Rajasthan News : अशोक गहलोत हो या वसुंधरा राजे सरकार, मंत्रियों के अफसरों से टकराने का है लंबा इतिहास
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Rajasthan News : अशोक गहलोत हो या वसुंधरा राजे सरकार, मंत्रियों के अफसरों से टकराने का है लंबा इतिहास

Rajasthan News : राजस्थान में अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot ) सरकार के मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास से लेकर विधायक संयम लोढ़ा, खेल मंत्री अशोक चांदना और जोधपुर ( Jodhpur ) के ओसियां से विधायक दिव्या मदेरणा ( Divya Maderna ) समेत कई मंत्री और विधायक अफसरों से दो-दो हाथ कर चुके है. इससे पहले बीजेपी की वसुंधरा राजे ( Vasundhara Raje ) सरकार में भी ऐसे ही मामले सामने आए थे. पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Rajasthan News : अशोक गहलोत हो या वसुंधरा राजे सरकार, मंत्रियों के अफसरों से टकराने का है लंबा इतिहास

Rajasthan News : राजस्थान में केबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास ( Pratap singh Khachariyawas ) द्वारा ब्यूरोक्रेसी पर निशाना साधने के बाद एक बार फिर व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के बीच तलवार खिंचती दिखाई दे रही हैं. ये पहला मौका नहीं है जब किसी राजनेता ने अफसरों पर नकेल कसने की बात कही हो. दरअसल बुधवार को अपनी बेबाकी के लिए चर्चा में रहने वाले मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास ने सीएम अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot ) को पत्र लिखकर मांग की है कि मंत्रियों को उनके संबंधित विभाग में तैनात अफसरों की एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट में एंट्री करने का अधिकार दिया जाए. दरअसल राजस्थान ( Rajasthan ) हो या पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश,  अक्सर ही जनप्रतिनिधियों की  शिकायत रहती है कि अफसरशाही बेलगाम होकर उनकी बात तक नहीं सुनती.

खुद राजस्थान सरकार में बीज बोर्ड के अध्यक्ष, राज्य मंत्री और कद्दावर नेता धीरज गुर्जर ट्वीट ने ट्वीट करके कहा था कि "अधिकारी कभी किसी सरकार के नहीं होते वो सत्ता के और खुद के होते है और जब अपनी कुर्सी को बचाये रखने के लिये विपक्षी दलों से हाथ मिला लेते है तब वो सरकार की कब्र खोद रहे होते है. समय पर इनकी पहचान ना करने से किसी भी सरकार को गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ते है"

 

यही नहीं आज की तारीख में मुख्यमंत्री गहलोत के खास सिपेहसालार माने जाने वाले खेल मंत्री अशोक चांदना बीते कुछ महीने पहले नौकरशाही के रवैये से नाराज होकर इस्तीफे तक की पेशकश कर चुके हैं. विधायक गणेश घोघरा, रामलाल मीना, राजेंद्र बिधूड़ी, भरत सिंह, गिर्राज सिंह मलिंगा और नौकरशाही के बीच टकराव की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनती रही हैं. पहले भी मंत्री रमेश मीना, प्रताप सिंह खाचरियावास, विश्वेंद्र सिंह, उदयलाल आंजना, प्रमोद जैन भाया और मंत्री भजनलाल जाटव अफसरों के रवैये से क्षुब्ध होकर नाराजगी जता चुके हैं. सीएम गहलोत के सलाहकार और विधायक संयम लोढा तो गृह और राजस्व विभाग को विशेषाधिकार हनन का नोटिस थमा चुके हैं.

यही नहीं बीते साल 16 अक्टूबर 2021 को टोडाभीम विधायक पृथ्वीराज मीणा ने तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक मृदुल कच्छावा पर काफी संगीन आरोप लगाते हुए बाकायदा सीएम अशोक गहलोत को पत्र लिखकर जिले से बाहर तैनाती की मांग तक कर दी थी. बताया जाता है कि विधायक मीणा और एसपी मृदुल कच्छावा के बीच विवाद की मुख्य वजह एक सीआई और कांस्टेबल की पोस्टिंग को लेकर हुआ था. विधायक पीआर मीणा ने एक इंस्पेक्टर और कांस्टेबल को हटाने की मांग की थी जिसे एसपी मृदुल कच्छावा ने मानने से इंकार कर दिया था और उसके बाद ईगो को लेकर पूरा विवाद खड़ा हुआ. इस पूरे मामले में हालांकि सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से एसपी मृदुल कच्छावा को काफी समर्थन मिला था.

