PM Modi@ Sawaliya Seth: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेठों के सेठ सांवलिया सेठ कहलाने वाले सांवलिया सेठ मंदिर के दर्शन किए. कहा जाता है कि सांवलिया सेठ को उद्योगपति अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाते हैं. सांवलिया सेठ श्री कृष्ण के ही रूप है, जिनका संबंध मीराबाई से भी बताया जाता है.
भगवान श्री कृष्ण को कई नाम से पुकारा जाता है इनमें से एक नाम सांवलिया सेठ भी है. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ स्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि बिजनेसमैन अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए श्री कृष्णा रूपी सांवलिया सेठ को अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं. लोग अपनी खेती, कारोबार, घर का हिस्सा भी सांवलिया सेठ को देते हैं. इतना ही नहीं बल्कि यहां लोग अपने हर महीने की कमाई का एक हिस्सा भी सांवलिया सेठ मंदिर को दान करते हैं.
सांवलिया सेठ का मीराबाई से भी संबंध है. मीराबाई सांवलिया सेठ की ही पूजा किया करती थी, जिन्हें वह गिरधर गोपाल कहती थी. कहा जाता है कि मीराबाई संतों के साथ भ्रमण किया करती थी और उनके साथ श्री कृष्ण की मूर्ति रहती थी. दयाराम नामक संत की जमात के पास भी ऐसी ही मूर्तियां रहती थी.
एक बार जब औरंगजेब की सेना ने मंदिर में तोड़फोड़ करते हुए मेवाड़ पहुंची तो वहां पर उसकी मुगल सेना को उन मूर्तियों के बराबर बारे में पता लगा तो वह उन्हें ढूंढने लगे. इस बात की खबर लगते ही संत दयाराम ने इन मूर्तियों को भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा के छापर में एक वट वृक्ष के नीचे खोद कर छुपा दिया.
साल 1940 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नमक गवाले को सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा के छापर में भगवान की चार मूर्तियां भूमि में दबी हुई है. सपने में देखने के बाद उस भूमि की खुदाई की गई तो सब आश्चर्यचकित रह गए. वहां से एक जैसी चार मूर्तियां निकल गई. देखते ही देखते ही खबर आग की तरह फैल गई और आसपास के लोग प्राकट्य स्थल पर एकत्रित हो गए.
इसके बाद सर्व समिति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाया गया. भादसोड़ा में प्रसिद्ध संत पुजारी भगत रहते थे. उनके निर्देश पर उदयपुर मेवाड़ राज परिवार के भिंडर ठिकाने की ओर से सांवलिया सेठ मंदिर का निर्माण करवाया गया.
चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को अब सांवलिया सेठ के रूप में जाना जाता है, जबकि मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई स्थल पर ही स्थापित किया गया और वह प्राकट्य स्थल मंदिर कहलाता है, जबकि सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर अपने घर ले गए और वहां उन्होंने स्थापित कर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी. इनमें से एक मूर्ति खंडित हो गई जिससे वापस उसी जगह पर पधरा दिया गया.