36 साल बाद आया हाई कोर्ट का फैसला, सजा को कम कर भुगती अवधि के बराबर करने के आदेश
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36 साल बाद आया हाई कोर्ट का फैसला, सजा को कम कर भुगती अवधि के बराबर करने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 36 साल बाद फैसला सुनाया है. अदालत ने अभियुक्त पति को निचली अदालत से मिली आठ साल की सजा को पूर्व में भुगती हुई एक साल की अवधि तक कम कर दिया है.

36 साल बाद आया हाई कोर्ट का फैसला, सजा को कम कर भुगती अवधि के बराबर करने के आदेश

Jaipur: राजस्थान हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 36 साल बाद फैसला सुनाया है. अदालत ने अभियुक्त पति को निचली अदालत से मिली आठ साल की सजा को पूर्व में भुगती हुई एक साल की अवधि तक कम कर दिया है. जस्टिस नरेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश बनवारी माली की अपील पर दिए. अदालत ने कहा कि अपीलार्थी पिछले करीब चार दशक से अदालत में ट्रायल का सामना कर रहा है और पूर्व में वह एक साल की सजा भी काट चुका है. ऐसे में निचली अदालत की ओर से उसे दी गई आठ साल की सजा को सात साल कम करना उचित है.

अपील में अधिवक्ता मोहित बलवदा और अधिवक्ता भावना चौधरी ने अदालत को बताया कि अपीलार्थी का 28 फरवरी 1981 को विवाह हुआ था. वहीं उसकी पत्नी की मौत के बाद उसके पिता ने 21 अगस्त 1983 को कोतवाली थाने में मृतका के ससुराल वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया था. वहीं, निचली अदालत ने दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपीलार्थी को आठ साल की सजा सुनाई थी. इस आदेश के विरुद्ध वर्ष 1986 में अपील पेश की गई. अपील में कहा गया कि निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों का विधि सम्मत परीक्षण नहीं किया. इसके अलावा एफआईआर में भी अपीलार्थी पर कोई आरोप नहीं है.

एफआईआर में सिर्फ ससुराल वाले लिखाया गया था. इसके अलावा हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट से यह साबित नहीं है कि मौत से पहले लिखा गया लेटर मृतका ने लिखा हो. इसके अलावा एक गवाह के बयान से साबित है कि उसने शादी के समय किसी तरह के दहेज की मांग नहीं की, लेकिन निचली अदालत ने इस गवाह के बयान पर विचार नहीं किया. इसके साथ ही अपीलार्थी एक साल की सजा भुगत चुका है और लंबे समय से मुकदमे का सामने कर रहा है. ऐसे में उसकी सजा को कम कर भुगती सजा के बराबर किया जाए.

वहीं, सरकारी वकील ने कहा कि निचली अदालत का आदेश सही है. इसलिए अपील को खारिज किया जा. दोनों पक्षों को सुनकर अदालत में अपीलार्थी की सजा को कम कर भुगती हुई सजा के बराबर कर दिया है.

Reporter- mahesh pareek

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