UP Vidhansabha Chunav 2022: हर बार विधायक बदलते हैं कांठ के मतदाता, 2017 में 21 वर्षों बाद खिला था कमल
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UP Vidhansabha Chunav 2022: हर बार विधायक बदलते हैं कांठ के मतदाता, 2017 में 21 वर्षों बाद खिला था कमल

कांठ में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है. साथ ही रामगंगा नदी के खादर के कारण जमीन उपजाऊ है. इसलिए इस इलाके के किसान खासे संपन्न हैं. यहां चीनी मिल के साथ कई छोटे बड़े उद्योग धंधे भी हैं. 

मुरादाबाद का कांठ विधानसभा क्षेत्र.

मुरादाबाद: मुरादाबाद जिले में पड़ती है उत्तर प्रदेश विधानसभा की कांठ सीट. कांठ विधानसभा क्षेत्र मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. कांठ मुस्लिम बहुल अनारक्षित सीट है. वर्ष 1956 के परिसीमन में कांठ विधानसभा क्षेत्र का गठन हुआ, और यहां के लोगों को पहली बार 1957 के विधानसभा चुनाव में मतदान का मौका​ मिला. चूंकि यह विधानसभा क्षेत्र मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर पड़ता है, इसलिए यहां स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर है. सड़कें ठीक हैं. सार्वजनिक परिवहन की सुविधा अच्छी है. मुरादाबाद खुद रेल मंडल है इसलिए ट्रेनों की अच्छी सुविधा है.

कांठ में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है. साथ ही रामगंगा नदी के खादर के कारण जमीन उपजाऊ है. इसलिए इस इलाके के किसान खासे संपन्न हैं. यहां चीनी मिल के साथ कई छोटे बड़े उद्योग धंधे भी हैं. मुरादाबाद पीतल हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है. यहां के स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार पीतल हस्तशिल्प का निर्यात सिर्फ भारत में ही नहीं अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और मध्य पूर्व एशिया के देशों में भी होता है. इसलिए स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ता है. कांठ के लोगों की रोजी रोटी भी पीतल उद्योग के कारण ठीक चल जाती है.

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कांठ असेंबली सीट पर धार्मिक-जातिगत समीकरण
कांठ मुस्लिम बहुल सहट है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक कांठ विधानसभा क्षेत्र में कुल रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या 3.5 लाख से कुछ अधिक है. इनमें पुरुषों मतदाताओं की संख्या 1,66,877, जबकि महिला वोटर्स की संख्या 1,35,383 है. इनमें मुस्लिम मतदाता 1.50 लाख से ज्यादा है. जाट के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों के वोटर्स हैं, दलित मतदाता हैं. यहां जाट और मुस्लिम गठजोड़ उम्मीदवार को चुनाव जिताता रहा है. दलितों की भूमिका भी अहम होती है. कांठ सीट पर जनता का मूड लगभग हर बार बदलता है. यहां की जनता विधायक ही नहीं बदलती, हर बार अलग पार्टी पर ही भरोसा जताती है. 

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वर्ष 1957 में कांठ सीट पर पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस उम्मीदवार जितेन्द्र प्रताप सिंह विधायक बने. वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस के दाऊ दयाल खन्ना, 1967 निर्दलीय जे. सिंह, 1969 में भारतीय क्रांति दल के नौनिहाल सिंह, 1974 में भारतीय क्रांति दन के चंद्रपाल सिंह, 1977 में जनता पार्टी के हरगोविंद सिंह, 1980 में कांग्रेस (यू) के रामकिशन, 1985 में कांग्रेस के समरपाल सिंह, 1989 में जनता दल के चन्द्रपाल सिंह, 1991 में भाजपा के ठाकुरपाल सिंह, 1993 में जनता पार्टी के महबूब अली, 1996 में भाजपा के राजेश कुमार सिंह विधायक चुने गए. 

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इसके बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार रिजवान अहमद विधायक बने. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में यह सीट फिर से बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई और रिजवान अहमद लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी के प्रत्याशी अनिसुर्रहमान सैफी कांठ के विधायक चुने गए. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर तीसरी बार कमल खिला. भाजपा उम्मीदवार राजेश कुमार सिंह 21 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद दूसरी बार कांठ के विधायक बने. उन्होंने सपा के सीटिंग एमएलए अनिसुर्रहमान सैफी को 2348 वोटों से हराया.  

वर्तमान विधायक राजेश कुमार सिंह (चुन्नू) के बारे में
राजेश कुमार सिंह (चुन्नू) पुराने भाजपाई हैं. कांठ विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई, तब से भाजपा को यहां कुल तीन बार जीत नसीब हुई है. पहली बार श्री रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान 1991 में ठाकुरपाल सिंह ने कांठ सीट पर कमल खिलाया, उसके बाद 1996 में राकेश कुमार सिंह ने जीत दर्ज की. इसके बाद भाजपा को इस सीट पर जीत दर्ज करने में 21 साल लग गए. हालांकि, इस बीच उत्तर प्रदेश में भी भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी. साल 2017 में यूपी की जनता ने भाजपा पर भरोसा जताया और कांठ की जनता ने भी. राजेश सिंह दूसरी बार कांठ के विधायक बने. वह क्षेत्र में लोगों के संपर्क में रहते हैं. कोरोना काल में कांठ विधायक अपने क्षेत्र में घूमकर लोगों को दवा और जरूरत के अन्य सामान बांट रहे थे. उनका ग्राउंड कनेक्ट है. देखना है 2022 के चुनाव में कांठ में भाजपा किसे उम्मीदवार बनाती है.

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