UP MLC Congress History: देश की स्वतंत्रता के बाद 1989 तक विधान परिषद में नेता सदन का आसन कांग्रेस के पास ही रहा... इस दौरान 1977-79 और 1979-80 में ही नेता सदन का पद जनता पार्टी के पास रहा. 1989 के बाद प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार कम होता गया. 18वीं विधान सभा के चुनाव में उसके सिर्फ दो सदस्य जीते.
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UP MLC Congress History: अब कांग्रेस (Congress) का यह गौरवशाली इतिहास समाप्त होने को है. 6 जुलाई को यूपी विधान परिषद पूरी तरह से कांग्रेस विहीन हो जाएगी. परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह रिटायर हो रहे हैं. साल 1935 के बाद पहली बार ऐसा होगा जब कांग्रेस पार्टी (Congress) का यूपी विधान परिषद में एक भी सदस्य नहीं होगा. प्रदेश विधान मण्डल के इस उच्च सदन कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह (Deepak Singh) आज रिटायर हो रहे हैं.
1989 के बाद कम होती गई ताकत
देश की स्वतंत्रता के बाद 1989 तक विधान परिषद में नेता सदन का आसन कांग्रेस के पास ही रहा. इस दौरान 1977-79 और 1979-80 में ही नेता सदन का पद जनता पार्टी के पास रहा. 1989 के बाद प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार कम होता गया. 18वीं विधान सभा के चुनाव में उसके सिर्फ दो सदस्य जीते.
मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी, 1909 को ली विधान परिषद की सदस्यता
मोती लाल नेहरू (Moti Lal Nehru) ने 7 फरवरी, 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली. उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है. 1920 में उन्होंने सदस्यता त्याग दी थी. अब कांग्रेस का यह गौरवशाली इतिहास समाप्त होने को है. 6 जुलाई को यूपी विधान परिषद पूरी तरह से कांग्रेस विहीन हो जाएगी.
5 जनवरी 1887 को हुई यूपी विधान परिषद की स्थापना
उत्तर प्रदेश विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी, 1887 को हुई थी. उस समय महज 9 सदस्य थे. 8 जनवरी 1887 को थार्नाहिल मेमोरियल हाल इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत की पहली बैठक हुई थी. तब से अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला न रहा हो. साल 1909 में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई. इनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई थी. इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे. सात फरवरी 1910 को पंडित मोतीलाल नेहरू ने विधान परिषद की सदस्यता ली थी. उन्होंने 1919 में अमृतसर और 1928 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुए कांग्रेस के अधिवेशनों की अध्यक्षता की.
135 साल के इतिहास में पहली बार आज कांग्रेस विहीन हो जाएगी यूपी विधानपरिषद, नहीं होगा एक भी एमएलसी
यूपी विधानसभा में कांग्रेस ने जीती महज दो सीटें
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस महज दो सीटें ही जीत सकी. इनमें से एक महराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी और रामपुर खास से आराधना मिश्रा मोना हैं. अब कांग्रेस के लिए साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और 2027 में विधानसभा चुनाव में अपनी संख्या को बढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है. कांग्रेस पार्टी की बात करें तो यूपी की राजनीति में कांग्रेस पार्टी की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. पार्टी के महज दो ही विधायक इस बार जीत पाए.
सियासी सफर हो रहा है खत्म
कांग्रेस पार्टी की तरफ से विधान परिषद में किसी भी प्रत्याशी को जीत दिला पाना संभव नहीं दिखाई दे रहा है. इसीलिए यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का सूरज अस्त होने जा रहा है. विधान परिषद की 13 सीटें 6 जुलाई को खाली हो रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा 6 सीटें समाजवादी पार्टी, बीजेपी-3, बीएसपी-3 और कांग्रेस की 1 सीट शामिल है. बीते 113 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा. उसके एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का उस दिन कार्यकाल समाप्त हो जाएगा. इस तरह से कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे मोतीलाल नेहरू से शुरू हुआ यह सिलसिला उनकी पांचवीं पीढ़ी पर आकर खत्म हो रहा है.
छिन सकता है सपा का नेता प्रतिपक्ष का पद
6 जुलाई के बाद यूपी विधान परिषद में समाजवादी पार्टी से नेता प्रतिपक्ष का पद छिन सकता है. नेता प्रतिपक्ष के लिए न्यूनतम 10 प्रतिशत सीटें जरूरी होती हैं. आज के बाद सपा के पास महज 9 सीटें रह जाएंगी. फिलहाल सपा के लाल बिहारी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं.
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