महाभारत काल से चली आ रही परंपरा निभा रहे नागौर के इस गांव के लोग, एक श्राप से जुड़ी है कहानी
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महाभारत काल से चली आ रही परंपरा निभा रहे नागौर के इस गांव के लोग, एक श्राप से जुड़ी है कहानी

Nagaur News : केरु पांडू तालाब पर किया श्रमदान, निभाई महाभारत काल से चली आ रही परंपरा, मान्यता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव पुत्रों ने यहां 12 वर्ष तक तपस्या करते हुए तालाब की खुदाई की.

 

महाभारत काल से चली आ रही परंपरा निभा रहे नागौर के इस गांव के लोग, एक श्राप से जुड़ी है कहानी

Nagaur News : महाभारत काल में अज्ञातवास निकाल रहे पांडव पुत्रों द्वारा कुरड़ायां ग्राम में खोदे गए तालाब पर पौराणिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए स्थानीय लोगों सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आए ग्रामीणों ने श्रमदान कर सफाई करते हुए तालाब की पवित्र माटी अपने खेतों में ले जाकर हाली अमावस्या की पूजा अर्चना की. बताया जाता है कि इसी तालाब पर 12 वर्षों की तपस्या के दौरान सोमवती अमावस्या नहीं आने से नाराज पांडव पुत्रों द्वारा वर्ष में 12 बार सोमवती अमावस्या आने का श्राप दिया गया था.

मेड़ता उपखंड के कुरडायां ग्राम के केरू पांडव तालाब पर पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए तालाब में खुदाई , साफ - सफाई कर श्रमदान किया गया. हाळी अमावस्या के अवसर पर ग्रामीणों द्वारा तालाब की खुदाई कर तालाब की पवित्र माटी को अपने खेतों में ले जा पूजा अर्चना कर उन्नत फसल और खुशहाली की कामना की जाती है. बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है कि यहां पांडवों ने सोमवती अमावस्या का आव्हान करते हुए अज्ञातवास के दौरान 12 वर्षों तक तपस्या की मगर इन 12 वर्षों में सोमवती अमावस्या नहीं आई.

जिससे नाराज पांडव पुत्रों ने 12 महीनों में 12 बार सोमवती अमावस्या आने का श्राप दिया. तभी से 1 साल में 12 बार सोमवती अमावस्या आती है. धोनी के नाथ संप्रदाय महाराज श्याम नाथ बताते है. कि पांडव पुत्रों के बाद तालाब की खुदाई सोमाणियों द्वारा मजदूरों को जन्म देकर करवाई गई. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए कुरडाया ग्राम सहित फालकी,मुगदडा,बड़गांव, बीटन, रामनिवास,पिथास, खाखडकी गाँवो की महिला पुरूष यहां पहुंच कर श्रमदान करते हुए तालाब की पूजा करते हैं.

1 :- नारायण राम ने बताया कि श्रद्धा अनुसार मिट्टी हटाकर ताला सफाई करते हैं प्रतिमा एकादशी और अमावस्या के दिन पांडव परंपरा का निर्वहन किया जाता है यह कौरव पांडव तालाब के नाम से जाना जाता है.

2 :- रामचंद्र पिचकीया के अनुसार पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान कुरड़ायां ग्राम में सिर्फ ढाई फावड़ा चलाकर तालाब की खुदाई की थी. इस तालाब की विशेषता यह है कि पशुओं को होने वाली मुंह पक्का और खुर पक्का बीमारी के समय तालाब की मिट्टी बिछाने मात्र से पशु रोग मुक्त हो जाता है.

3 :- पुनाराम प्रजापत बताते हैं कि पांडवों द्वारा 12 वर्षों तक तपस्या की गई तब उन्होंने अपनी पहचान छोड़ने के लिए ढाई फावड़ा से तालाब की खुदाई की और तपस्या काल में एक बार भी सोमवती अमावस्या नहीं आने से नाराज पांडवों ने सोमवती अमावस्या को 12 माह में 12 बार आने का श्राप दिया.

4 :- नाथ संप्रदाय के संत श्याम नाथ महाराज के मुताबिक पांडवों के पश्चात सोमानियो द्वारा इस तालाब की खुदाई गेहूं और तेल देकर करवाई गई उस समय मैं बाल्यावस्था में था.

कुरड़ाया ग्राम स्थित केरू पांडव तालाब को लेकर मान्यता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव पुत्रों ने यहां 12 वर्ष तक तपस्या करते हुए तालाब की खुदाई की. इस तालाब को लेकर यह भी मान्यता है कि पशुधन को होने वाली मुंह पक्का और खुर पक्का बीमारी पर इस मिट्टी को लगाने से पशुधन रोग मुक्त हो जाता है.

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