रायसिंहनगर में सरकारी अस्पताल में तत्कालीन सांसद और फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र देओल द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान राजकीय चिकित्सालय में अल्ट्रासाउंड मशीन का संचालन शुरू करवाया था, लेकिन करीब 10 साल से मशीन का संचालन भी बंद पड़ा है. ऐसे में लंबे समय से यहां मशीन को चलाने के लिए आंदोलन भी किया गये, लेकिन इसका कोई भी असर स्वास्थ्य विभाग का नजर नहीं आया.
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Sri-ganganagar: जिले के रायसिंहनगर में बीमार मरीजों का इलाज करने वाला सरकारी अस्पताल खुद ही बीमार नजर आने लगा है. सरकारी अस्पताल में जनप्रतिनिधियों की अनदेखी भी सामने आ रही है, जिसके चलते सरकारी अस्पताल सुविधाओं को तरस रहा है. स्थानीय विधायक भी अस्पताल की बिगड़ी व्यवस्थाओं को लेकर गंभीर नजर नहीं आरहे. उनका 4 साल का कार्यकाल बीतने को है और विधायक कोटे से सरकारी अस्पताल में कोई विकास कार्य नहीं हो पाया है.
करोना काल में विधायक बलवीर सिंह लूथरा द्वारा सरकारी अस्पताल में संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए लाखों रुपए का बजट जारी किया था, लेकिन उन संसाधनों की खरीद तक नहीं हो पाई. विकट स्थिति में दानदाताओं भामाशाह के सहयोग से मरीजों को उपचार के लिए संसाधन उपलब्ध करवाए गए. यहां तक कि सरकारी अस्पताल में तत्कालीन सांसद और फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र देओल द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान राजकीय चिकित्सालय में अल्ट्रासाउंड मशीन का संचालन शुरू करवाया था, लेकिन करीब 10 साल से मशीन का संचालन भी बंद पड़ा है. ऐसे में लंबे समय से यहां मशीन को चलाने के लिए आंदोलन भी किया गये, लेकिन इसका कोई भी असर स्वास्थ्य विभाग का नजर नहीं आया.
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2008 में हुआ था शिलान्यास
रायसिंहनगर के सरकारी अस्पताल का भवन का शिलान्यास 8 मार्च 2008 को हुआ था. जो वर्तमान में काफी खस्ताहाल हो चुका है. भवन की मरम्मत की मांग भी लंबे समय से उठ रही है. वहीं हस्पताल में सबसे बड़ी समस्या की बात की जाए तो यहां सीवरेज की समस्या सबसे ज्यादा है. अस्पताल में बनाया गया सेफ्टी टैंक लंबे समय से टूटा पड़ा है, जिसे दुरुस्त करने को लेकर स्थानीय अस्पताल प्रभारी द्वारा उच्च अधिकारियों को पत्र व्यवहार की कार्रवाई की जा रही है, लेकिन विभाग स्तर से अभी इसकी कोई मंजूरी नहीं आई है. अस्पताल में बदबू के साथ मरीजों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. अस्पताल प्रशासन अस्पताल प्रबंधन सेफ्टी टैंक की लगातार सफाई का कार्य कर रहा है, लेकिन बदबूदार शौचालय के चलते मरीजों को दिनभर परेशानी का सामना करना पड़ता है.
अस्पताल की खस्ताहाल व्यवस्थाएं
वर्तमान में अस्पताल में 50 बेड का स्वीकृत है लेकिन इसमें जगह के अभाव के चलते 40 बेड का ही संचालन किया जा रहा है. बेड और गद्दों की हालत भी खस्ताहाल है. स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा करने वाले प्रशासन की पोल अस्पताल में वास्तव में खुली नजर आती है. दूसरी ओर अस्पताल में जगह-जगह से प्लास्टर गिरने लगा है, यहां तक कि अब बरसात के बाद छत से भी प्लास्टर गिरने लगा है. ऐसे में कभी भी मरीज और अस्पताल स्टाफ दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं. मुख्यमंत्री निशुल्क दवा जांच योजना के लिए लगाई सीबीसी मशीन बार-बार खराब हो जाती है, जिसके चलते जांच अवरुद्ध होती है. रायसिंहनगर के सरकारी अस्पताल में वर्तमान में 10 चिकित्सक नियुक्त किए गए हैं, चिकित्सकों के नियुक्ति के हिसाब से यहां डॉक्टर चेंबर भी कम है. विधानसभा के सबसे बड़े अस्पताल में प्रतिदिन 600 से 700 मरीजों की ओपीडी रहती है. यहां तक कि सरकारी अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों को शुद्ध पेयजल तक नहीं मिल रहा है.
सरकारी अस्पताल में समाज सेवी संस्था के सहयोग से लगाया गया प्याऊ काफी समय से बंद पड़ा है. पूरी गर्मी में मरीज परेशान होते रहें, लेकिन इस मामले में कोई भी कार्रवाई सामने नहीं आई. राज्य सरकार द्वारा यहां पर ऑक्सीजन प्लांट भी स्थापित किया गया है, लेकिन इसका अभी सुचारू रूप से संचालन नहीं हो रहा है.
रिपोर्टर- कुलदीप गोयल
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