राजस्थान में राजनीतिक पतंगबाजी, विधानसभा चुनाव में हो रही एक-दूसरे की पेंच काटने की तैयारी
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राजस्थान में राजनीतिक पतंगबाजी, विधानसभा चुनाव में हो रही एक-दूसरे की पेंच काटने की तैयारी

संक्रांति पर आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सजा दिख रहा है. वहीं, राजस्थान में राजनीतिक पतंगबाजी भी शुरू हो गई है. इसी के चलते विधानसभा चुनाव 2023 में एक-दूसरे की पेंच काटने की तैयारी पूरी तैयारी हो रही है. इसी के चलते सभी पार्टियों के बयान सामने आ रहे हैं. 

राजस्थान में राजनीतिक पतंगबाजी, विधानसभा चुनाव में हो रही एक-दूसरे की पेंच काटने की तैयारी

Jaipur News: संक्रांति का मौका है, सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो रहा है, आसमान में पतंगे लहरा रही हैं. और वो काटा-वो मारा का शोर गूंज रहा है, लेकिन जिस तरह पतंगबाजी में पेंच लड़ाने और पतंग काटने का महत्व है. उसी तरह राजनीति में चुनाव लड़ने और उसमें जीतने का महत्व है. संक्रान्ति तो हर साल की तरह ही है, लेकिन चुनावी संक्रान्ति के लिहाज से साल 2023 की अहमियत है. ऐसा इसलिए.. क्योंकि इस साल चुनावी दंगल में कौनसी पार्टी किसका पेंच काटेगी और किसके मांझे में गांठें पड़ेंगी, उसी से तय होगा कि सत्ता के आसमान में किसकी तूती बोलेगी?

संक्रांति पर आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सजा दिख रहा है. इस पतंगबाजी के माहौल में दूसरे की पतंग काटते ही वो काटा का शोर हो रहा है और यह शोर ज्यादा करने वाला ही पतंगबाजी का सिरमौर है, लेकिन पतंगों को डोरी के दम पर नचाने से ज्यादा चर्चा अब इस बात की होने लगी है कि चुनाव में डोर कौन थामेगा? कौन लड़ाएगा? और कौन काटेगा?. कांग्रेस कह रही है कि उसकी पतंग ज्यादा ऊंची उड़ेगी. सत्ताधारी पार्टी एक बार फिर से रिपीट करने का दावा करती है, जबकि बीजेपी कहती है कि कांग्रेस की पतंग काटने के लिए तो जनता ही पूरी तरह तैयार बैठी है. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व में वोट कैप्चरिंग की ताकत ही नहीं है, लिहाजा इनके जरिए तो अब कांग्रेस को चुनावी दंगल में अपनी पतंग परवान चढ़ा पाना कटारिया को मुमकिन नहीं दिखता. 

उधर पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी बीजेपी के दावों की पतंग काटने के लिए तैयार दिखे. उनका कहना है कि बीजेपी के मांझे में तो आठ-दस से ज्यादा गांठें पड़ चुकी हैं.  डोटासरा ने कहा कि पतंगबाजी का कायदा है कि जिस किसी के मांझें में गांठे पड़ जाएं, न तो वह किसी की पतंग काट सकता है और न ही अपनी पतंग बचा सकता है. डोटासरा बोले कि ओम बिरला के लिए, सतीश पूनिया के लिए उनकी पार्टी के नेता ही आपस में कैसे शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं, यह सब जनता देख रही है. डोटासरा ने कहा कि बीजेपी के लोग तो आपस में ही उलझे हुए हैं, तो पहले वे अपनी गांठें तो सुलझा लें. डोटासरा ने कहा कि ये तो 101 सीट आए बिना ही मुख्यमंत्री बन रहे हैं. 

इधर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल भी चुनावी दंगल के पेंच के लिए तैयार दिख रहे हैं. वे कहते हैं कि अबकी बार चुनाव में आरएलपी की पतंग तो कांग्रेस और बीजेपी के पेंच एक साथ काटेगी.

धर्म में भले ही सूर्य के दक्षिणायन के मुकाबले उत्तरायण होने का बड़ा महत्व हो, लेकिन राजनीति में तो किसी भी पार्टी के लिए दक्षिणात होने का ज्यादा महत्व है क्योंकि विधानसभा में जो दल स्पीकर के दक्षिण में बैठता है, सत्ता उसी में निहीत है और सत्ता के आसमान में पतंग भी उसी की लहराती है. 

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