राजसमंद के देवगढ़ में प्रकृति प्रेम का अनोखा जुनून, 5 हजार सीड्स बॉल को गुलेल से छोड़ा
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1294368

राजसमंद के देवगढ़ में प्रकृति प्रेम का अनोखा जुनून, 5 हजार सीड्स बॉल को गुलेल से छोड़ा

महिलाओं का कहना है हम सदियों से पहाड़ों, नदियों वृक्षों आदि प्राकृतिक संपदा की पूजा-अर्चना और संरक्षण करते आए हैं, क्योंकि इनकी वजह से ही हमारा जीवन-प्राण कायम हैं.

राजसमंद के देवगढ़ में प्रकृति प्रेम का अनोखा जुनून,  5 हजार सीड्स बॉल को गुलेल से छोड़ा

Bhim: राजसमंद के देवगढ़ की महिलाएं बरसात आने से पहले से ही हजारों सीड बॉल तैयार करती हैं ताकि ये बीज बरसात में पौधों का आकार लेकर बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का स्त्रोत बने. 1 माह पूर्व हजारों सीड्स बॉल तैयार कर हर वर्ष की भांती दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में पैदल पैदल कच्चे पगडंडी मार्ग घने जंगल से गुजरते हुए 800 से अधिक सीढ़ियां चढ़ कर अरावली की दूसरी सबसे ऊंची शिखर के सेंडमाता मंदिर पर पहुंच कर इन महिलाओं के द्वारा पहाड़ी की चारों दिशाओं में ऊंचे इलाकों पर जहां पहुंच नहीं थी वहां गुलेल के माध्यम से बीजो की गेंद को छोड़ा और अधिकतर जगह पर गड्ढा खोद कर सीड्स बॉल को अन्दर दबाया.

इन महिलाओं का कहना है हम सदियों से पहाड़ों, नदियों वृक्षों आदि प्राकृतिक संपदा की पूजा-अर्चना और संरक्षण करते आए हैं, क्योंकि इनकी वजह से ही हमारा जीवन-प्राण कायम हैं. मगर अनेक वर्षों से हम विकास के नाम पर एवं स्वार्थवश अपने इन जीवन के आधारों का विनाश करने में लगे हैं, जिसके परिणाम आज भिन्न-भिन्न त्रासदियों के रूप में भुगत रहे हैं. इसलिए हमें अपना दायित्व निभाने के लिए इनके संरक्षण की जिम्मेदारी स्वयं संभालनी होगी. तो वहीं कार्यकर्ता भावना पालीवाल ने बताया कि मंडल की महिलाओं के साथ मिलकर सीड़ बॉल बनाई जाती है.

एक माह पूर्व ही महिलाओं द्वारा उपजाऊ मिट्टी के साथ गोबर या कम्पोस्ट खाद की बराबर मात्रा में मिश्रण तैयार कर गीला किया जाता है. उसे बॉल के रूप में बनाकर बीचों बीच बीज डालकर बंद कर दिया जाता है. ऐसी जगह रखकर सुखाया जाता है जहां सूरज की किरण ना पहुंच सकें. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि धूप की किरण नहीं पड़ने से गीली मिट्टी के बीच में रहने के बाद भी बीज अंकुरित नहीं होता है. एक बॉल में कई बीज पौधों के होते हैं, जो प्राकृतिक तरीके से उगते पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में पौधारोपण कठिन है, ऐसे में यह तकनीक अपनाई गई है.

जिनमें मुख्य तौर पर पीपल, बबूल, रोहिडा, अमलताश, करंज, बड़, नीम, शीशम तथा जामुन आदि के बीज थे. छिड़काव से पहले इन सीड्स बॉल को भिगोकर रखा गया ताकि थोड़ी सी भी मिट्टी मिलते ही यह बीज जड़ पकड़ लें. इस प्रकार पांच हजार से अधिक सीड बॉल तैयार की जाती है. सीड़ बॉल बनाने के बाद उन्हें 14-15 दिन तक छाया में सूखाया जाता है. बता दें कि इस कार्य में ज्योति चुण्डावत, भावना सुखवाल, स्वाति सोलंकी, निशा चुंडावत, अवंतिका शर्मा, विजयलक्ष्मी धाभाई, विष्णु कँवर, प्रमिला रेगर, पुष्पा सालवी, किरण योगी, दुर्गा कंवर, सृष्टि शर्मा, अंशिता, मंजू कुमारी योगी, किरण बुनकर, नीतू सोलंकी, संगीता रावत, पूजा सालवी द्वारा भी सहयोग किया जाता है.

Reporter- Devendra Sharma

अपने जिले की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

यह भी पढ़ें- अपनी उम्र से बड़े पार्टनर पर क्यों मर-मिटते हैं लड़के-लड़कियां, आप भी जानिए खासियतें

यह भी पढ़ें- महज 20 की उम्र में कमसिन हसीना अवनीत कौर ने सोशल मीडिया में मचाया तहलका, फोटोज वायरल

 

 

Trending news