बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. पी के श्रीवास्तव ने बताया कि गेम की लत छुड़वाने के लिए आ रहें छात्र और अभिभावकों को अपने बच्चों को काउंसलिंग करवाने की जरूरत पड़ रही है.
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शुभम पाण्डेय/लखनऊ: राजधानी के सरकारी अस्पताल में गेम की लत छुड़वाने के लिए आने वाले मरीजों का ग्राफ बढ़ रहा है. मनोचिकित्सक डॉक्टर ऐसे बच्चों की लत छुड़वाने में उनके दोस्त बनकर उन्हें इसके दुष्प्रभाव बता रहें है. जरूरत पड़ने पर उनके परिवार की भी काउंसलिंग की जा रही है. वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि कई ऐसे मामले भी आ रहें जिन्हें गेम या फोन की लत छुड़ाने में 6 से 8 महीने लग रहें है.
चार साल के बच्चे को लगी मोबाइल गेम की लत
नौ साल का एक बच्चा क्लास 4 का छात्र है. उसके माता-पिता वर्किंग हैं. इसलिए वे बच्चे को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते. उन्होंने बच्चे को सेल फोन की आदत डाल दी. धीरे धीरे बच्चा हमेशा फोन में गेम्स खेलता रहता. इस दौरान पैरेंट्स से बात करना भी कम कर दिया, जब उसकी स्टडीज पर असर पड़ा तो पैरेंट्स को अटपटा लगा. बच्चा पहले के मुकाबले काफी गुस्सा करने लगा था. उसके बाद वह उसे डॉक्टर के पास ले गए, जहां उसे बदले हुए स्वभाव और गेम की लत छुड़वाने में 6-8 महीने लग गए.
मोबाइल लेने पर छात्रा हो गई नाराज
14 साल की किशोरी क्लास 10वीं की छात्र है. वो अपने परिवार में इकलौती लड़की है, इस वजह से उसके पैरेंट्स उसकी हर जिद पूरी कर देते थे. छात्रा को महंगा फोन गिफ्ट कर दिया. फोन मिलने के बाद उसने अपना पूरा टाइम फोन को देना शुरू कर दिया. सोशल नेटवर्किंग साइट में काफी एक्टिव रहती, जिसके चलते उसे ऑनलाइन गेम खेलने की लत गई, जब उसके फैमिली को पता चला तो उन्होंने उसे डांटा और फोन ले लिया. इससे छात्र इतना नाराज हो गई कि उसने सुसाइड करने की कोशिश की, जब घरवालों को मामला सीरियस लगा तो उन्होंने उसे काउंसलर को दिखाया, जहां उन्हें अपनी स्वाभाविक स्थित में वापस आने में 6 महीने से ज्यादा लग गए.
ऐसे होती है काउंसलिंग
बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. पी के श्रीवास्तव ने बताया कि गेम की लत छुड़वाने के लिए आ रहें छात्र और अभिभावकों को अपने बच्चों को काउंसलिंग करवाने की जरूरत पड़ रही है. उन्होंने बताया कि तीन चरणों में बच्चों की काउंसलिग करते हैं. इसमें सबसे पहले बच्चा फोन कितनी देर इस्तेमाल करता है? और क्या सर्च करता है? दिनभर इंटरनेट में कितनी जीबी का कितना यूज करता है? इसकी जानकारी लेते हैं. इसके बाद अभिभावकों से जानकारी ली जाती है? कि वो बच्चों को कितनी देर समय देते हैं. इस आधार पर इलाज तय होता है? इस दौरान अभिभावकों को अपने बच्चे को समय देने, फोन का क्या इस्तेमाल हो रहा है, और बच्चा फोन पर किस तरह के गेम खेल रहा है? इसपर ध्यान देने के लिए कहा जाता है. हर 15-15 दिन बाद एक दोस्त की तरह खुद भी बात करते है? इससे बच्चे खुलकर बात करते है? और उनका इलाज आसान होता है. पुरे प्रोसेस में 6-8 महीने लग जाता है.
कैसे करें बचाव
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