Sawai Madhopur News: अक्षय तृतीया के अबुझ सावे, गली-गली गाए जा रहे हैं मंगल गीत
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Sawai Madhopur News: अक्षय तृतीया के अबुझ सावे, गली-गली गाए जा रहे हैं मंगल गीत

Sawai Madhopur News: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र में 18 गांव ऐसे है, जहां अक्षय तृतीया के मौके पर बैंडबाजों एंव शहनाई के स्वर सुनाई नहीं देते और ना ही इन 18 गांवों में कोई मंगल कार्य होता है. 

 

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Sawai Madhopur News: सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र के 18 गांवों में अक्षय तृतिया के मौके पर शादियों की शहनाई की गूंज सुनाई नहीं देती है. अक्षय तृतीया को जहां प्रदेश में ही नहीं अपितू देश भर में शादियों के लिए अबूझ सावा माना जाता है.

वहीं, प्रदेश का सवाई माधोपुर जिले का चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जिसके 18 गांवों में अक्षय तृतीया के अबूझ सावे पर कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता और ना ही शादी होती है और ना ही शहनाई की गूंज सुनाई देती है और तो और चौथ का बरवाड़ा स्थित चौथ माता के मंदिर में भी आरती के वाद्य यंत्र की ध्वनि सुनाई नहीं देती है. 

मंदिर में सभी झालर घंटों को कपड़े से ढक कर ऊंचाई पर बांद दिया जाता है, ताकि मंदिर में भी घंटों के स्वर सुनाई नहीं दे सके. क्षेत्र के 18 गांवों में अक्षय तृतीया के मौके पर शहनाई नहीं गुंजनें के पीछे जानकारों का मामना है कि रियासत काल में 1319 की वैसाख सुदी तीज पर आसपास के 18 गांवों के विभिन्न समुदायों के नवदंपती चौथ माता का आशीर्वाद लेने माता के मंदिर आये थे. 

उसी दौरान भीड़ अधिक होने और दुल्हनो के घुंघट में होने के कारण दूल्हनें अपने दूल्हे को पहचान नहीं पाई और दुसरे दूल्हे के साथ जानें लगी. इस बात का पता जब दूल्हों व उनके परिजनों को लगा तो दूल्हनों के बदलने को लेकर विवाद हो गया और देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया की आपस में मारकाट मच गई. 

इसी दौरान चाकसू की और से मेघसिंह गौड ने यहां आक्रमण कर दिया, जिसमें करिब 84 नव जोडों की मौत हो गई, तब यहां के तत्कालिन शासक मेलक देव चैहान ने 84 वन दंपतियों की मौत पर अक्षय तृतिया के मौके पर इलाके में शोक मनानें की बात कही थी.  तब से लेकर आज तक इस इलाके के 18 गांवों के लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे है. 

सदियों से चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र के 18 गांवों में अक्षय तृतीय के दिन किसी भी घर में कढ़ाई नहीं चढ़ती है और ना ही खुशी मनाई जाती है और ना ही किसी की शादी की जाती है और तो और घरों में सब्जी तक में हल्दी तक नहीं डाली जाती है. 

गांवों के किसी भी मंदिर में आरती के वाद्यंत्र नहीं बजाये जाते है. चौथ माता के मंदिर में लगे घंटों को भी अक्षय तृतिया की पूर्व संध्या पर उंचाई पर बांध दिया जाता है ताकि कोई इन्हे बजा ना सके. यहां चौथ माता मार्ग पर जहां रियासत काल में 84 दूल्हा-दुल्हन मारे गये थे. वहां उनके चबुतरे बने हुए हैं. आज भी इलाके के कई समुदायों के लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए आते है. 

उस दिन के बाद से क्षेत्र के इन 18 गांवों में आखातीज के अबुझ सावें पर कोई भी मंगल कार्य नहीं किया जाता है. रियासत काल में घटित हुई घटना को लेकर आज भी यहां के लोग अक्षय तृतिया पर शादी-विवाह नहीं करते और सदियों से चली आ रही इस परंपरा को बिना तर्क-विर्तक के निभाते आ रहे हैं. 

चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र के इन सभी 18 गांवों के लोग तकरीबन 700 साल से इस परंपरा को निभाते चले आ रहे है. क्षेत्र के 18 गांवों में आज 700 साल बाद भी अक्षय तृतीया पर कोई भी मांगलिक कार्य नही किया जाता और ना ही शादी की जाती है. अक्षय तृतीया के दिन को यहां के लोग अशुभ मानते है और अपने पुरखों द्वारा शुरू की गई परंपरा को आज भी यहां के लोग बिना किसी तर्क-वितर्क के निभाते चले आ रहे हैं. 

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