कुत्तों का आतंक जारी,बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम फेल, जयपुराइट्स बन रहे निवाला
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कुत्तों का आतंक जारी,बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम फेल, जयपुराइट्स बन रहे निवाला

Dog bite case increasing in jaipur: प्रदेश की राजधानी  के मुख्य मार्गों, आउटर और पॉश कालोनियों में डॉग बाइट के काफी केस सामने आ रहे है.नगर निगम प्रशासन की ओर से बधियाकरण प्रोग्राम के नाम पर करोड़ो खर्च हो रहे हैं 

कुत्तों का आतंक जारी,बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम फेल, जयपुराइट्स बन रहे निवाला

Dog bite case increasing in jaipur: प्रदेश की राजधानी  के मुख्य मार्गों, आउटर और पॉश कालोनियों में डॉग बाइट के काफी केस सामने आ रहे है.नगर निगम प्रशासन की ओर से बधियाकरण प्रोग्राम के नाम पर करोडों खर्च हो रहे हैं लेकिन निगम के पास मॉनिटरिंग का कोई सिस्टम नहीं होने से एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम फेल हो गया हैं..जिसके कारण कुत्तों की संख्या में कंट्रोल नहीं हो रहा हैं आए दिन कुत्तों का शिकार जयपुराइट्स हो रहे हैं.

राजधानी में आवारा कुत्तों से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए सरकारी सिस्टम सालाना करोड़ों रूपए खर्च कर रहा है.नगर निगम ग्रेटर प्रशासन बधियाकरण की प्रक्रिया टेंडर में उलझा हुआ हैं तो नगर निगम हैरिटेज ने एक माह पहले ही बधियाकरण का काम शुरू किया हैं..कुत्तों के काटने के मामले शहर में तेजी से बढ़ने के बाद भी राजधानी की दोनों शहरी सरकारें एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम को लेकर गंभीर नहीं हैं..

दोनों शहरी सरकार चार करोड़ रुपए खर्च कर भी कुत्तों का एनिमल बर्थ कंट्रोल आउट ऑफ हैं.बता दें कि ग्रेटर नगर निगम में तो आठ माह से कुत्तों का बधियाकरण रुका हुआ है..शहर में सरकारी अधिकारी जल्द ही शुरू करने का दावा कर रहे हैं..आवारा कुत्तों का एंटी रैबीज वैक्सीन लगाने वाली और बधियाकरण करने वाली फर्म ने बकाया  भुगतान न होने से काम बंद कर दिया.

गौरतलब है कि अब तक न तो निगम ने भुगतान किया और न ही फर्म ने काम चालू किया. वहीं हैरिटेज नगर निगम में सितंबर महीने से बधियाकरण का काम शुरू हुआ हैं..प्रतिदिन 20 कुत्तों का बधियाकरण किया जा रहा है.हालांकि, प्रति कुत्तों दर 1512 रुपए निर्धारित की है. पहले इसे 819 रुपए में किया जाता था. पिछले कई माह से हैरिटेज नगर निगम में पशु प्रबंधन शाखा के उपायुक्त का पद ही खाली है.

दरअसल, शहर में कुत्तों की संख्या को सीमित करने के लिए वर्ष 2011 में एबीसी प्रोग्राम की शुरुआत की गई. 2016 तक यह अच्छे तरीके से चला और करीब 30 हजार कुत्तों का बधियाकरण हुआ और एंटी रैबीज वैक्सीन लगाए गए. इलाहबाद हाइकोर्ट ने एक मामले में जयपुर नगर निगम के एबीसी प्रोग्राम की तारीफ भी की थी..लेकिन वर्ष 2017-18 से इसमें निगम की रुचि कम होती चली गई..

