Kanpur News: पहले संभल, फिर वाराणसी और अब कानपुर में मेयर ने 5 मंदिरों के कब्जे हटवा दिए हैं. 30 मिनट तक मेयर प्रमिला पांडेय मुस्लिम इलाके में रहीं. यह एरिया बेकनगंज का है, जो एक वक्त में सुनार वाली गली के नाम से फेमस था. पढ़िए
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Kanpur News: संभल, वाराणसी के बाद कानपुर में पांच मंदिरों के कब्जे हटाए गए हैं. मेयर प्रमिला पांडेय ने बेकनगंज के इन मंदिरों से कब्जे को हटवाया. यह एरिया पहले सुनार वाली गली के नाम से मशहूर था. अब इन मंदिरों को मूल स्वरूप में लाकर पूजा-पाठ कराने की तैयारी है. यहां रहने वाले मुस्लिम परिवारों का कहना है कि वो कब्जेदार नहीं...किराएदार हैं. उनका कहना है कि 1992 के दंगों में उनके पूर्वजों ने इन मंदिरों को बचाया था. रिपोर्ट्स की मानें तो नगर निगम के सर्वे में 120 मंदिरों पर कब्जे मिले हैं. जिनमें से कुछ मंदिरों के बारे में पढ़िए.
मंदिर में पकती थी बिरयानी
सबसे पहले बात करेंगे डॉ. बेरी चौराहे के राम जानकी मंदिर की. जिसे पूरी तरह से ध्वस्त किया जा चुका है. इस मंदिर को शत्रु संपत्ति भी घोषित किया जा चुका है. मंदिर के नाम पर अब सिर्फ अवशेष बचे हैं. ये अवशेष कभी भी गिर सकते हैं. यह मंदिर करीब एक एकड़ में फैला हुआ है. इस मंदिर प्रांगण में अब कब्जे हो चुके हैं. इस पर कानपुर हिंसा के मुख्य आरोपी मुख्तार बाबा का कब्जा था. इसमें वो बिरयानी पकाता था, जो अभी फरार है. रिपोर्ट्स की मानें तो यह मंदिर करीब 100 साल पुराना है. यहां भगवान राम और माता सीता की मूर्ति विराजित थी. यह मंदिर करीब 2400 वर्ग गज में फैला था, लेकिन अब छोटा सा हिस्सा ही बचा है.
राधा-कृष्ण का मंदिर
राम जानकी मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर राधा-कृष्ण का मंदिर है. इस मंदिर के आगे का हिस्सा सुरक्षित है. मंदिर के पिछले हिस्से में एक परिवार ने गेट बना लिया है. मंदिर के ठीक बगल में अजमेरी बिरयानी की एक दुकान है. मंदिर को चारों ओर से बंद कर दिया गया है. ताकि मंदिर में कोई अंदर न जा सके. मंदिर के रोड साइड हिस्से में कब्जा करके एक व्यक्ति ने दुकान खोल रखी है. हालांकि, अब इस मंदिर के आगे पुलिस ने बैरिकेडिंग कर दी है.
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शिव मंदिर बना कूड़ाघर
अब अगर कर्नलगंज की बात करें तो यह पूरा एरिया मुस्लिम बाहुल्य है. संकरी गली में करीब 125 साल पुराना शिव मंदिर मिला है. इस मंदिर को करीब 70 सालों से खोला नहीं गया है. इस मंदिर में कोई कब्जा तो नहीं है, लेकिन पूरे मंदिर में कूड़े का अंबार है. मंदिर प्रांगण चारों ओर से बंद है. अब यह पूरा मंदिर जर्जर हो चुका है. मंदिर कब धराशायी हो जाएगा, यह कहा नहीं जा सकता. मंदिर के गेट पर मुस्लिम लोगों के पोस्टर चस्पा किए गए हैं. इस मंदिर के निर्माण में भी छोटी और पतली लाहौरी ईंटों का इस्तेमाल किया गया है. थोड़ा हिस्सा छोड़कर बाकी सब पर कब्जा हो चुका है.
कर्नलगंज का दूसरा शिव मंदिर
कर्नलगंज के शिव मंदिर से करीब 500 मीटर दूर दूसरे शिव मंदिर के बाहर तक दुकानें लगी हुई हैं. इस मंदिर का निर्माण भी करीब 100 साल पहले हुआ था. इसको बनाने में लाहौरी ईंटों का इस्तेमाल किया गया है. इस मंदिर के आगे के हिस्से और पीछे के हिस्से में मुस्लिम परिवारों का बसेरा है. मंदिर में शिवलिंग के निशान तो हैं, लेकिन शिवलिंग पूरी तरह से गायब है. मंदिर जर्जर हालात में है.
लगातार घटी हिंदुओं की आबादी
रिपोर्ट्स की मानें तो बेकनगंज और कर्नलगंज के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में करीब 50 साल पहले तक हिंदुओं की बड़ी आबादी थी, लेकिन वक्त के साथ इन इलाकों में मुस्लिमों की आबादी लगातार बढ़ती चली गई. जितनी तेजी से मुस्लिमों की आबादी बढ़ी, उतनी ही तेजी से हिंदुओं की आबादी कम होती गई. एक वक्त के बाद ऐसे हालात बन गए कि इन मंदिरों में पूजा करने वाला कोई नहीं बचा. मौजूदा वक्त में मंदिर पूरी तरह जर्जर हैं और कब्जों में अब गुम होने लगे हैं.