Navratri 2022 News: बताया जाता है कि अगर शिलाओं को पानी से धो दिया जाए तो कुछ ही देर में यह शिलाएं फिर से रक्तिम हो जाती हैं. अब इस मंदिर में एक देवी प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है.
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जितेंद्र सोनी/जालौन: बुंदेलखंड के जालौन में बेतवा नदी के किनारे अलग-अलग पहाड़ों पर बने ऐतिहासिक एवं प्राचीन शक्तिपीठ मंदिरों की अलग पहचान व मान्यताएं हैं. जिन की प्राचीनता का अनुमान लगाना बेहद ही मुश्किल है. कहा जाता है कि चैत्र एवं शरदीय नवरात्रि के अलावा मकर संक्रांति पर भव्य मेले का आयोजन होता है. श्रद्धालुओं में दोनों शक्तिपीठों पर अटूट विश्वास बना हुआ है. वैसे तो बुंदेलखंड के कोने-कोने से श्रद्धालु आए दिन मंदिरों पर आकर रक्तदंतिका देवी एवं मां अक्षरा देवी पर मत्था टेकने के साथ मन्नते भी मांगते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है.
देवी रक्तदंतिका की क्या है कहानी?
जालौन के डकोर ब्लॉक की ग्राम पंचायत सैदनगर में रक्तदंतिका नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. जालौन के मुख्यालय उरई से इसकी दूरी 50 किलोमीटर है. सैदनगर गांव से निकली बेतवा नदी किनारे एक ओर पहाड़ों पर बसी रक्तदंतिका शक्तिपीठ का वर्णन दुर्गा सप्तशती पाठ के दो श्लोकों में मिलता है. पहाड़ पर देवी रक्तदंतिका विराजमान हैं. यह मंदिर सदियों पुराना है. पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था. यहां पर बलि देने का प्रावधान था. कोई भी साधक रात में मंदिर परिसर में नहीं रुक सकता था.
कहा जाता है कि कई वर्षों पहले लंका वाले महाराज आकर यहां पर रुक गए थे. उन्होंने यहां पर साधना शुरू की. वह किसी से बोलते-चालते नहीं थे. उनके समय से ही नवरात्र के दिनों में कुछ साधक देवी भक्त मंदिर में रुकने लगे थे. पहाड़ में देवी के मंदिर के साथ ही दूसरी तरफ एक हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि देवी मंदिर में दो शिलाएं रखी हुई हैं. यह शिलाएं रक्तिम हैं.सती के दांत यहां पर गिरे थे.
होता है यह चमत्कार
बताया जाता है कि अगर शिलाओं को पानी से धो दिया जाए तो कुछ ही देर में यह शिलाएं फिर से रक्तिम हो जाती हैं. अब इस मंदिर में एक देवी प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है. वास्तिवक पूजा दंत शिलाओं की ही होती है. पहले बलि प्रथा भी प्रचलित थी. अब समय के साथ इस पर पाबंदी लगा दी गई है और नवरात्रि के मौके पर दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिर की सीढ़ियों पर अपना मत्था टेकने के लिए आते हैं.
कभी तंत्र साधना का हुआ करता था केंद्र
देवी रक्तदंतिका स्फटिक के पहाड़ पर विराजमान हैं और यह मंदिर सदियों पुराना बताया जाता है. पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था फिलहाल अब इस पर रोक लगा दी गई है. नवरात्रि में मैया के मंदिर में उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राजस्थान दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों से आने वाले भक्तों की भीड़ माता के दर्शनों के लिए उमड़ती है.
वहीं, मंदिर के पुजारी कृष्ण चंद्र गौतम ने बताया की गर्भ गृह में किसी को जाने की अनुमति नहीं है. यह मंदिर सृष्टि के निर्माण के समय का है दूर-दूर से श्रदालु यहां पहुचते है और जो एक बार भी यहां आता है उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं.
उरई से पहुंचे श्रद्धालु प्रमोद रिछारिया ने बताया जिस तरह से मां अपने बच्चों का पालन पोषण करती हैं. उसी तरह मां रक्तदंतिका अपने भक्तों का पालन पोषण करती हैं. कोई भी मां के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता है.
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