द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज के पुत्र

द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज के पुत्र थे और उच्च सैन्य कलाओं के स्वामी थे, जिनमें दिव्य हथियार भी शामिल थे.

द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर गुरु के रूप में नियुक्त

द्रोणाचार्य को उनके कौशल और ज्ञान से प्रभावित होने के कारण राजा धृतराष्ट्र ने कुरु राजकुमारों के शाही गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था.

द्रोणाचार्य युद्ध कला

द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को तीरंदाजी, तलवारबाजी, भाला-युद्ध, गदा-युद्ध, रथ-दौड़ और अन्य कला के सिद्धांत सिखाए थे.

अर्जुन से विशेष स्नेह

द्रोणाचार्य को तीसरे पांडव अर्जुन से विशेष स्नेह था, जो उनका सबसे मेहनती और प्रतिभाशाली छात्र था, उन्होंने उसे ब्रह्मास्त्र और अन्य दिव्य हथियारों के रहस्य सिखाए थे.

पांडवों और कौरवों में प्रतियोगिता

द्रोणाचार्य ने विभिन्न चुनौतियों से अपने छात्रों की परीक्षा ली, जैसे चिड़िया की आँख में तीर मारना, घूमते पहिये को तोड़ना और जंगली सूअर को पकड़ना आदि उन्होंने अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए एक प्रतियोगिता की भी व्यवस्था की थी.

द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा

द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी शिक्षा दी, जो उनका सबसे प्रिय शिष्य था, उसने उसे नारायणास्त्र दिया, एक शक्तिशाली हथियार जो पूरी सेना को नष्ट कर सकता था.गुरु द्रोणाचार्य के अन्य शिष्यों में एकलव्य का नाम सबसे ऊपर आता है,

आश्रम में शिक्षा दी

द्रोणाचार्य ने कौरवो और पांडवो को अपने आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा दी थी, साथ ही महाभारत के युद्ध के समय वह कौरव पक्ष के सेनापति थे,

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