यूपी विधानसभा चुनाव 2022: सत्ता पर काबिज होने के लिए क्यों अहम है पूर्वांचल? वोटरों को साधने के लिए ये है पार्टियों की रणनीति
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: सत्ता पर काबिज होने के लिए क्यों अहम है पूर्वांचल? वोटरों को साधने के लिए ये है पार्टियों की रणनीति

यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. यूपी की सत्ता में काबिज होने के लिए पूर्वांचल काफी अहम है. हर दल को पता है कि पूर्वांचल की 156 सीटें ही हार-जीत तय करेंगी.

फाइल फोटो.

संकल्प दुबे/लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अगले साल यानी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर कहा जाता है कि पूर्वांचल जिसका होगा, उसकी ही सरकार बनती है. यही वजह है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अलावा समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस ने भी पूरी ताकत झोंक दी है. 

वोटरों को साधने में जुटी पार्टियां 
बीजेपी की तरफ से सीएम योगी आदित्यनाथ ने गाजीपुर में सभा कर चुनावी शंखनाद किया था, जिसके बाद लगातार सीएम और पार्टी का फोकस पूर्वांचल की सीटों पर है. जबकि करीब 3 दशक से सत्ता के सुख से वंचित कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराने का बीड़ा उठाने वाली प्रियंका गांधी प्रयागराज होते हुए पूर्वाचल में एंट्री लेना चाहती हैं. ऐसे में अखिलेश यादव छोटे दलों को साथ मिलाकर अपना खेमा तैयार करने में जुटे हैं. वहीं, मायावती भाजपा से नाराज ब्राह्मण वोटों को साधने में जुटी हैं. जिसकी अहम जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्रा एंड फैमली को दी गई है. हालांकि बसपा के प्रबुद्ध सम्मेलन को लेकर सियासी दलों की प्रतिक्रिया है कि कोरोना काल के दौरान ट्विटर पर सक्रिय रहने वाली मायावती का जनाधार खत्म हो चुका है. 

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पूर्वांचल की 156 सीटें तय करेंगी हार-जीत 
यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. यूपी की सत्ता में काबिज होने के लिए पूर्वांचल काफी अहम है और हर दल को पता है कि पूर्वांचल की 156 सीटें ही हार जीत तय करेंगी. इसलिए सभी पार्टियों का फोकस पूर्वांचल पर है. तो ऐसे में आपको बताते हैं कि किस दल ने पूर्वांचल को लेकर क्या खास तैयारी की है?

बीजेपी का मिशन पूर्वांचल
कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में अपने सबसे पहले दौरे की शुरुआत पूर्वांचल के वाराणसी से ही की थी. सीएम योगी ने भी पूर्वांचल के गाजीपुर से ही चुनाव प्रचार का शंखनाद किया. सीएम योगी खुद पूर्वांचल के गोरखपुर से ताल्लुक रखते हैं. जबकि वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव से ही पूर्वांचल में बीजेपी की पकड़ मजबूत हो चुकी है. 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी का पूर्वांचल से अच्छा प्रदर्शन रहा है. मगर इस बार बीजेपी के सामने कई मुश्किलें खड़ी हैं. जहां छोटे दल बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी निषाद वोट बैंक को मजबूत करने के लिए संजय निषाद को फिलहाल मना लिया है. वहीं, अनुप्रिया पटेल भी बीजेपी के साथ खड़ी नजर आ रही हैं. इसके बावजूद तमाम छोटे दल फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बने हुए हैं. 

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पूर्वांचल की 125 सीटों पर छोटे दलों का असर है, इसलिए इन्हें साथ रखना बीजेपी की जरूरत भी है और मजबूरी भी. बीजेपी की मुश्किल इस बात पर भी है कि ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए सपा और बसपा ने भी कवायदें शुरू कर दी हैं. जहां समाजवादी पार्टी परशुराम की मूर्ति स्थापित कर रही है, तो बसपा ब्राह्मण सम्मेलनों के जरिए ब्राह्मण वोट बैंक को मजबूत करने में जुटी है. ऐसे में इन चुनौतियों से निपटना बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी है और सरकार में वापसी का टिकट भी. भारतीय जनता पार्टी को पूर्वांचल पर फतह पाने के लिए तमाम बड़े चेहरों, जिसमें बेबी रानी मौर्य, केशव मौर्य, अनुप्रिया पटेल, पंकज चौधरी, महेंद्र नाथ पांडे और स्मृति ईरानी का साथ मिला है. बीजेपी इन सभी बड़े चेहरों की लोकप्रियता को भुनाने का प्रयास करेगी. 

