विधायकी नहीं रहने पर कई बार नेताओं की न तो सरकार सुनती है औ न ही प्रशासनिक अधिकारी, उत्तराखंड के पूर्व विधायकों ने इस चुनौती के समाधान के लिए रास्ता निकाल लिया है. पढ़ें पूर्व विधायकों की क्या है रणनीति.
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कुलदीप नेगी/देहरादून: दो धुर विरोधी पार्टियों के पूर्व विधायक अगर एक मंच पर आकर एक संगठन बनाएं तो इसे आप क्या कहेंगे. उत्तराखंड में ऐसा ही कुछ हो रहा है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के कुछ पूर्व विधायक एक संगठन के बैनर तले एकजुट हो गए हैं. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में पहली बार पूर्व विधायक इस तरह एकजुटता दिखा रहे हैं. खास बात यह है कि इसमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के कुछ पूर्व विधायक शामिल हैं. संगठन में शामिल विधायकों का कहना है कि वह संगठित होकर सरकार को सुझाव देने का काम करेंगे , लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसके तरह-तरह के सियासी अर्थ निकाले जा रहे हैं.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे लाखी राम जोशी को पूर्व विधायकों के संगठन का अध्यक्ष बनाया गया है. लाखीराम जोशी के मुताबिक पूर्व विधायक खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और ऐसे में उनके द्वारा यह संगठन बनाया गया है. यह संगठन सरकार को सुझाव देने का भी काम करेगा. राज्य से जुड़े जनहित के मुद्दों को लेकर सरकार के समक्ष सुझाव रखेगा और भविष्य में आवश्यकता पड़ी तो चुनाव मैदान में भी नजर आएंगे.
क्या कहती हैं पार्टियां
कांग्रेस और बीजेपी दोनों का ही कहना है कि उनके पार्टी संगठन में पूर्व विधायकों की कोई अनदेखी नहीं की जाती है. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष संगठन का कहना है की पूर्व विधायकों का यह संगठन महज एक प्रेशर ग्रुप है और कुछ नहीं. वहीं बीजेपी ने भी साफ इशारा कर दिया है कि पार्टी संगठन के दायरे में रहकर ही पार्टी के कार्यकर्ता को काम करना होता है और बीजेपी में किसी की भी उपेक्षा नहीं होती. साफ है कि अगर कोई भी पूर्व विधायक बीजेपी की पार्टी लाइन से बाहर जाएगा तो संगठन उस पर कार्रवाई भी करेगा.
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सेवानिवृत्त कर्मचारियों के संगठन अक्सर अपने हितों पर आवाज उठाते नजर आते हैं. अब माननीय पूर्व विधायक जी भी जनहित के नाम पर एकजुटता की बात कह रहे हैं. हालांकि इसमें अपना हित अधिक है या जनहित यह तो भविष्य में ही पता चलेगा.