निगम की जमीन पर अवैध कब्जा कर संवेदकों ने लगाई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, राजकोष को लाखों की चपत
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निगम की जमीन पर अवैध कब्जा कर संवेदकों ने लगाई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, राजकोष को लाखों की चपत

कोटा नगर निगम की शहर के बीचों-बीच पशु मेले की बेश-कीमती जमीन पर कुछ लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर, बिल्डिंग मैटेरियल बनाने की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट डाल कर बड़े स्तर पर व्यापार किया जा रहा हैं.

जमीन पर अवैध कब्जा कर लगाई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट

Kota: कोटा नगर निगम की शहर के बीचों-बीच पशु मेले की बेश-कीमती जमीन पर कुछ लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर, बिल्डिंग मैटेरियल बनाने की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट डाल कर बड़े स्तर पर व्यापार किया जा रहा हैं. दशहरा मैदान के बगल में स्तिथ पशु मेला परिसर में लगी ये मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पूरी तरह से अवैध हैं, नगर निगम से इन यूनिट्स के लिए कोई इजाजत नहीं ली गई है और ना ही नगर निगम द्वारा इन लोगों से कोई किराया वसूला जा रहा हैं.  ऐसे में निगम के अफसरों की मेहरबानी से शहर के बीच सरकारी जमीन पर बिना इजाजत और बिना किराया दिए कुछ लोग चांदी कूट रहें हैं और राजकोष को चूना लगा रहें हैं. दक्षिण कोटा निगम के अधिकारी इन लोगों पर विशेषरूप से मेहरबान हैं, इसीलिए ये बिना किसी बंदिश के धड़ल्ले से निगम के दफ्तर के सामने स्तिथ विशालकाय भूखंड पर ब्लॉक्स,टाइल्स सहित अन्य मैटेरियल का निर्माण कार्य कर बेच रहें हैं.

मौके पर बाकायदा ब्लॉक, ड्रेन कर्व स्टोन ,कोबल स्टोन तैयार करने की 5से 6 मशीनें लगी हुई हैं ,यहां तक कि लोहे की शीट से ऑफिस भी बनाये गए हैं,  यूनिट में काफी मजदूर भी काम में लगे हुए हैं. जगह जगह बड़ी मात्रा में निर्माण किये गए मैटेरियल का ढेर लगा हुआ है, जो बाजार में बेचे जाने के लिए तैयार किया जा रहा हैं. पूरे परिसर में गंदगी और मैटेरियल का अंबार लगा हुआ है, लगभग 80 प्रतिशत इलाके में आरयूआईडीपी द्वारा शहर में करवाये जा रहें सीवरेज के कार्यो में काम आने वाले पाइप पड़े हुए हैं, वहीं 20 प्रतिशत भाग पर ये ब्लॉक, कर्व स्टोन बनाने की अवैध यूनिट्स लगी हुई हैं. जिनके लिए संचालनकर्ताओं ने नगर निगम से किसी तरह का कोई अनुबंध नहीं किया है और ना ही सरकार को इसका किराया चुकाया जा रहा है.

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ऐसे में सवाल ये है कि जब सरकार को किराया नही दिया जा रहा हैं, तो फिर कुछ लोगों पर ये मेहरबानी क्यों कि जा रही है?  सरकार को आर्थिक नुकसान की कीमत पर कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ क्यों दिया जा रहा हैं? हालाकिं ये भी जांच का विषय है कि इन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को चलाने के लिए बिजली और पानी कहाँ से आ रहा है? बिजली और पानी का कोई वैध कनेक्शन विभागों द्वारा तो जारी नहीं किया गया है, या संचालनकर्ताओं द्वारा बिजली और पानी भी अवैध रूप से लिया जा रहा हैं ? जानकारों के मुताबिक़ ऐसे किसी परिसर को विशिष्ट परिस्थितियों में दिए जाने से पहले सार्वजनिक निर्माण विभाग से उस क्षेत्र का रेंट असेस्मेंट करवाया जाता हैं और किराया निर्धारण होने के बाद बाकायदा रेंट एग्रीमेंट कर शर्तों के मुताबिक एक निश्चित किराया प्रतिमाह वसूला जाता हैं. बिना शर्त राजकीय भूमि को निजी उपयोग के लिए दिया जाना नियमविरुद्ध है, आश्चर्यजनक बात ये है कि हर माह मोटी तनख्वाह लेने वाले जिम्मेदार अफसरों से जब इस बाबत बात की तो वे जांच करवा लेंगे का राग अलापते नजर आयें. सवाल ये है कि जांच अब तक क्यों नही हुई? कैसे कुछ लोग बिना इजाजत के कई महीनों से सरकारी जमीन पर मशीन लगा कर लघु उद्योग कर रहें हैं और विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी? अब देखना होगा कि यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के विभाग में, उन्हीं के विभाग के अफसरों की लापरवाही से राजकोष हो रहें आर्थिक नुकसान की भरपाई आखिर किसकी जेब से होती हैं. 

Reporter - KK Sharma

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