UP Lok Sabha Chunav 2024: बदायूं में बीजेपी बचा पाएगी सीट?, सपा के MY फैक्टर को 5 बार के सांसद सलीम शेरवानी ने दिया झटका
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UP Lok Sabha Chunav 2024: बदायूं में बीजेपी बचा पाएगी सीट?, सपा के MY फैक्टर को 5 बार के सांसद सलीम शेरवानी ने दिया झटका

Budaun Lok Sabha Chunav 2024: बदायूं को छोटे सरकार और बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है. पश्चिमी यूपी के प्रमुख लोकसभा सीटों में से एक बदायूं लोकसभा सीट कई मायनों में खूब चर्चित रहा है. इस सीट से कौन होगा ये बड़ा दिलचस्प होगा, सपा ने तो अपने पत्ते खोल दिए हैं.

UP Loksabha Chunav 2024

Budaun Lok Sabha Chunav 2024: उत्तर प्रदेश के बदायूं में लोकसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है. गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसे बदायूं संसदीय क्षेत्र में इस बार के चुनाव में राजनीति गरमाई हुई है.  समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर धर्मेंद्र यादव को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं, भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की राजनीति का शिकार होती दिख रही हैं. उनका टिकट कट गया है. बदायूं में उनकी सीट जाने का खतरा है. आइए जानते हैं इस सीट का सियासी समीकरण और इतिहास.

बदायूं लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र-प्रत्याशी

शि‍वपाल यादव -सपा
बीजेपी- दुर्विजय सिंह शाक्य

धर्मेंद्र यादव प्रत्याशी
सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 16 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी. इसमें बदायूं से सपा ने एक बार फिर पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है, जहां से दो बार सांसद वो रह चुके हैं. 2019 में यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या ने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की थी. यादव-मुस्लिम के दम पर सपा यह सीट दोबारा से जीतना चाहती है. 2022 के चुनाव में बीजेपी बदांयू की पांच से चार सीटें ही जीतने में सफल रही है और सपा को एक सीट मिली है. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का यहां के लोगों से व्यक्तिगत जुड़ाव रहा है.

जानें बदायूं लोकसभा सीट का इतिहास
बदायूं लोकसभा सीट के लिए अब तक 17 बार चुनाव हुआ है. जिनमें सबसे ज्यादा छह बार समाजवादी पार्टी विजयी रही. पांच बार कांग्रेस जीती. दो बार भाजपा ने जीत हासिल की. एक बार जनसंघ, एक बार भारतीय जनसंघ, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार जनता दल ने भी यहां से जीत दर्ज की है.सपा के सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं से लगातार चार बार सांसद रहे. इनके बाद लगातार दो बार धर्मेंद्र यादव ने जीत दर्ज की थी.

सलीम शेरवानी पांच बार के सांसद
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय विदेशी राज्यमंत्री सलीम शेरवानी ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद छोड़ दिया. दरअसल, वह सपा से राज्यसभा जाना चाहते थे. उनसे वादा भी किया गया था. सलीम शेरवानी पहली बार बदायूं लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1989 में उन्होंने एटा और 1991 में फिर बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 1996 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और सपा का दामन थाम लिया. 1996, 98, 99 और 2004 में लगातार सपा से बदायूं के सांसद चुने गए. 2009 में सपा ने उनका टिकट काटकर धर्मेद्र यादव को प्रत्याशी बनाया.  शेरवानी ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और चुनाव हारे. फिर इसके बाद वह बदायूं और आंवला लोकसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे थे. सपा में वापस आने पर उनसे राज्यसभा भेजने का वादा किया गया था. 2017 और 2022 के बाद इस बार भी सपा ने उनको राज्यसभा प्रत्याशी नहीं बनाया. इस बार ऐसा नहीं हुआ. और इसके बाद शेरवानी की नाराजगी सामने आई.

बदायूं लोकसभा सीट समीकरण
बदायूं सीट के सियासी समीकरण देखें तो यादव, मुस्लिम, दलित और मौर्य वोट काफी निर्णायक हैं. 19 लाख वोटरों वाले बदायूं में यादव विरादरी के वोट सबसे ज्यादा है. इनकी संख्या करीब 4 लाख बताई जाती है. 3 लाख 75 हजार मुस्लिम वोटर, दो लाख 28 हजार गैर यादव ओबीसी मतदाता, 1 लाख 75 हजार अनुसूचित जाती, 1 लाख 25 हजार वैश्य और ब्राहम्ण वोटर हैं.

