Pokhran: हजारों किलोमीटर का सफर तय कर लाठी पहुंचे मैक्वीन बस्टर्ड, पक्षी-प्रेमियों में खुशी की लहर
Advertisement

Pokhran: हजारों किलोमीटर का सफर तय कर लाठी पहुंचे मैक्वीन बस्टर्ड, पक्षी-प्रेमियों में खुशी की लहर

Pokhran: सर्दी के मौसम में देश-विदेश से हजारों पक्षी वन्य जीव और पक्षी बाहुल्य लाठी क्षेत्र में प्रवास के लिए आते हैं. जिसमें मैक्वीन बस्टर्ड (तिलोर) पक्षी भी हर साल लाठी क्षेत्र में डेरा डालते है.

मैक्वीन बस्टर्ड

Pokhran News: सर्दी के मौसम में देश-विदेश से हजारों पक्षी वन्य जीव और पक्षी बाहुल्य लाठी क्षेत्र में प्रवास के लिए आते हैं. जिसमें मैक्वीन बस्टर्ड (तिलोर) पक्षी भी हर साल लाठी क्षेत्र में डेरा डालते है. हर साल की भांति इस बार भी शरद ऋतु की शुरुआत होते ही हजारों किलोमीटर का सफर तय कर लाठी क्षेत्र में पहुंचना शुरू हो गए हैं, जिससे पक्षी-प्रेमियों में खुशी की लहर है. 

पक्षी प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि यह प्रवासी पक्षी तिलोर हर साल पशु और पक्षी बाहुल्य लाठी क्षेत्र के धोलिया, चांधन, खेतोलाई, सोढाकोर में प्रवास के लिए आते हैं. यह अफ्रीका, ईरान, पाकिस्तान, चीन, मंगोलिया और भारत के कुछ हिस्सों में पाया जाता है. यह इन्हीं देशों से पक्षी और वन्यजीव बाहुल्य लाठी क्षेत्र में आता है. पक्षी प्रेमी विश्नोई का कहना है कि यह बहुत ही शर्मिला पक्षी है. यह ज्यादातर समय जमीन पर रहता है और अंडे भी खुले में देता है.

यह भी पढ़ें - राजस्थान में प्रचंड बारिश का कहर, अगले 3 दिनों तक इन जिलों में झमाझम बरसेंगे बादल

तिलोर की विशेषताएं
- तिलोर या मैक्वीन बस्टर्ड, गोडावण परिवार का एक मध्यम आकार का शीत प्रवासी पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क इलाकों में सर्द ऋतु में प्रवास पर आता हैं.
- यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक आमतौर पर विचरण करता है.
- इससे पूर्व 19वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन तक इन्हें देखा जा सकता था.
- एक अध्यनन के अनुसार इनकी संख्या में कमी का प्रमुख कारण मुख्य रूप से शिकार और बड़े स्तर पर भूमि उपयोग में परिवर्तन हैं.
- वर्ष 2004 तक इनकी वैश्विक आबादी में 20 से 50 फीसदी की कमी देखी गई है.
- वर्ष 2003 में हुए अनुवांशिक शोध में इनको साधारण हुबारा बस्टर्ड से अलग किया गया और अब ये हुबारा बस्टर्ड की एक उपप्रजाति मैक्वीन बस्टर्ड या एशियन हुबारा के रूप में जानी जाती हैं.
- सदियों से इनका शिकार पारंपरिक रूप से पालतू बाज की ओर से किया जाता रहा हैं. अरब देशों के धनाढ्य लोग भी इसका शिकार करते है.
- तिलोर की लगातार घटती संख्या को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने वर्ष 1970 में कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रयास शुरू करवाए.
- राजधानी अबु धाबी में इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का गठन कर संरक्षण के प्रयास किए.
- 1986 में सऊदी अरब में एक सहित कुछ बंदी प्रजनन सुविधाएं बनाई गई थी और 1990 के दशक के उत्तरार्ध से कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिलने लगी.
- शुरुआत में जंगली और बाद में पूरी तरह से कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग करके इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई.
- बसंत में प्रजनन के बाद एशियाई हुबारा दक्षिण में पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और पास के दक्षिण पश्चिम एशिया में सर्दियों में बिताने के लिए पलायन करते है.
- कुछ एशियाई हुबारा ईरान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के कुछ हिस्सों सहित दक्षिणी सीमा में रहते हैं और प्रजनन करते है.
- यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक मिलता है.
- बसंत में प्रजनन के बाद एशियाई हुबारा दक्षिण में पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और पास के दक्षिण पश्चिम एशिया में सर्दियों में बिताने के लिए पलायन करते हैं. कुछ एशियाई हुबारा ईरान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के कुछ हिस्सों सहित दक्षिणी सीमा में रहते हैं और प्रजनन करते है.

खबरें और भी हैं...

अडानी का राहुल करते है विरोध, राजस्थान में गहलोत ने किया स्वागत, क्या बोली कांग्रेस

इन्वेस्ट राजस्थान समिट-2022: राजस्थान निवेश के लिए आदर्श राज्य,11 लाख करोड़ रूपये के एमओयू साइन

मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे के भविष्य के लिए नई कामयाबी लेकर आया 'इन्वेस्ट राजस्थान' का पहला दिन

Rajasthan NEET PG 2022 Counselling: पहले राउंड के सीट आवंटन का रिजल्ट जारी, ऐसे देखे अपना रिजल्ट

Trending news