Judicial custody and police custody: ये जानना आपके लिए जरुरी है कि पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर होता है, हिरासत से अलग कैसे होती है गिरफ्तारी ?
Trending Photos
Judicial custody and police custody: पुलिस हिरासत और गिरफ्तारी में क्या फर्क होता है. पुलिस कस्टडी और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर होता है. कानून का ये बेहद आसान शब्द है जिसे हम आए दिन सुनते है. लेकिन बहुत सारे लोग इसका अंतर नहीं जानते है. तो आइए समझते है
अक्सर लोग हिरासत और गिरफ्तार का एक ही मतलब समझते है. इन दोनों को पर्यायवाची शब्द समझते है. लेकिन ऐसा नहीं है. कस्टडी का मतलब होता है हिरासत. इसे आसान शब्दों में यूं समझिए. कि किसी को अपने पास रखकर उसे सुरक्षा देना. लेकिन हिरासत की परिस्थितियां अलग अलग हो सकती है. एक हत्यारा भी पुलिस या न्यायिक हिरासत में हो सकता है. बड़े स्तर के धरना प्रदर्शन में भी कई लोगों को पुलिस अपनी हिरासत में लेती है.
ऐसे में सवाल ये है कि अगर बिना अपराध किए भी हिरासत में लिया जा सकता है. और अपराधी को भी हिरासत में लिया जाता है. तो दोनों में क्या अंतर है. इस अंतर को समझने के लिए हिरासत ( custody ) के प्रकारों को समझना होगा.
जब किसी व्यक्ति को पुलिस अपने कब्जे में लेती है. तो उसे हिरासत में लेना कहते है. किसी भी सामान्य वजहों से पुलिस व्यक्ति को हिरासत में लेती है. तो 24 घंटे के भीतर उसे छोड़ना होता है. लेकिन पुलिस अगर किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है. जिसे हिरासत में लेना गंभीर मामले की जांच के लिए जरुरी हो. सीआरपीसी की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है. पुलिस अगर कोर्ट में ये मांग करती है कि संबंधित मामले की गंभीरता को देखते हुए उस व्यक्ति को पुलिस अपनी हिरासत में रखना चाहती है. ताकि संबंधित अपराध की जांच के लिए पुलिस पूछताछ, घटना स्थल का दौरा और दूसरी कार्रवाई की जा सके.
पुलिस हिरासत पर कोर्ट उस मामले की गंभीरता के आधार पर आदेश देता है. विशेष मामलों में पुलिस हिरासत को 15 दिन से बढ़ाकर 30 दिन भी किया जा सकता है.
जब संबंधित व्यक्ति को कोर्ट में पेश किए जाने के बाद मजिस्ट्रेट उसे पुलिस को सौंपने की बजाय अपने संरक्षण में रखता है. तो उसे न्याय की हिरासत यानि न्यायिक हिरासत या ज्यूडिशियल क्सटडी कहते है. न्यायिक हिरासत में भेजे गए व्यक्ति के संरक्षण की जिम्मेदारी मजिस्ट्रेट की होती है.
अगर किसी व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है तो पुलिस को उस मामले में 60 दिन के अंदर अंदर आरोप पत्र पेश करना जरुरी होता है.
1. पुलिस हिरासत में व्यक्ति को थाने में रखा जाता है तो वहीं न्यायिक हिरासत के समय व्यक्ति को जेल में रखा जाता है.
2. पुलिस हिरासत में लिए गए इंसान को 24 घंटे के भीतर भीतर कोर्ट में पेश करना जरुरी होता है तो वहीं न्यायिक हिरासत की कोई समयावधि नहीं होती है. जब तक उस मामले की जांच चलती है तब तक उस व्यक्ति को ज्यूडिशियल कस्टडी यानि जेल में रखा जाता है.
3. पुलिस कस्टडी में इस बात की संभावना भी रहती है कि आरोपी से सच उगलवाने के लिए पुलिस उसे पीट भी सकती है. लेकिन न्यायिक हिरासत में पिटाई नहीं होती है.
4. पुलिस कस्टडी में संबंधित व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. तो वहीं ज्यूडिशियल कस्टडी ( न्यायिक हिरासत ) में व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी न्यायाधीश की होती है.
5. लूट, हत्या या चोरी के मामलों में पुलिस कस्टडी होती है. जबकि अन्य सभी मामलों में जब व्यक्ति कोर्ट की अवहेलना कर रहा हो या उसकी जमानत खारिज कर दी जाती है तो उसे न्यायिक हिरासत में ले लिया जाता है.
सामान्य परिस्थितियों में जब किसी मामले में पुलिस किसी व्यक्ति को उसकी सुरक्षा के लिए(धरना प्रदर्शन के हालात में) या किसी मामले में जानकारी जुटाने के लिए थाने ले जाती है. तो उसे हिरासत में लेना कहते है. लेकिन हिरासत में लिए व्यक्ति को उसके संविधान प्रदत्त अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है.
हिरासत में लिए गए व्यक्ति को लॉक अप में नहीं डाला जा सकता. हिरासत में लिए व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं की जा सकती. परिवार से बात करने, घर से खाना मंगवाने या दूसरे अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.
गिरफ्तार करने के बाद उस व्यक्ति को पुलिस लॉक अप में डाल सकती है. सच उगलवाने के लिए सख्ती कर सकती है. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को संविधान प्रदत्त कुछ अधिकारों से भी वंचित किया जा सकता है.
खबरें और भी हैं-
भारतीय कानून में विधवा महिलाओं को क्या क्या अधिकार मिले हुए हैं
तुर्रम खान कौन थे, जिसका नाम लेकर लोग हेकड़ी दिखाते है
रेलवे में 72 हजार जॉब पर बहुत बड़ी खबर, सरकार ने राज्यसभा में दी जानकारी