अमिट है प्रयागराज के अक्षयवट का इतिहास, पृथ्वी पर प्रलय के बाद भी नहीं डिगा, महाकुंभ आएं तो जरूर देखें
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अमिट है प्रयागराज के अक्षयवट का इतिहास, पृथ्वी पर प्रलय के बाद भी नहीं डिगा, महाकुंभ आएं तो जरूर देखें

PM Modi in Prayagraj Akshayavat: पीएम मोदी आज प्रयागराज दौरे पर थे. इस दौरान पीएम मोदी ने किला स्थित अक्षयवट पर दर्शन पूजन किया. अक्षयवट का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. 

Prayagraj Akshayavat

Prayagraj Akshayavat History: पीएम मोदी आज प्रयागराज दौरे पर हैं. पीएम मोदी ने महाकुंभ 2025 की तैयारियों का जायजा लिया. इस दौरान पीएम मोदी ने संगम किनारे किला स्थित अक्षयवट पर पूजा अर्चना की. अक्षयवट की पौराणिक और धार्मिक मान्यता है. कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से मानव को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. तो आइये जानते हैं अक्षयवट की पौराणिक मान्‍यता और इ‍सका इतिहास. 

प्रयागराज का अक्षयवट वृक्ष की पौराणिक मान्‍यता 
प्रयागराज का यह अक्षयवट अकबर के किले के अंदर है. यह क्षेत्र सेना के अंडर है. ऐसे में अभी तक अक्षयवट वृक्ष की पूजा अर्चना के लिए तीर्थ यात्रियों की एंट्री नहीं होती थी. अब योगी सरकार ने तीर्थ यात्रियों के लिए अक्षयवट के दर्शन को सुलभ बना दिया है. करीब 300 साल पुराने अक्षयवट वृक्ष का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. यह सृष्टि के विकास और प्रलय का साक्षी रहा है. नाम से ही जाहिर है कि इसका कभी नाश नहीं होता है. 

श्रीकृष्‍ण का बालस्‍वरूप विराजमान 
पौराणिक मान्‍यता है कि इस वृक्ष को माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहेगा. मान्यता यह भी है कि बालरूप में श्रीकृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे. बाल मुकुंद रूप धारण करके श्रीहरि भी इसके पत्ते पर शयन करते हैं. पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है. अक्षयवट का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है. 

पहले दर्शन में थी रोक 
प्रयागराज में यमुना तट पर मुगल शासक अकबर ने अपना किला बनवाया था. अक्षयवट वृक्ष इसी किले के अंदर है. मुगलकाल अकबर ने अक्षयवट के दर्शन पर रोक लगा रखी थी. ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण तीर्थ यात्रियों के लिए इस वट वृद्ध का दर्शन दुर्लभ था. लेकिन साल 2018 में अक्षयवट का दर्शन व पूजन सभी के लिए सुलभ करने का फैसला किया गया. इसके बाद लोग किले में स्थित अक्षयवट का दर्शन पाने लगे. 

यह भी मान्‍यता 
पुराणों के मुताबिक, प्रलय के समय जब पूरी पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है. वही अक्षयवट है. इसे सनातनी परंपरा का संवाहक भी कहा जाता है. इसके एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में रहकर सृष्टि को देखते हैं. इस वृक्ष का उल्लेख कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा विवरण में भी मिला है. देश में वर्तमान में चार पौराणिक वट वृक्ष हैं.  इनमें गृद्धवट-सोरों 'शूकरक्षेत्र', अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृंदावन शामिल हैं. 

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