Holi 2024: ना रंग ना पानी! बिश्नोई समाज कुछ इस अंदाज में मनाता है होली, विश्व भर के पर्यावरण हो जाएंगे मुरीद
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Holi 2024: ना रंग ना पानी! बिश्नोई समाज कुछ इस अंदाज में मनाता है होली, विश्व भर के पर्यावरण हो जाएंगे मुरीद

Bishnoi community Holi 2024: ओसिया रंगों का पर्व होली अब भारत से निकलकर दुनिया के कोने - कोने में मनाए जाने लगा है. काफी समय पहले यहां पेड़ों को बचाने के लिए 363 लोगों ने अपनी जान दे दी थी.

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Bishnoi community Holi 2024: ओसिया रंगों का पर्व होली अब भारत से निकलकर दुनिया के कोने - कोने में मनाए जाने लगा है.  वह बिश्नोई समाज के लोग होली पर होलिका दहन नहीं करते और ना ही दुलहंडी में  रंग गुलाल का उपयोग करता समाज के गुणतीस नियम बने हैं. ये अधिकांश नियम पर्यावरण संरक्षण से जुड़े हैं.

गौरतलब है कि काफी समय पहले यहां पेड़ों को बचाने के लिए 363 लोगों ने अपनी जान दे दी थी. उनके अनुयायियों का मानना है कि, होलिका दहन में लकड़ियों का इस्तेमाल होता है और ज्वाला के दौरान सैकड़ों कीड़े पतंगे इसमें गिर कर मर जाते हैं इसलिए समाज के लोग होली दहन के दौरान कहीं ज्वाला भी देखना पसंद नहीं करते हैं नहीं कोई खुशी मनाते हैं.

समाज के लोग खुद को  मानते हैं प्रह्लाद पंथी
वहीं  दूसरे दिन सामूहिक हवन के बाद पाल बनाकर प्रसाद लेते हैं. इसके बाद सादा बाजरा का खिचड़ा बनाकर भोजन करते हैं. राजस्थान, पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली और गोवा सहित कई अन्य राज्यों में रहने वाले बिश्नोई समाज इसी तरीके से होली मनाता आ रहा है. परंम्परा के अनुसार विश्नोई समाज के लोग खुद को प्रह्लाद पंथी मानते हैं, जब होली के दिन होली का भक्त पहलाद को लेकर चिंता में बैठती है तो उस समय बिश्नोई समाज पहलाद के जल जाने की आशंका को लेकर गमगीन हो जाता है लेकिन जैसे ही दूसरे दिन यानी रामा श्यामा को होल का के जल जाने और पहलाद के बस जाने की खबर मिलती है तो खुशी में हवन आदि करते हैं.

न पानी न रंग गुलाल
विश्नोई समाज से युवा समाजसेवी सहीराम खीचड़ (भेड़) ने बताया कि, जल संरक्षण के लिए पानी में रंग सुखी गुलाल नहीं उड़ा कर रामा श्यामा के लिए सफेद कपड़े मैं एक दूसरे के घर जाकर होली की बधाइयां देते हैं साथ ही समाज जनक अपने गुरु जंभेश्वर भगवान के बताएं शब्दों का पाठ करते हैं पवित्र पाल बनाते हैं बाद में सभी को जल के रूप में प्रसादी दी जाती है यश अधिकरण माना जाता है पाल हवन गांव के मंदिर या सार्वजनिक स्थान पर होता है इसमें हर घर में गाय का शुद्ध घी अनाज लाना अनिवार्य होता है इसी घी से साल भर यज्ञ होता है अतिरिक्त अनाज से साल भर पक्षियों के लिए चुगा डालने काम लिया जाता है

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