राजस्थान की माटी जो वीर सपूतों के साथ रणबांकुरे पशु भी पैदा करती है, चेतक की कहानी
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राजस्थान की माटी जो वीर सपूतों के साथ रणबांकुरे पशु भी पैदा करती है, चेतक की कहानी

सन् 1576 में हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक की शौर्यगाथा सबके सामने आई थी. इसलिए आज भी हल्दीघाटी में मौजूद ये समाधि चेतक की याद दिलाती है 

राजस्थान की माटी जो वीर सपूतों के साथ रणबांकुरे पशु भी पैदा करती है, चेतक की कहानी

Rajsamand: भारतीय परंपरा में वफादारी और स्वामी भक्ति के अनपुम उदाहरण देखन को मिलते हैं. मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने वाले अनगिनत नाम है. इस मिट्टी ने देश प्रेम और उसके लिए की गई कुर्बानियों की यादें समेट कर रखी हुई हैं.

मनुष्य तो मनुष्य भारत में पशुओं ने भी जरुरत पड़ने पर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहूति दी है. आज हम आपको इतिहास में एक पशु के ऐसे ही बलिदान से रु- ब-रु करवा रहे हैं,  जिसने अपने स्वामी के लिए अपने प्राणों की आहूति देकर अपना नाम इतिहास के स्वर्णाक्षरों में सदा के लिए अमर कर लिया है.

बचपन में भारतभूमि का कोई बच्चा हो जिसने ये कविता पढ़ हल्दी घाटी के युद्ध में अपने स्वामी महाराणा प्रताप के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले घोड़े चेतक के बारे में न सुना हो

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

सन् 1576 में हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक की शौर्यगाथा सबके सामने आई थी. इसलिए आज भी हल्दीघाटी में मौजूद ये समाधि चेतक की याद दिलाती है और एक पशु के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता का वर्णन करती है. राजसमंद जिले में मौजूद हल्दीघाटी जहां आज भी मुगलों से लोहा लेने वाले स्वाभिमानी सम्राट महाराणा प्रताप की शौर्यगाथा की गवाह है, तो चेतक का अपने स्वामी के लिए किया गया बलिदान भी इतिहास सदैव याद करता है .

बताया जाता है कि मुगल सम्राट अकबर की विस्तारवादी नीतियों के समक्ष बडे़ बडे़ राजाओं ने जब घुटने टेक दिए थे, तब महाराणा प्रताप ने अकबर के सामने समर्पण करने के बजाय युद्ध लड़ना उचित समझा था. हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के सामने अकबर की ओर से मान सिंह युद्ध लड़ रहा था , मुगल सेना ने युद्ध में तब दांतों तले उंगली दबा ली थी. जब चेतक मान सिंह के हाथी के मस्तक पर छलांग लगा दी थी और महाराणा प्रताप को मान सिंह पर प्रहार करने का मौका मिल गया था. युद्ध के दौरान शत्रुओं को भ्रमित करने के लिए चेतक के मस्तक पर हाथी की नकली सूंड लगाई जाती थी. जिस वक्त महाराणा प्रताप ने मान सिंह के ऊपर प्रहार किया तो अपने से बेहद ऊंचे हाथी पर छलांग लगाकर उसके मस्तक पर टाप से प्रहार करने में अपने परमवीर स्वामी महाराणा प्रताप की तरह चेतक बिल्कुल भी नहीं घबराया.

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इतिहासकारों का कहना है कि हल्दीघाटी के यु्द्ध में चेतक के पैर में तलवार से वार किया गया लेकिन अपने स्वामी महाराणा प्रताप के प्राणों की रक्षा के लिए चेतक बिना रुके दौड़ता रहा और रास्ते में पड़े 26 फीट चौड़े एक बरसाती नाले को भी एक छलांग में पार कर गया. चेतक ने इस युद्ध में अपने स्वामी महाराणा प्रताप के प्राणों की तो रक्षा कर ली लेकिन अपने आपको स्वामी भक्ति में बलिदान कर दिया. इस यु्द्ध में चेतक के बलिदान को देख महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा भी बेहद भावुक हो गए थे और उनकी आंखें इस वफादार सेवक की याद में डबडबा गई थी. इसी जगह पर चेतक का अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप और उनके छोटे भाई शक्ति सिंह ने मिलकर किया और  वहीं पर शहीद चेतक की समाधि बनाई गई थी. हल्दी घाटी आने वाले देश विदेश के लाखों लोगों जब चेतक की समाधि पर पहुंचते हैं तो  बरबस ही हल्दी घाटी के युद्ध की यादें ताजा हो जाती हैं. 

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