आज ही 1 दिन के लिए इलाहाबाद बना था देश की राजधानी और महारानी विक्टोरिया को मांगनी पड़ी थी माफी
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आज ही 1 दिन के लिए इलाहाबाद बना था देश की राजधानी और महारानी विक्टोरिया को मांगनी पड़ी थी माफी

 आप भी जानिए आखिर एक दिन के लिए ही प्रयागराज को क्‍यूं बनानी पड़ी थी देश की राजधानी.

आज ही 1 दिन के लिए इलाहाबाद बना था देश की राजधानी और महारानी विक्टोरिया को मांगनी पड़ी थी माफी

प्रयागराज : आज ही के दिन एक नवंबर 1858 को एक दिन के लिए प्रयागराज को देश की राजधानी बनने का गौरव प्राप्‍त हुआ था. आज जब देश आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहा है तो ऐसे में इस तिथि का महत्‍व और बढ़ जाता है. आप भी जानिए आखिर एक दिन के लिए ही प्रयागराज को क्‍यूं बनानी पड़ी थी देश की राजधानी.   

1857 की क्रांति का विशेष योगदान 
बात 19वीं सदी की हैं. जब देश में ईस्‍ट इंडिया कंपनी राज करती थी. ईस्‍ट इंडिया कंपनी के अत्‍याचार से देश के कई कोने में आजादी के लिए आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. यही सुगबुगाहट कब क्रांति का रूप ले लिया किसी को पता तक नहीं चला. इसके फलस्‍वरूप 1857 की क्रांति शुरू हुई. उस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपना रुख बदला और देशवासियों से माफी मांगने के साथ ही विकास का वादा करते हुए देश का शासन अपने हाथों में लेने का फैसला किया. 

कलकत्‍ता से प्रयागराज हस्तांतरित हुई थी राजधानी 
उस दौरान देश की राजधानी कोलकाता (कलकत्ता) हुआ करती थी. सत्ता हस्तांतरण होने के लिए महारानी विक्टोरिया ने एक पत्र भेजा. वह पत्र प्रयागराज स्थित यमुना किनारे मिंटो पार्क में एक नवंबर 1858 को ब्रिटिश हुकूमत के पहले वायसराय लार्ड केनिंग ने पढ़ा. इतिहासकार बताते हैं कि सत्ता हस्तांतरण का यह पत्र एक प्रकार से माफीनामा था. महारानी विक्टोरिया ने माफी मांगते हुए देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली. इस घटना के बाद देशभर में ब्रिटिश राज शुरू हो गया था. यह वही दिन था जब एक दिन के लिए प्रयागराज को देश की राजधानी बनानी पड़ी. 

यह भी जानें 
इलाहाबाद जिसे वर्तमान में प्रयागराज के नाम से जाना जाता है उसकी स्थापना 1583 में मुगल सम्राट अकबर ने की थी. अकबर ने इसे इलाहाबाद नाम दिया था. यह मुगल साम्राज्य के दौरान एक प्रांतीय राजधानी बन गया और 1599 से 1604 तक यह सम्राट जहांगीर का मुख्यालय था. प्रयागराज 1857 के मध्य में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय विद्रोह का सबसे बड़ा केंद्र रहा था. 

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