Why Did Shri Krishna Leave Mathura: हरिवंश पुराण के अनुसार, क्रूर जरासंध अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था और इलिए दामाद कंस की मौत का बदला लेने के लिए श्रीकृष्ण से युद्ध करने की ठानी थी. जरासंध की मंशा थी कि कान्हा को हराकर मथुरा पर भी कब्जा किया जा सके. पढ़ें खबर-
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Janmashtami 2022 Special: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश और गुजरात में इसका महत्व खास है, क्योंकि कान्हा का जन्म यूपी के मथुरा में हुआ और गुजरात के द्वारका में उन्होंने काफी समय बिताया. हिन्दू माइथोलॉजी में श्रीकृष्ण की सैकड़ों लीलाओं का वर्णन किया गया है. कान्हा के बाल रूप से लेकर युवावस्था तक उनकी कई ऐसी नटखट और हैरान कर देने वाले कृत्य हैं, जो हम सब बचपन से सुनते आए हैं. लेकिन, आज हम बात करेंगे बंसीवाले को लेकर उस कहानी के बारे में, जहां उन्हें अपनी जन्म नगरी मथुरा छोड़नी पड़ी थी. आइए जानते हैं क्या थी यह रोचक कहानी...
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कंस के वध के बाद ससुर रजासंध बना श्रीकृष्ण का दुश्मन
कहा जाता है कि मथुरा से श्रीकृष्ण को खासा लगाव था. कान्हा का बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव और बरसाना में बीता. श्रीकृष्ण ने अपने क्रूर मामा कंस का वध किया और फिर माता-पिता को कारागार से छुड़ाया. इसके बाद मथुरावासियों ने उनसे अनुरोध किया कि मथुरा का राजभार संभाल लें. लोगों को लगा कि क्रूर शासक कंस से मुक्ति मिल गई, लेकिन ऐसा सच में आसान नहीं था. दरअसल, कंस के वध बाद उसका ससुर जरासंध श्रीकृष्ण का दुश्मन बन गया. जरासंध भी क्रूर था और मगध पर शासन करता था.
मथुरा पर कब्जा पाने के लिए जरासंध ने किया युद्ध
हरिवंश पुराण में वर्णन किया गया है कि जरासंध की मंशा अपना साम्राज्य बढ़ाने की थी और इसके लिए वह लगातार काम कर रहा था. जरासंध ने कई राजाओं को हराकर अपने अधीन कर लिया था. कंस की मौत के बाद वह अपने दामाद का बदला लेने के नाम पर श्रीकृष्ण से युद्ध करना चाहता था और उन्हें हराकर मथुरा पर कब्जा करना चाहता था.
इस वजह से कृष्ण को छोड़ना पड़ा था मथुरा
बताया जाता है कि जरासंध ने एक या दो बार नहीं, बल्कि पूरे 18 बार मथुरा पर हमला किया था. 17 बार तो कुछ नहीं कर सका. हालांकि, 18वीं बार में उसने विदेशी शक्तिशाली शासक कालयवन की मदद ली. इस युद्ध में कालयवन का वध हो गया था, जिसके बाद उसके साम्राज्य के लोग भी कान्हा को दुश्मन बना बैठे. लगातार हो रहे आक्रमणों से मथुरा की आमजन भी परेशान हो गए. वहीं, मथुरा में सुरक्षा के लिए बनाई गईं दीवारें भी कमजोर होने लगी थीं. इसके बाद कान्हा ने फैसला लिया कि वह मथुरा छोड़ देंगे.
अपने चुने स्थान पर युद्ध करने की ठानी
कृष्ण ने मथुरा छोड़ने की वजह भी बताई. उन्होंने कहा कि युद्ध से भाग नहीं रहे हैं, बल्कि अपने चुने हुए स्थान पर युद्ध करने की रणनीति तैयार कर रहे हैं. इस बार युद्ध तो होगा, लेकिन स्थान और व्यूह उनका होगा. इसके बाद वह मथुरावासियों के साथ कुशस्थली आ गए और गुजरात के तट पर भव्य द्वारका का निर्माण किया. इसके बाद नगर के चारों ओर मजबूत दीवारें बनवा दीं और वहां करीब 36 साल तक राज किया.
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