राजस्थान में सातों सीटों पर इस आधार पर बांटे गए टिकट! कहीं डर के आगे जीत पर दांव तो क्या कहीं चल पाएगा 'इमोशनल कार्ड'
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राजस्थान में सातों सीटों पर इस आधार पर बांटे गए टिकट! कहीं डर के आगे जीत पर दांव तो क्या कहीं चल पाएगा 'इमोशनल कार्ड'

Rajasthan By Election: क्या राजस्थान में इस बार बीजेपी का इमोशनल कार्ड चल पाएगा?प्रदेश में सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस के साथ ही दूसरी राजनीतिक पार्टियां परिवारवाद के सहारे जीत की आस लगा रही हैं.  

राजस्थान में सातों सीटों पर इस आधार पर बांटे गए टिकट! कहीं डर के आगे जीत पर दांव तो क्या कहीं चल पाएगा 'इमोशनल  कार्ड'

Rajasthan By Election 2024: कांग्रेस पर परिवार वाद के आरोप लगाने वाली भाजपा इस उपचुनाव में खुद पारिवारिक मोह के ''दलदल'' में उतर गई है. प्रदेश में 7 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में बीजेी दो तथा कांग्रेस तीन सीटों पर परिवार वाद की नैया पर सवार है. भाजपा-कांग्रेस ही नहीं बल्कि अन्य दल भी परिवार के भरोसे जीत की तलाश में है. उप चुनाव के चुनावी दंगल में कहीं पत्नी, कहीं बेटे और कहीं भाई की चुनावी जीत के साथ नेताओं का भविष्य दांव पर लगा है. 

प्रदेश में सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस के साथ ही दूसरी राजनीतिक पार्टियां परिवारवाद के सहारे जीत की आस लगा रही हैं.  यही कारण है कि कांग्रेस को वंशवाद और परिवारवाद के कठघरे में खड़े करने वाली भाजपा को भी अब परिवारवाद से गुजर रही है. 

कांग्रेस ने हमेशा परिवारवाद पर भरोसा किया और कहते भी आई है कि जिताऊ को टिकट देते हैं, फिर चाहे परिवार को ही देना पड़े. वहीं परिवारवाद को कोसने वाले भाजपा नेता भी चुनाव जीतने की तलाश में इससे परहेज नहीं कर रहे हैं. ये नेता अपने बचाव में कहते हैं कि सर्वे में जो जिताऊ उम्मीदवार था, पार्टी ने बिना परिवार के बैकग्राउंड को देखें उसे उम्मीदवार बनाया है. यह दूसरी बात है कि भाजपा कहीं सहानुभूति तो कहीं डर के आगे जीत की लहर पर सवार है.

ये हैं तीन पत्नियां चुनावी दंगल में

सात सीटों में तीन सीटों पर नेताओं की पत्नियों को मैदान में उतारा गया है. सलूम्बर सीट पर दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी को भाजपा ने टिकट दिया है. सहानुभूति की लहर के सहारे भाजपा इस सीट को जीतना चाहती है.

इसी तरह खींवसर सीट पर भी कांग्रेस ने रिटायर्ड आईपीएस सवाई सिंह चौधरी की पत्नी डॉ. रतन चौधरी को मौका दिया है. सवाईसिंह चौधरी वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से खींवसर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हार गए थे.  इसके बाद सवाईसिंह भाजपा में भी शामिल हो गए लेकिन उनकी पत्नी रतन चौधरी को कांग्रेस से टिकट मिलते ही इन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया. इस बार भी वे दावेदार थे,लेकिन इनकी पत्नी को टिकट देने में प्राथमिकता दी गई. इधर खींवसर में ही आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल ने उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा है.

दो बेटे उतरे, कारण अलग-अलग 

उपचुनाव में रामगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस के दिवंगत विधायक जुबैर खान के बेटे आर्यन खान को कांग्रेस ने टिकट देकर "सहानुभूति कार्ड" खेला है. वहीं झुंझुनूं सीट पर कांग्रेस नेता बृजेन्द्र ओला के बेटे अमित ओला पर पार्टी ने भरोसा जताया है. अमित ओला अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता है. इनके दादा शीशराम ओला पांच बार सांसद व आठ बार विधायक रहे हैं, वहीं इनके पिता बृजेन्द्र ओला लगातार चार बार विधायक व मंत्री भी रहे हैं. ओला परिवार के तीसरी पीढ़ी के अमित ओला इस बार पहली बार मैदान में उतरे हैं.

डर के आगे जीत, रूठे मंत्री जी के भाई को टिकट

कहते हैं डर के आगे जीत है, इसी तर्ज पर भाजपा ने रूठे मंत्रीजी के भाई को दौसा से चुनावी मैदान में उतारा है. मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को भाजपा ने सामान्य सीट दौसा से टिकट दिया है. मंत्री किरोड़ीलाल मीणा की क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है, हालांकि इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में क्षेत्र में करारी हार के कारण उन्होंने नैतिकता के आधार पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उनका इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. किरोड़ी लाल मीणा इन दिनों अपने भाई के लिए पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं.

उप चुनाव में परिवारवाद का सेहरा बांधे हुए भाजपा और कांग्रेस नेताओं के अपने-अपने तर्क हैं. टिकट वितरण से पहले कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा कह चुके हैं कि पार्टी परिवारवाद की राजनीति नहीं करती है, बल्कि जो जिताऊ उम्मीदवार है उसी को मैदान में उतारा जाता है, अगर किसी का बेटा योग्य है तो क्या उसे टिकट नहीं दिया जाना चाहिए ?

दूसरी ओर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ कहते हैं कि हमारा तो एक ही परिवार है भाजपा परिवार, अन्य कोई दूसरा परिवार नहीं है. हम सर्वे के आधार पर जिताऊ दावेदार को ही उम्मीदवार बनाते हैं. इसके अलावा भाजपा में परिवारवाद जैसा कुछ नहीं है.

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