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विवाद की असली वजह टोडाभीम क्षेत्र में पुलिस कॉन्स्टेबल और सीआई की पोस्टिंग का विवाद बताया जा रहा है. मीणा एक इंस्पेक्टर और कॉन्स्टेबल को हटवाना चाहते थे. एसपी ने उनका कहना नहीं माना. विधायक का आरोप है कि कॉन्स्टेबल ने उनके क्षेत्र की महिला से अभद्रता की और इससे जातीय संघर्ष की आशंका थी. इसके बावजूद उसे नहीं हटाया गया.

तत्कालीन धौलपुर के डीएम आर के जायसवाल ने बाकायदा ट्वीट करके एसपी का समर्थन किया था.

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इससे पहले  इसी साल मार्च में बेंगू विधायक राजेंद्र बिधूड़ी और भैंसरोडगढ थानाधिकारी संजय गुर्जर के बीच बातचीत का एक कथित वीडियो काफी वायरल हुआ था जिसमें कथित रुप से विधायक थानाधिकारी को 07 मिनट में 100 बार गालियां देते हुए मिले थे. विपक्ष के हमलावर होने पर आज नौकरशाही के खिलाफ मुखर हो रहे मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास उस वक्त विधायक के पक्ष में खड़े दिखाई दिए थे. उस वक्त खाचरिवास ने कहा था कि राजेंद्र बिधूड़ी जनता के नेता और जनता की लड़ाई लड़ते हैं.

जनप्रतिनिधियों की नाराजगी सिर्फ गहलोत सरकार में रही हो ऐसा नहीं है. इससे पहले साल 2013 से 2018 के बीच सत्तासीन वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री राजपाल शेखावत की अपने ही मंत्रालय में काम करने वाले अफसरों से तनातनी की खबरें काफी चर्चा में रही हैं.

फरवरी 2017 में कोटा के महावीर नगर थाने में विधायक चंद्रकांता मेघवाल और पुलिस के बीच जमकर संघर्ष हुआ था. इस मामले में तत्कालीन थानाधिकारी ने विधायक के पति पर थप्पड़ मारने का आरोप लगाते हुए हवालात में बंद कर दिया था. इस मामले में भी सरकार की काफी फजीहत हुई थी.

आज जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की टीम के कद्दावर मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास अफसरों की एसीआर में मंत्रियों को एंट्री करने का अधिकार देने की मांग की है तो समझा जा सकता है कि खुद सत्ता को चलाने वाले कहीं न कहीं और अधिक शक्तियों से लबरेज होना चाहते हैं ताकि आए दिन नौकरशाही की मनमानी और बेलगामी को रोका जा सके.

क्या होती है एसीआर रिपोर्ट

एसीआर- वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट. ये एक ऐसी प्रणाली है जो मार्किंग पर निर्भर करती है. अधिकारियों में, अधिकारी के इमिडेएट सीनियर द्वारा बनाई जाती है और इसी एसीआर की मार्किंग के आधार पर अधिकारी के प्रमोशन आदि को तय किया जाता है.

दरअसल अफसरों की एसीआर लिखने की मांग करने वाले प्रताप सिंह खाचरिवास पहले मंत्री नहीं है. इससे पहले मार्च 2022 में उत्तऱाखंड की पुष्कर धामी सरकार में मंत्री सतपाल महाराज भी एकदम प्रताप सिंह जैसी ही मांग कर चुके हैं.

उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी  सरकार में मंत्रियों को नौकरशाहों की एसीआर लिखने का अधिकार दिया गया था लेकिन इसके बाद इसको खत्म कर दिया गया और नौकरशाहों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट सीधे सीएम को भेजे जाने लगी.

पूरा मामले समझें तो कहा जा सकता है कि मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास एसीआर के जरिए अफसरों की नकेल कसने के लिए मंत्रियों को शक्तियां देने की मांग कर रहे हैं. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में राज्यमंत्री दिनेश खटीक तो अफसरों पर नाफरमानी का आरोप लगाते हुए अपनी एस्कार्ट तक पुलिस को लौटा दी थी. यही नहीं वो एक बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को संबोधित इस्तीफा लिखकर अपनी ही सरकार की फजीहत कर चुके हैं.

किसी भी सरकार में अगर सरकार ऐसा परसेप्शन बन जाए कि अफसर मंत्रियों या जनप्रतिनिधियों की बात नहीं सुन रहे तो ऐसे में अक्सर विपक्ष को सरकार पर हमलावर हो जाने का मौका मिल जाता है. राजस्थान में अब चुनाव में लगभग एक साल का वक्त रह गया है तो सरकार के सिपेहसालार नहीं चाहते कि विपक्ष को किसी भी रुप में सरकार को आंख दिखा सके. लेकिन बीजेपी इस घटनाक्रम का फायदा उठाते हुए अशोक गहलोत सरकार पर सवाल उठा रही है. लेकिन सच ये है कि वसुंधरा राजे ( Vasundhara Raje ) के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा सरकार में भी मंत्रियों/विधायकों और अफसरों के टकराव की खबरें सामने आती रहती थी.

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