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बदायूं-लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र
बदायूं लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें गुन्नौर, बिसौली-अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित,सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल है.

गुन्नौर: सपा से राम खिलाड़ी विधायक
बिसौली: सपा के आशुतोष मौर्य विधायक
बदायूं: बीजेपी के महेश गुप्ता विधायक
सहसवान: बृजेश यादव सपा के मौजूदा विधायक
बिल्सी: हरीश शाक्य बीजेपी के मौजूदा विधायक

बदायूं  लोकसभा 2019 चुनाव परिणाम (2019 Indian general elections: Budaun)

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बदायूं  लोकसभा 2014 चुनाव परिणाम  (2014 Indian general elections: Budaun)

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कुल मतदाता-1891576

बदायूं का इतिहास
गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं जिला छोटे सरकार और बड़े सरकार की दरगाह की वजह से बेहद प्रसिद्ध है. मशहूर शायर शकील बदायूंवी ने भी इस इलाके का नाम रोशन किया. बदायूं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है. रुहेलखंड का मिनी कुंभ कहे जाने वाले बदायूं के ककोड़ा मेले का इतिहास पांच सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. ऐसा कहा जाता है कि इस इलाके पर वर्चस्व के लिए रुहेलाओं ने आक्रमण किया तो ककोड़ देवी ने यहां के जनमानस की रक्षा की. इस युद्ध में देवी का सिर धड़ से अलग हो गया था. उनके कबंध (धड़) ने युद्ध कर रुहेलाओं को परास्त किया था. मंदिर में देवी की प्रतिमा भी इसी स्थिति में स्थापित है। सिर और धड़ अलग-अलग रखा है.

मुगल काल से जुड़ा है इतिहास
मिनी कुंभ मेला ककोड़ा का इतिहास मुगल काल से जुड़ा है. रोहेला नवाब मोहम्मद अब्दुल्ला कुष्ठ रोग का शिकार हो गए थे.  तमाम वैद्यों से उपचार कराने के बाद भी ठीक नहीं हुए तो किसी संत ने ककोड़ देवी मंदिर के पास गंगा स्नान की सलाह दी. नवाब ने वहां नियमित स्नान किया तो उसका कुष्ठ रोग दूर हो गया. उन्ही ने ककोड़ देवी मंदिर पर मेला लगवाने की परंपरा शुरू कराई थी. बाद में ब्रिटिश काल में यह मेला इसी तरह भव्यता के साथ लगता रहा.बदायूं शहर में स्थित बिरुआबाड़ी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का विशेष केंद्र है.100  साल से भी अधिक पुराना यह मंदिर आस्था के साथ अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए भी पहचाना जाता है.

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बदायूं के स्मारकों में जामा मस्जिद भारत की मध्य युगीन इमारतों, जिसको कि 13वीं शताब्दी में बनवाया गया था. इसका निर्माण इल्तुमिश ने कराया था. इल्तुमिश के शासनकाल के दौरान बदायूं 4 साल तक उसकी राजधानी रहा. अलाउद्दीन ने अपने जीवन के अंतिम साल बदायूं में ही बिताए थे. अकबर के दरबार का इतिहास लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी यहां कई सालों तक रहे थे. बदायूंनी का मकबरा बदायूं का प्रसिद्ध स्मारक है.

रजिया सुल्तान का 1205 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्म हुआ था. इनके पिता का नाम इल्तुतमिश था. रजिया सुल्तान ने 1236 ईस्वी से 1240 ईस्वी तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया. रजिया पर्दा प्रथा त्यागकर पुरुषों की तरह खुले मुंह राजदरबार में जाती थीं. रजिया सुल्तान को उसके ही सेवक अल्तुनिया ने 1239 ईस्वी में बंदी बना दिया था.

बदायूं के इतिहास को देखा जाए तो इस नगर को अहीर सरदार राजा बुद्ध ने 10वीं शताब्दी में बसाया था. 13 वीं शताब्दी में यह दिल्ली के मुस्लिम राज्य की एक महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती चौकी था और 1657 में बरेली द्वारा इसका स्थान लिए जाने तक प्रांतीय सूबेदार यहीं रहता था. 1838 में यह जिला मुख्यालय बना.

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