Lord Ganesha Tulsi Katha: कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करने से पहले विघ्नहर्ता भगवान गणेश की वंदना की जाती है. हर पूजा-पाठ में सबसे पहले इनका आवाहन किया जाता है, ताकि कार्य निर्विघ्न पूरा हो सके.
तुलसी को बेसिल पौधे के नाम से भी जाना जाता है. यह हिन्दुओं के लिए काफी पावन पेड़ है. यह भगवान विष्णु की पूजा के लिए व्यापक रूप से इस्तमाल किया जाता है। तुलसी में कई औषधीय गुण भी होते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणेशजी गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे. तभी धर्मात्मज की बेटी तुलसी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलीं. देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पहुंची.
शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे. उनके समस्त अंगों पर सुगन्धित चंदन,गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के सुन्दर हार और उनकी कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का लाल पीताम्बर लिपटा हुआ था.
तुलसी श्रीगणेश के इस सुंदर स्वरूप पर मोहित हो गईं. उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई. तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग कर दिया. तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी का उद्देश्य जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बता उसके विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.
विवाह प्रस्ताव ठुकराने पर तुलसी नाराज हो गई और गणेशजी को श्राप दिया कि उनके एक नहीं बल्कि दो-दो विवाह होंगे.
इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर के साथ होगा.
एक राक्षस के साथ विवाह होने का शाप सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी.
पौराणिक कथा के अनुसार गणेश भगवान ने कहा कि तुलसी कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा. इसलिए तुलसी गणेश जी को नहीं चढ़ाते.