 हर वर्ष लाखों रुपए होते है खर्च
शहर में कुत्तोंकी संख्या सीमित करने के नाम पर हर वर्ष लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं.लेकिन निगरानी तंत्र न होने से कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है .पिछले 10 वर्ष से शहर में एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) प्रोग्राम चल रहा है.इसके बावजूद कुत्तों की संख्या सीमित नहीं हो पाई है .इसके लिए निगम ने एनजीओ को भी जोड़ा जिसके लिए उन्हें अब तक करोड़ों का भुगतान किया जा चुका है..

 हैरानी की बात यह है कि एनजीओ कैसे काम कर रहा है, इसकी निगरानी निगम की ओर से नहीं की जाती..जब डॉग बाइट के मामले ज्यादा होते हैं तो निगम फर्म को ब्लैकलिस्ट कर अपने हाथ साफ कर लेता है.जबकि नगर निगमों की पशु प्रबंधन शाखा में दो-दो चिकित्सक और तीन पशु धन सहायक तैनात हैं..पशु पालन विभाग से कुछ चिकित्सक तो पोस्ट न होने के बाद भी निगम में डटे हैं.हैरिटेज नगर निगम प्रति कुत्तों 1512 रुपए एबीसी प्रोग्राम के तहत एक एनजीओ को दे रहा है..

आठ माह से  बंद है कुत्तोंका बधियाकरण 
वहीं ग्रेटर नगर निगम में पिछले आठ माह से कुत्तोंका बधियाकरण बंद है.अनुमान के मुताबिक शहर में कुत्तों की संख्या 80 हजार के आस-पास है.अब तक एबीसी प्रोग्राम के तहत 40 हजार कुत्तों के बधियाकरण का दावा निगम की ओर से किया जाता है.जिस कुत्तों का बधियाकरण हो जाता है, उसके दाएं कान को थोड़ा सा काट देते हैं.पिछले पांच वर्ष में निगम एबीसी प्रोग्राम को लेकर गंभीर नहीं है.हैरिटेज नगर निगम में एनजीओ ने दो टीमें लगा रखी हैं..इन दो टीम में छह लोग हैं.एनजीओ के संसाधन कम हैं..निगम के पास दो चिकित्सक हैं.लेकिन इनके पास बधियाकरण से संबंधित कोई काम नहीं है.

बच्चों और  पेरेंट्स में भय का माहौल
कुत्तों के आतंक से बच्चों और उनके पेरेंट्स में भय का माहौल हैं. जिसके कारण बच्चों ने खेलना बंद कर दिया हैं.घर के बाहर चौकसी रखनी पड़ती हैं.जानकारों की माने तो स्ट्रीट डॉग (गली के आवारा कुत्तों) की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए नगर निगम प्रशासन उनके बधियाकरण व टीकाकरण का कार्य कराता है. इसके लिए बाकायदा एडब्ल्यूबीआई (एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया) में पंजीकृत एनजीओ को ही इस कार्य का ठेका दिए जाने का प्रावधान है.लेकिन इस तरह की एनजीओ नगर निगम के अधिकारियों से साठगांठ कर कुत्तों के बधियाकरण का ठेका तो ले लेती हैं लेकिन उनके पास ना तो कुशल चिकित्सक होते हैं न ही कुत्तों का उचित इलाज व भोजन ही उन्हें दिया जाता है.

बहरहाल, पिंकसिटी के रहने वाले ही नहीं नगर निगम के पार्षद भी स्ट्रीट डॉग को लेकर काफी परेशान हैं.क्योंकि इनका निशाना इलाके में रहने वाले सीनियर सीटिजन और बच्चे भी बन रहे हैं.आवारा कुत्तों से परेशान लोग पार्षद के ऑफिस शिकायत लेकर पहुंच जाते हैं कि आवारा कुत्ते से उन्हें बचाया जाए.खेलते समय बच्चों और सुबह के वक्त जब बुजुर्ग पार्क, मंदिर या सुबह में टहलने जाते हैं तो उन्हें आवारा कुत्ते काट लेते हैं, या गिरा देते हैं..

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