धरोहरों को बचाने लिए उदयपुर के युवाओं की पहल, पीएम मोदी ने भी की सराहना
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धरोहरों को बचाने लिए उदयपुर के युवाओं की पहल, पीएम मोदी ने भी की सराहना

आधुनिकता के इस बढ़ते दौर में हम अपनी धरोहरों और विरासतों को नहीं सहेज पा रहे, इसी का एक बड़ा उदाहरण है विलुप्त होती बावड़ियां, हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई गांव, शहर या कस्बा होगा जहां बावड़ियां नहीं हो, लेकिन आज उनकी स्थिति बद से बदतर हो चुकी है.

धरोहरों को बचाने लिए उदयपुर के युवाओं की पहल, पीएम मोदी ने भी की सराहना

Udaipur: आधुनिकता के इस बढ़ते दौर में हम अपनी धरोहरों और विरासतों को नहीं सहेज पा रहे, इसी का एक बड़ा उदाहरण है विलुप्त होती बावड़ियां, हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई गांव, शहर या कस्बा होगा जहां बावड़ियां नहीं हो, लेकिन आज उनकी स्थिति बद से बदतर हो चुकी है. सरकारों को भी इन्हें सहेजने के प्रयासों में कोई विशेष सफलता नहीं मिली है. इन धरोहरों को जन सहभागिता से ही बचाया जा सकता है. इसका एक बड़ा उदाहरण उदयपुर की बेदला स्थित सुर तान बावड़ी में देखने को मिला है. शहर के जागरूक आर्किटेक्ट सुनील लड्ढा और अमित गौरव ने अपने साथियों के साथ मिलकर न सिर्फ इसकी दशा सुधारी है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुर तान बावड़ी के कायाकल्प के लिए युवाओ की इस पहल की प्रशंसा की है.

उदयपुर में बेदला गांव में वर्षों पुरानी की एक बावड़ी है जिसका निर्माण बेदला के राव सुरतान सिंह जी ने करवाया था. उसके बाद इसे सुरतान बावड़ी के नाम से ही जाना जाने लगा. पुराने जमाने में इस बावड़ी का पानी आस पास के गांवों में सप्लाई किया जाता था. तब तक यहां भी साफ सफाई रहती थी, लेकिन अब इस ओर किसी का ध्यान नहीं दिया. वर्षों से इस बावड़ी पर कोई नहीं आया. इसी वजह से अब ये गन्दगी से अटी पड़ी थी, लेकिन करीब 9 महीने पहले यहां उदयपुर के एक आर्किटेक्ट सुनील लड्ढा युहीं घूमने आ गए. 

उन्होंने जब इसकी हालत देखी तो उनसे रहा नहीं गया और खुद ने ही यहां श्रमदान करना शुरू कर दिया. सुनील के साथ उसके अन्य साथी भी इस मुहीम का हिस्सा बने और देखते ही देखते ये एक कारवां बन गया. सुनील ने बताया कि जब वे यहां आये थे तब इसकी स्थिति देखकर बहुत दुःख हुआ था. बावड़ी में पेड़ पौधे उगे हुए थे, पत्थर टूट रहे थे, बावड़ी का पानी भी पीला पड़ गया था, पानी में जूते, बेग, प्लास्टिक, और विभिन्न तरह का कूड़ा करकट भरा था. बावड़ी को देखकर लग नहीं रहा था कि ये हमारी धरोहर है. उन्होंने एक आर्किटेक्ट की नज़र से देखा और इसके पीछे छुपी खूबसूरती को पहचान लिया, बाद में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए आमजनता से सहभागिता निभाने की अपील कर दी. धीरे-धीरे लोग जुड़ते हुए और बावड़ी फिर से अपने मूल स्वरुप में आ गई.

धरोहरों के संरक्षण के लिए जन सहभागिता कितनी जरुरी है इसके लिए उदयपुर की ये बावड़ी देश के सामने एक बड़ा उदाहरण बन गई, यहां बात सिर्फ सुर तान बावड़ी को साफ़ करने तक ही सिमित नहीं थी. उदयपुर के इन जागरूक लोगों का उद्देश्य इसे जीवित करना था. इसे जीवित रखने क लिए साफ सफाई के बाद युवाओं को म्यूजिक और अन्य एक्टिविटी से जोड़ा गया और आस पास के लोगों को धर्म और भक्ति से जोड़ा गया, सुनील ने बताया कि इसकी सफाई से पहले कागज पर इसका चित्र बनाया और बाद में टीम के अमित और अन्य साथियों से चर्चा करते हुए इसके जीर्णोद्धार की रुपरेखा तय की गई. उसी के अनुसार आगे बढ़ते रहे और आज सफलता भी मिली है. 

सुनील ने कहा कि यहां श्रमदान करके इसे साफ तो कर लिया था, लेकिन उसके बाद युवाओं को जोड़ने के लिए कभी म्यूजिक और पेंटिंग की जुगल बंदी की गई तो कभी इसे धर्म से जोड़ने और पवित्र रखने के लिए हरिद्वार से गंगा जल मंगवा कर ग्रामीणों के हाथ से ही इसमें प्रवाहित कराया गया. जो बावड़ी एक साल पहले वीरान और गन्दगी से अटी पड़ी थी उसके पास आज सैंकड़ों लोग इकट्ठा होकर गंगा जल अर्पण कर रहे थे. इस दृश्य को देखकर ऐसा लग रहा था कि मां गंगा साक्षात दर्शन दे रही हो. ग्रामीणों ने भी इसी भाव से गंगा आरती भी की और तब से ही इस बावड़ी के पानी को गंगा का पानी मान लिया गया है. उदयपुर के आर्किटेक्ट के समूह ने धरोहर को बचाने के लिए जो प्रयास किये उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी पंहुचाया है और उन्होंने भी युवाओं की इस पहल की सराहना की है. धरोहरों के संरक्षण पर पीएम मोदी द्वारा मिली सराहना से पूरी टीम काफी उत्साहित है.

Reporter- Avinash Jagnawat

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