बाणों की शय्या पर इक्यावन रातें भीष्म ने बिताईं

भीष्म ने बाणों की शय्या पर इक्यावन रातें बिताईं, इस दौरान उन्होंने पांडवों और अन्य लोगों को विभिन्न विषयों पर बहुमूल्य सलाह और शिक्षा दी.

भीष्म की मृत्यु

भीष्म की तुरंत मृत्यु नहीं हुई, बल्कि वे तीरों की शय्या पर जीवित रहे और अपने शरीर को छोड़ने के लिए सूर्य के उत्तरायण (संक्रांति) के शुभ समय की प्रतीक्षा करते रहे, उत्तरायण के पहले दिन पांडवों को आशीर्वाद देने और युद्ध का अंत देखने के बाद भीष्म ने अंतिम सांस ली.

तीरों के बिस्तर पर

युद्ध के दसवें दिन, पांडव राजकुमार अर्जुन ने, शिखंडी की मदद से, भीष्म को कई तीरों से घायल कर दिया औरउन्हें तीरों के बिस्तर पर सुला दिया था.

भीष्म एक कुशल योद्धा

भीष्म एक कुशल योद्धा और सभी हथियारों में निपुण थे, जिन्होंने पांडव सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया था.

भीष्म का वास्तविक नाम

भीष्म पितामह का वास्तविक नाम देवव्रत था, जो कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़े थे.

भीष्म ने ब्रह्मचर्य अपनाया

भीष्म ने राजा बनने का अधिकार त्यागकर आजीवन ब्रह्मचर्य और हस्तिनापुर के सिंहासन के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा ली

गंगा पुत्र भीष्म

भीष्म राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे, जिन्हें अपने पिता से अपनी मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त था

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