क्या है सपा-बसपा की रणनीति?
पूर्वांचल के कुछ जिलों में समाजवादी पार्टी का अच्छा असर है, तो वहीं कुछ सीटों पर बसपा का वोट बैंक भी मजबूत है. पूर्वांचल ही यूपी की छोटी पार्टियों के लिए प्रयोगशाला है. जिसमें अपना दल और निषाद पार्टी को भारतीय जनता पार्टी ने अपने पक्ष में खड़ा कर लिया है. वहीं, जनवादी पार्टी का समाजवादी पार्टी से गठबंधन है. इसके अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी फिलहाल ओवैसी के साथ खड़ी दिखाई दे रही है. जिसके चलते अब पूर्वांचल के सीटों पर ओवैसी फैक्टर भी जुड़ गया है. वहीं, आज ओवैसी ने प्रयागराज में जनसभा के दौरान सभी पार्टियों पर जमकर निशाना साधा और बीजेपी सरकार की नाकामियों को गिनाने के साथ ही अन्य पार्टियों पर भी कई आरोप लगाए हैं. ऐसे में ओवैसी फैक्टर भी सभी पार्टियों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है.

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कांग्रेस ने भी तैयार किया प्लान
कांग्रेस जानती है कि लखनऊ के गद्दी का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजरता है. यही वजह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुवाई में कांग्रेस पूर्वांचल में दोबारा एंट्री लेने के फिराक में है. जिसके लिए कांग्रेस ने प्रयागराज का रास्ता चुना है, जहां प्रियंका गांधी ने न सिर्फ अपना ऑफिस खोला बल्कि विधानसभा चुनावों के लिए पहले उम्मीदवार का ऐलान भी शहर की उत्तरी विधानसभा से किया गया. वहीं, प्रियंका को उम्मीद है इसका असर बनारस तक भी दिखाई देगा. 

"सभी दलों को साथ में लेकर चलती है भाजपा"
भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि बीजेपी सबको लेकर चलने वाली पार्टी है. एनडीए में कई दल हैं. निषाद पार्टी सहयोगी दल हो गया है. अपना दल पहले से ही है. बीजेपी सभी दलों को साथ में लेकर चल रही है. मोदी-योगी के जो गरीब कल्याण की योजनाएं पूरे प्रदेश में लागू की गई हैं, उनके आधार पर चुनाव में उतरेंगे. 

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"प्रियंका गांधी के चेहरे पर चुनाव लड़ने जा रही है कांग्रेस"
वहीं, छोटी पार्टियों के अस्तित्व पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है कि छोटे दल अपने स्वार्थ के लिए चुनाव के समय समाज के हित की बात कर रहे हैं. समाज भी उनका असली चरित्र पहचान चुका है. जब बीजेपी की सरकार में निषादों पर अत्याचार हुआ तब कहां थे. उस समय पार्टी के लोग सत्ता की लालच में बीजेपी की गोद में जाकर बैठ गए. वहीं, कांग्रेस निषाद वोट बैंक मजबूत करने के लिए नदी अधिकार यात्रा समेत तमाम मुद्दों को लेकर प्रियंका गांधी के चेहरे पर चुनाव लड़ने जा रही है. 

"सबसे अधिक सीटों से सपा ही जीतेगी"
समाजवादी पार्टी का आरोप है कि पूर्वांचल में बीजेपी की सरकार ने कोई विकास कार्य नहीं कराया. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे आज तक शुरू नहीं हुआ. व्यापारी और बेरोजगारी की सबसे अधिक समस्या पूर्वांचल में है. भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी फंडे के तहत निषाद और अपना दल को जगह दी है. वहीं, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता विवेक साइलस का दावा है कि पूर्वांचल में सबसे अधिक सीटों से समाजवादी पार्टी ही जीतेगी. 

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सभी पार्टियां पूर्वांचल को लेकर बेहद गंभीर हैं. अपनी रणनीति में किसी प्रकार की चूक नहीं छोड़ना चाहतीं. लेकिन ओवेसी फैक्टर भी सभी पार्टियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. अब ऐसे में देखना होगा कि पूर्वांचल में ओवैसी से किसका फायदा और किसका नुकसान होगा. 

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