुआ था भूस्खलन
आपको बता दें कि वरुणावत पर्वत के इस क्षेत्र में 2003 में लगभग डेढ़ माह तक बिना बारिश के लगातार भूस्खलन हुआ था. इस कारण यहां पर कई आवासीय भवन और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को क्षति पहुंची थी. स्थानीय लोग यहां से पलायन करने को मजबूर हो गए थे. प्रताप पोखरियाल ने उस समय ही संकल्प लिया था कि वरूणावत पर्वत के भूस्खलन को रोकना है. इसलिए वे 2003 से लगातार स्वयं के संसाधनों से वरूणावत पर्वत की तलहटी पर पौधारोपण और पौधों की देखरेख कर रहे हैं. उसकी यह कोशिश आज घने जंगल के रूप में तैयार है.

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