करीब 30 सालों से शिक्षक तबादला नीति बनाने के लिए प्रदेश सरकार पर दबाव बना रहा है, लेकिन आज तक कांग्रेस और भाजपा की सरकारों में कमेटी गठित कर मामले को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा.ऐसे में अब शिक्षक सरकार के खिलाफ आरपार की लड़ाई के मूड में है.
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जयपुर: पिछले कई सालों से राजस्थान के शिक्षक तबादलों के लिए अनेकों अनेक सरकार से गुहार लगा रहे हैं. लेकिन सरकार द्वारा तबादला नीति नहीं बनाई जाने के कारण शिक्षकों को लंबे समय से तबादलों का इंतजार करना पड़ रहा है. इसी को लेकर प्रदेश के सभी शिक्षक समय-समय पर सरकार पर दबाव बनाने के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं. लेकिन फिर भी इनकी मांगे पूरी नहीं होती है.
अगर हम बात करें 90 के दशक की तो मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने अनिल बालोदिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करा था. अनिल बालोदिया ने शिक्षक तबादला नीति पर काम करते हुए 2 साल में रिपोर्ट बनाकर सरकार को पेश की थी, लेकिन भैरों सिंह शेखावत सरकार ने उसको ठंडे बस्ते में डाल दिया. इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई, जिसमें अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पूरा कार्यकाल तबादला नीति बनाने में ही निकाल दिया, जिसके चलते शिक्षकों में भारी रोष रहा और प्रदेश में लगातार धरने प्रदर्शन होते रहे और कांग्रेस सरकार विधानसभा चुनाव में हार गई.
राजे सरकार में भी बनी थी कमेटी
इसके बाद वसुंधरा राजे के नेतृत्व में शिक्षा मंत्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया. गुलाबचंद कटारिया समिति ने प्रारूप बना लिया और शिक्षकों से सुझाव भी मांगे गए. इन सभी बातों में 5 साल बीत गए, और वसुंधरा सरकार भी चली गई. इसी बीच कांग्रेस की सरकार आई मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गोविंद सिंह डोटासरा को शिक्षा मंत्री बनाया, डोटासरा ने ओंकार सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करा, इस कमेटी ने अन्य राज्यों की राय मांगी गई, रिपोर्ट आती उसके पहले ही डोटासरा का विभाग उनसे वापस ले लिया गया.
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फर्स्ट और सेकेंड ग्रेड में शिक्षकों के हजारों पद खाली
इसके बाद बीडी कल्ला को शिक्षा मंत्री बनाया बीडी कल्ला ने कहा कि रिपोर्ट अधूरी है, परीक्षण करवाया जाएगा अन्य राज्यों से बात की जाएगी, इसी बीच सरकार के 4 साल पूरे होने को आए, लेकिन तबादला नीति पर किसी भी सरकार ने कोई भी नीति नहीं अपनाई, जिसके कारण प्रदेश के दूर-दराज में नौकरी करने वाले शिक्षकों को तबादलों के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा. प्रदेश में फर्स्ट ग्रेड अध्यापक पद के 67 हज़ार पद सर्जित है, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते 21 प्रतिशत पद खाली है.
वहीं, दूसरी ओर सेकेंड ग्रेड प्रारंभिक अध्यापक पद के 18281 पद सर्जित है, लेकिन 5 हज़ार पद खाली है. इसी कड़ी में माध्यमिक शिक्षा अध्यापक के 75372 पद सर्जित है, लेकिन 17 हज़ार पद खाली है. इसके अलावा दूसरी और थर्ड ग्रेड प्रारंभिक अध्यापक की बात की जाए तो 1लाख 90 हज़ार पद सर्जित हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते 48 हज़ार पद खाली है. वहीं, थर्ड ग्रेड माध्यमिक शिक्षक की बात की जाए तो 86 हज़ार पद सृजित है, उदासीनता के चलते 17 हज़ार पद खाली है.
शिक्षक तबादलों की लगातार उठाते आ रहे मांग
इसी के साथ ही प्रदेश में 22 हज़ार प्रबोधक पद सर्जित हैं, इन प्रबोधक पद की नियुक्ति सेवानिवृत्ति के साथ ही पदो को समाप्त की जा रही है, ऐसे में प्रबोधक पद पर अन्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. वहीं अगर दूरदराज के क्षेत्र ट्राइबल एरिया की बात की जाए तो बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर सहित उदयपुर और सिरोही का आंशिक भाग TSP शिक्षक श्रेणी पद में आता है, यहां पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए इन पदों पर शिक्षकों की भर्ती की गई थी, लेकिन आज वही शिक्षक शपथ पत्र देने के बाद अन्य जिलों में अपने तबादलों की मांग उठा रहे हैं.
प्रदेश में समय-समय पर शिक्षक तबादलों की मांग उठाते आ रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार हर बार तबादला नीति बनाने की बात करते हुए शिक्षकों के तबादले नहीं कर रही है. जिसके चलते प्रदेश के शिक्षकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. शिक्षक भी यही चाहते हैं कि सरकार के कार्यकाल को पूरा होने में 1 साल बचा है. जिस कारण प्रदेश में तबादला नीति जारी कर शिक्षकों के तबादलों की मांग जोरशोर से उठाई जा रही है.
Reporter- Anoop Sharma