Ayodhya Ram Temple : शुक्रवार को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मूर्ति के चयन को लेकर मंदिर कमेटी की बैठक हुई. विशेष आचार्य और राम मंदिर से जुड़े एक्सपर्ट्स ने चयन की पूरी प्रक्रिया बताई है. सवाल ये है कि आखिर रामलला की कौन सी मूर्ति मंदिर में विराजमान होगी? श्वेत या श्याम?
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अयोध्या : राम की नगरी अयोध्या में प्रभु श्री राम का भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है. 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या आ रहे हैं. अब वो घड़ी भी नजदीक आने वाली है जब मंदिर में प्रभु राम पधारेंगे. लेकिन लोगों के मन में आज सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर रामलला की कौन सी मूर्ति मंदिर में विराजमान होगी? श्वेत या श्याम? दरअसल, शुक्रवार को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मूर्ति के चयन को लेकर मंदिर कमेटी की बैठक हुई. विशेष आचार्य और राम मंदिर से जुड़े एक्सपर्ट्स ने चयन की पूरी प्रक्रिया बताई है. राजस्थान के सत्यनारायण पांडे ने जहां राम लला की श्वेत रंग की मूर्ति बनाई है, तो वहीं, मैसूर के अरुण योगीराज और बेंगलुरु के जी एल भट्ट ने श्याम रंग की मूर्ति बनाई है.
जिन तीन शिलाओं पर प्रभु श्री राम की बाल स्वरूप मूर्ति बनाई गई है उनमें से कृष्ण शिला पर मैसूरु के शिल्पकार अरुण योगिराज के हाथों से बनाई गई मूर्ति पर अंतिम मुहर लग सकती है. सूत्रों के मुताबिक ट्रस्ट ने काफी मंथन के बाद श्याम शिला पर उकेरी गई प्रभु श्री राम की बालकाल्य मूर्ति को स्वीकृति दी है.
कैसी होगी मूर्ति
शिल्पकार अरुण योगीराज के साथ काम करने वालों से बातचीत के आधार पर- प्रभु श्री राम की ये मूर्ति खड़े रूप में बाल्यकाल की मूर्ति है लेकिन हाथ में धनुष बाण है, ये मूर्ति प्रभावली के साथ बनाई गई है. अरुण और बाकी शिल्पकारों को ट्रस्ट की ओर से निर्देश थे कि मूर्ति बाल्यकाल की होनी चाहिए लेकिन प्रभु श्री राम को लेकर लोगों की जो आम कल्पना है वो उसमें स्पष्ट रूप से नजर आनी चाहिए. अरुण योगिराज ने इस मूर्ति की मूल कल्पना में दक्षिण भारतीय मूर्ति कला को आधार स्वरूप रखा है लेकिन उत्तर भारतीय शैली का सार भी मूर्ति में समाहित किया गया है. मूर्ति के हर सेंटीमीटर में एक अलग कला और एक अलग शैली की झलक दिखती है.
कहां से आई ये कृष्ण शिला
इस कृष्ण शिला का चयन, कर्नाटक के कारकाला से किया गया, इस साल फरवरी- मार्च के महीने में इस शिला का चयन किया गया था. उत्तर कन्नडा जिले के कारकाला तालुका के नेल्लीकेर कस्बे में ईडू गांव है. इसी गांव से श्याम शिला का चयन किया गया था. यह शिला 10 टन वजनी, 6 फीट चौड़ी और 4 फीट मोटी है. इस शिला को विधिविधान से पूजा के बाद अयोध्या भेजा गया था.
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कैसे हुआ शिला का चयन
सूत्रों की मानें तो ट्रस्ट की गुजारिश पर मशहूर वास्तु शास्त्री कुशदीप बंसल ने सबसे पहले इस शिला का निरीक्षण किया. उनकी मंजूरी मिलने के बाद नेशनल रॉक इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट के एक दल ने इस शिला के कैमिकल स्ट्रक्चर का शुरुआती परीक्षण किया था.
मूर्तिकारों की पहली पसंद है नेल्लीकेर स्टोन
रॉक विशेषज्ञों ने इस शिला को किसी भी मौसम और वातावरण के लिए उचित पाया, ये स्टोन शिल्पकारों की भी पहली पसंद है, क्योंकि इसकी रासायनिक संरचना काफी विशिष्ट है. ये शिला ज्यादा कठोर भी नहीं है और मृदु भी नहीं है. शिला के कठोर होने से मूर्ति की भाव भंगिमाओं पर असर पड़ता है और मृदु होने से मूर्ति की गढ़ाई के दौरान शिला के टूटने का खतरा बना होता है. कारकला की कृष्ण शिला की खासियत ये ही है कि ये कठोर भी है साथ ही इसकी गढ़ाई भी आसान है. साथ ही इसकी रासायनिक संरचना इस तरह की है कि ये लम्बे अरसे तक मौसम और जलवायु के प्रभाव में खराब नहीं होती हैं. यही वजह है कि दक्षिण भारत में कई मंदिरों में मूल मूर्ति के निर्माण के लिए नेल्लीकेर स्टोन ही मूर्तिकारों की पहली पसंद है.
इस शिला को जांच के बाद जब नेशनल रॉक इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने शुरुआती मंजूरी दे दी उसके बाद एक प्रसिद्ध शिल्पकार से भी उनकी राय मांगी गई थी. उनसे भी हरी झंडी मिलने के बार इस कृष्ण शिला का चयन किया गया और जब ये शिला अयोध्या पहुंच गई तो मैसूरु के प्रसिद्ध शिल्पकार अरुण योगिराज को इस शिला से भगवान प्रभु श्री राम की मूर्ति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
इस शिला के चयन के पीछे का पौराणिक महत्व
हालांकि रामलला की मूल मूर्ति के निर्माण में कुल तीन शिलाओं को फाइनल क्लीयरेंस मिला लेकिन ट्रस्ट ने कारकला की शिला पर उकेरी गई मूर्ति को ही क्यों वोट दिया इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है. कारकला स्थान तुंगा नदी के तट पर बसे पौराणिक और आध्यात्मिक शहर श्रृंगेरी से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है, श्रृंगेरी का जिक्र त्रेता युग में भी मिलता है, इस शहर का नाम ऋषि श्रृंग के नाम पर पड़ा है. रामायण में इस बात का उल्लेख है कि ऋषि श्रृंग ने ही पुत्रहीन महाराज दशरथ ने पुत्र के लिए पुत्र कामेष्ठी यज्ञ करवाया था. इसके बाद महाराज दशरथ के घर भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था. सूत्रों के मुताबिक ट्रस्ट के सदस्य इस बात पर एकमत दिखे कि जिस सिद्ध पुरुष ऋषि श्रृंग की तपस्या से त्रेता युग में भगवान श्री राम का जन्म हुआ उसी ऋषि की तपोभूमि से चयनित शिला से ही भगवान श्री राम की बाल्यकाल स्वरूप मूर्ति का चयन होना चाहिए.