गुरुनानक देव जी से जुड़ा श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, सैकड़ों साल पुराना इतिहास, हरिद्वार से पटियाला तक कनेक्शन
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गुरुनानक देव जी से जुड़ा श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, सैकड़ों साल पुराना इतिहास, हरिद्वार से पटियाला तक कनेक्शन

Shri Nirmal Panchayati Akhara: यूपी महाकुंभ के लिए बिलकुल तैयार है. प्रयागराज में 13 जनवरी महकुंभ का आयोजन होने जा रहा है. इस महाकुंभ में देश के 13 प्रमुख अखाड़े और उनके साधु संत भी शामिल होंगे.  महाकुंभ हो और अखाड़े न हो ऐसा हो नहीं सकता. यानी जहां कुंभ वहां अखाड़े. महाकुंभ की शुरुआत अखाड़ों के स्नान के साथ ही होती है. अखाड़ों की सीरीज में हम बात करते हैं निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) के बारे में..आइए जानते हैं अखाड़े के बारे में...

Shri Nirmal Panchayati Akhara

History Shri Nirmal Panchayati Akhara: यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल होने जा रहे हैं. किसी भी महाकुंभ में अखाड़ों की अहम भागीदारी होती है. इन अखाड़ों में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले दोनों हैं. इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं के सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र देश के 13 प्रमुख अखाड़े और उनके साधु संत रहेंगे. श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा (हरिद्वार) इन्हीं प्रमुख अखाड़ों में से एक है. इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में बनाया गया है.  बीजेपी सांसद साक्षी महराज भी इस अखाड़े के साधु हैं.अखाड़ों की सीरीज में आज हम आपको निर्मल पंचायती अखाड़ा के बारे में बताने जा रहे हैं. इस अखाड़े के इतिहास, प्रमुख संत और परंपराओं से भी आपको परिचित करवाएंगे. 

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वर्ष 1862 में की अखाड़े की स्थापना
श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) का रिश्ता गुरु नानक देव जी से बताया जाता है. साल 1564 में पटियाला में गुरु नानक देव की कृपा और से निर्मल संप्रदाय को स्थापित किया गया. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) का संबंध गुरु नानक देव जी महाराज से माना जाता है. कई वर्षों तक इन रीतियों का पालन करते हुए वर्ष 1862 में इसे संस्थागत रूप प्रदान किया गया और अखाड़े की स्थापना की गई. इस अखाड़े की स्थापना पटियाला में हुई. जबकि इसका मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में बनाया गया. यह संप्रदाय एक ओमकार यानी ईश्वर एक है और वह निराकार के सिद्धांत पर विश्वास करता है.  इस संप्रदाय का यकीन है कि भगवान एक ही है. ये संप्रदाय इसी सिद्धांत पर चलता है.

बाबा मेहताब सिंह महाराज  ने रखी नींव, साक्षी महराज भी इस अखाड़े के साधु
इस अखाड़े की नींव साल 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज रखी थी. वहीं इस अखाड़े के संस्थापक माने जाते हैं. उनके बाद से इस अखाड़े के 10 महंत हो चुके हैं. इतना ही नहीं बीजेपी सांसद साक्षी महराज भी इस अखाड़े के साधु हैं. वो इस अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर बने थे. वो इस अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर बने थे. उनका महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक किया गया था.उनके अलावा स्वामी ज्ञानेश्वर जी महाराज,जयराम हरिजी महाराज, भक्तानंद हरि जी महाराज, जनार्दन हरिजी महाराज और दिव्यानंद गिरी भी इसी अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं. वे सब अखाड़े की ओर से समाज में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

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देश भर में फैली हुई हैं अखाड़े की शाखाएं 
अखाड़े की शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं. इस अखाड़े में पंगत-संगत की एक समान भावना से काम किए जाते हैं. इस अखाड़े में स्थापना से लेकर अब तक प्रतिदिन गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है. जब भी कुंभ लगता है तो अखाड़े से जुड़े साधुओं और अनुयायियों के ठहरने की व्यवस्था अखाड़े की ओर से ही की जाती है. 

गुरू नानक की शिक्षाओं का करते हैं पालन
ये अखाड़ा सेवा भाव, निर्मल आचरण और परोपकार को पहला उपदेश मानता है. इस अखाड़े को उदासीन अखाड़ा भी कहा जाता है. उदासीन अखाड़ा कहने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उदासी या ऐसे किसी अर्थ से इसका संबंध हो. उदासीन का मतलब ब्रह्न या समाधि की अवस्था से है. इस अखाड़े के संत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का पूजा-पाठ और गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं.  गुरू नानक की शिक्षाओं पर चलने वाले तीनों अखाड़े सेवा भाव, निर्मल आचरणऔर परोपकार की भावना के साथ काम करते हैं. 

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ब्रह्म मुहूर्त में होता है गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ 
श्री निर्मल पंचायती निर्मल अखाड़े में ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह बजे साधु संत उठ जाते हैं. नित्य क्रिया और स्नान के पश्चात गुरू भगवान का पूजा पाठ किया जाता है. इसके साथ ही गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू कर दिया जाता है. अखाड़े से जुड़े सभी संतों को सिखाया जाता है कि सभी के साथ समान व्यवहार, हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार रहने वाला व्यक्ति ही असली योगी कहलाता है. र्मल पंचायती अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड.

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गर प्रवेश नहीं करते, आता है जखीरा 
महाकुंभ में अखाड़ों का छावनी प्रवेश होता है, लेकिन श्री निर्मल पंचायती अखाड़े का जखीरा आता है. इस अखाड़े के साधु संत ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, ट्रकों के जरिये महाकुंभ में प्रवेश करते हैं. इसी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, ट्रकों के जरिये आने को साधु संतों का जखीरा कहा जाता है. इस अखाड़े से हर वो व्यक्ति जुड़ सकता है, जिसके भीतर सेवा, त्याग और तपस्या की भावना आ चुकी हो.अखाड़े से जोड़ने से पहले उसे सेवा करने के लिए कहा जाता है. उस अवधि के दौरान अखाड़े के संत देखते हैं कि क्या वह वाकई संत-महात्मा बनने लायक है या नहीं. अगर वे सकारात्मक जवाब देते हैं तो उसे अखाड़े से जोड़ लिया जाता है. 

निर्मल पंचायती अखाड़ा अपनी कई विशेषताओं के लिए जाना जाता है. निर्मल पंचायती अखाड़ा एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है, जो हरिद्वार में स्थित है. यह अखाड़ा निर्मल संप्रदाय से संबंधित है और पंचायती अखाड़ा के रूप में जाना जाता है।

क्यों होता है प्रयागराज में महाकुंभ
महाकुंभ प्रयागराज की धरती पर होने का क्या महत्व है? इस पर बात करते हुए मंहत दुर्गा दास ने कहा, "इसका बहुत महत्व है क्योंकि ब्रह्माजी ने यहां पर यज्ञ किया था. यह दशाश्वमेध यज्ञ त्रिवेणी की पुण्य स्थली पर किया गया था. इसके अलावा यहां मां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. इसलिए यहां स्नान का महत्व है. इसके अलावा ज्ञान के रूप में अमृतज्ञान भी यहां निरंतर प्रवाहित रहता है. इस जगह पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी, जिसका लाभ यहां प्राप्त होता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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