गोपाष्टमी पर गौ पूजन करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है. गोपाष्टमी के दिन सुबह गाय को शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए. गाय को फूल- माला वस्त्र पहनाकर रोली- चंदन का तिलक लगाना चाहिए.
गोमाता को फल, मिष्ठान, आटे व गुड़ की भेली, पकवान आदि खिलाएं जाते हैं. धूप- दीप जलाकर आरती की जाती है. इस दिन गोमाता के साथ ही भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा करें.
भगवत पुराण की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण तब सिर्फ पांच वर्ष पूरा करके छठे वर्ष में प्रवेश किए थे. तब यशोदा मइया से बाल हठ करके गोपालक बनने की इच्छा जाहिर की तब यशोदा मइया भगवान को समझाती है कि कान्हा बेटा मै तुम्हे शुभ मुहुर्त में गोपालक बनाउंगी. मां बेटे का यह संवाद चल रहा था तभी शाण्डिय ऋषि वहां आ पहुंचे और भगवान कृष्ण की जन्मपत्री देखकर कार्तिक शुक्ल पक्ष के अष्टमी के दिन गोचारण का मुहुर्त निकला.
बालकृष्ण खुश होकर अपनी माता के हृदय से लग गए. माता झटपट भगवान का श्रृगांर कर दिया. भगवान नंगे पैर ही गौचारण करने चले गये. भगवान वृदावन की रज को अत्यंत पावन करते हुए, आगे- आगे गौए और उनके पीछे- पीछे बांसुरी बजाते हुए भगवान अपने ग्वाल मित्रों के साथ गौचारण लीला करने लगे.
भगवान श्री कृष्ण को उनका अतिप्रिय नाम गोविंद भी गायों की रक्षा के कारण पड़ा. भगवान श्री कृष्ण ने गाय और ग्वालों के रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर रखा था. आठवे दिन इंद्र देव अपना अहम त्यागर भगवान कृष्ण की शरण में आ गये.