मुश्किल और कीचड़ से भरी शिक्षा की डगर, जर्जर भवन में भी डर के साए में चलती है पढ़ाई
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मुश्किल और कीचड़ से भरी शिक्षा की डगर, जर्जर भवन में भी डर के साए में चलती है पढ़ाई

राज्य सरकार भले ही शिक्षा के विकास और सुविधाओं के नाम करोड़ो रुपये खर्च करने के बड़े-बड़े दावे करती हो लेकिन आज भी कई जगह शिक्षा के मन्दिर तक पहुंचने में भी लोगों को खासी समस्याओ का सामना करना पड़ता है.

कीचड़ से भरी शिक्षा की डगर

Pipalda: राज्य सरकार भले ही शिक्षा के विकास और सुविधाओं के नाम करोड़ो रुपये खर्च करने के बड़े-बड़े दावे करती हो लेकिन आज भी कई जगह शिक्षा के मन्दिर तक पहुंचने में भी लोगों को खासी समस्याओ का सामना करना पड़ता है. कहीं विद्यालय के रास्तों में कीचड़ मचा हुआ है तो कहीं शिक्षा का मंदिर विद्यालय भवन ही जीर्ण-शीर्ण होकर गिरने के कगार पर है. 

क्षेत्र में भी कई गांवों के विद्यालयों के ऐसे ही हाल है, जहां आज भी बच्चे क्षतिग्रस्त भवन में डर के साए में पढ़ने को मजबूर है. दीगोद उपखंड मुख्यालय के शोली गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में तो खस्ताहाल भवन के नीचे बच्चों को डर के साये में शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है. वहीं विद्यालय आने के लिए भी पहले कीचड़ भरी डगर का सामना करना पड़ता है, ऐसे में परेशानी के चलते अब अभिभावक बच्चों को विद्यालय भेजने में भी कतराने लगे है.

कीचड़ से होकर पहुंचते है विद्यालय
हालात यह है कि शोली में सरकारी स्कूल तक पहुंचने में पसीने छूट जाते है. कारण है रास्ते में पानी के भराव के कारण होने वाला कीचड़. भाजपा किसान मोर्चा जिला मंत्री कमल सिंह गुर्जर ने बताया कि आज के दौर में शिक्षा बेहद जरूरी है क्योंकि बच्चे ही देश का भविष्य है लेकिन शोली में बच्चों को विद्यालय जाने से पहले भी कीचड़ की परेशानी उठानी पड़ती है, यहां विद्यालय में 140 बच्चों का नामांकन है और 8 अध्यापक कार्यरत है लेकिन विद्यालय जाने के लिए सड़क में नालियां नहीं है ऐसे में पानी का निकास नहीं होने से कीचड़ ही कीचड़ मचा रहता है. अब तो अभिभावक भी इस समस्या के कारण परेशान होकर बच्चों को निजी विद्यालय में भेजने को मजबूर है, जहां प्रतिदिन कोई न कोई विद्यार्थी इस कीचड़ में गिर जाता हैं.

शिकायतों के बाद भी नहीं हुआ समाधान
विद्यालय शिक्षक मुकुटबिहारी यादव ने बताया कि बच्चों और अध्यापकों तक को कीचड़ की वजह से विद्यालय में पहुंचने में परेशानी होती है और जैसे-तैसे कर विद्यालय भी चल जाए तो वहां बारिश के समय बैठने तक की जगह नहीं मिलती. कई साल पुराना भवन होने से कमरों की आरसीसी तक के कई जगह से सरिए तक निकल आए है, जिसके चलते बच्चों को कमरों में बिठाने में भी डर लगता हैं.
अनहोनी के अंदेशे के चलते बरामदों में कक्षाएं लगाई जाती है. ग्रामीणों ने शिक्षा विभाग और जनप्रतिनिधियों से विद्यालय के बच्चों की समस्या समाधान करने की मांग की है.

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