सावन महीने में आपको राजस्थान में कई पवित्र मंदिरों जैसे एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर,अचलेश्वर महादेव मंदिर, शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव, सारणेश्वर महादेव,आपेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करने चाहिए.
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Sawan 2022: भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन की शुरुआत आज यानी 14 जुलाई 2022 दिन गुरूवार से हो गई है. मान्यता है कि जो भक्त सावन मास में सच्चे मन और विधि-विधान से भोलेनाथ की पूजा करते हैं उन सब पर देवाधिदेव महादेव जल्द प्रसन्न होते हैं. ऐसे में भगवान शिव के सावन महीने में आपको राजस्थान में कई पवित्र मंदिरों जैसे झारखंड महादेव मंदिर,अचलेश्वर महादेव मंदिर, शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव, सारणेश्वर महादेव,आपेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करने चाहिए.
अचलेश्वर महादेव मंदिर
सावन में देवों के देव महादेव को जहां श्रद्धालु शिवालय पहुंच कर जलाभिषेक करते हैं वहीं राजस्थान के धौलपुर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर में हमेशा ही भक्तों का रेला लगा रहता है, लेकिन सावन माह में दर्शन करने मात्र से पुण्यकारी माना गया है. कहते है यहां भगवान शिव साक्षात दर्शन देते है.
अचलेश्वर महादेव मंदिर कि विशेषता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है.भक्त यहां पहुंच कर धन्य हो जाते है. राजस्थान के धौलपुर स्थित अचलेश्वर महादेव दिन में तीन बार रंग बदलते हैं. सुबह के समय शिवलिंग लाल, दोपहर में केसरिया और रात को श्याम वर्ण में नजर आते है.
इस मंदिर में भगवान शिव के वाहन नंदी की बहुत बड़ी मूर्ति है जिसका वजन लगभग 4 टन के बराबर है. नंदी की मूर्ति पांच धातुओं से बनी है.इसमें सोना, चांदी, तांबे, पीतल और जस्ता मिलाकर बना है. एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, नंदी की मूर्ति मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले से मंदिर की रक्षा की गई थी. मंदिर में छिपे हुए मधुमक्खियों ने कई बार मंदिर को बचाया था. कहा जाता है कि जो भी भगवान भोले से मिलना चाहता है नंदी पहले उसकी भक्ति की परीक्षा लेते हैं.
अपने अद्भुत चमत्कार के साथ ही लोगों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए भी महादेव के इस मंदिर का विशेष महत्व है.महादेव के इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां अपने मनचाहे जीवनसाथी की कामना ले कर आते हैं और शिवजी उसे पूरा करते हैं, तो आप भी इस सावन में इस मंदिर में दर्शन करने जरूर जाएं और भगवान भोले का आशिर्वाद पाएं.
शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव
सावन माह में शिवाड़ के प्रसिद्ध घुश्मेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सावन माह में इस मंदिर का नजारा देखते ही बनता है.इस मंदिर को राजस्थान का ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. सावन महीने में मंदिर में हर-हर बम-बम और जय घुश्मेश्वर नाथ की घोष के साथ पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. यह मंदिर सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है. इस मंदिर को घुश्मेश्वर महादेव भी कहा जाता है. इस मंदिर को राजस्थान का ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. इस मंदिर के प्रसिद्ध होने के पीछे एक पुरानी और बेहद रोचक कहानी हैं.
किसी समय यहां सुदर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था. उस ब्राह्मण की पत्नी का नाम सुदेहा था. कहा जाता है कि उसकी कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह सुदरेमा से कर दिया. घुश्मा महादेव की भक्त थी जब घुश्मा को पुत्र की प्राप्ति हुई तो ईर्ष्या में सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को मारकर सरोवर में फेंक दिया.
जब घुश्मा वहां पुजा करने गई तो भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए और पुत्र को जीवनदान देकर वरदान मांगने को कहा तो घुश्मा ने भगवान शंकर से यहां अवस्थित होने का वर मांग लिया. कालांतर में जब यहां खुदाई हुई तो अनेक शिवलिंग निकले थे. शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव शिव मंदिर काफी पुराना है.
ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक यहां महमूद गजनवी ने भी आक्रमण किया था.गजनवी से आक्रमण करते हुए युद्ध में मारे गए स्थानीय शासक चन्द्रसेन गौड और उसके पुत्र इन्द्रसेन गौड के यहां स्मारक मौजूद है. इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का भी उल्लेख है. इससे अंदाजा लगा सकते है कि यह मंदिर कितना पुराना है.
झारखंड महादेव मंदिर, जयपुर
राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक मंदिर है झाड़खंड महादेव मंदिर.नाम से आश्चर्य में मत पड़े. क्योंकि ऐसा अक्सर होता है जब लोगों को लगता है कि किसी शिवालय का नाम झाड़खंड कैसे हो सकता है. जयपुर स्थित वैशाली नगर के पास जिस गांव में यह मंदिर स्थित है, उसका नाम प्रेमपुरा है. दरअसल, एक समय में यहां बड़ी संख्या में झाड़ियां ही झाड़ियां हुआ करती थी. तो झाड़ियों से झाड़ और खंड अर्थात क्षेत्र को मिलाकर इस मंदिर का नाम झाड़खंड महादेव मंदिर पड़ा.
भगवान शिव को समर्पित अपनी तरह का यह एक अनोखा मंदिर है. क्योंकि इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया है. दरअसल, वर्ष 1918 तक यह मंदिर बहुत छोटा हुआ करता था. यहां शिवलिंग की सुरक्षा के लिए मात्र एक कमरानुमा शिवालय बना हुआ था. इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया.
हालांकि मंदिर का केवल मुख्य द्वार ही दक्षिण भारतीय मंदिरों जैसा है. अंदर गर्भगृह उत्तर भारतीय मंदिरों से ही प्रेरित है. यह मंदिर अपने आप में बेहद खास है. गर्भगृह के निर्माण के समय शिवालय में स्वत: पेड़ निकल आए,उसके बाद पेड़ को काटा नहीं गया. बल्कि पेड़ के साथ ही इसका निर्माण कर दिया गया. सावन में बड़ी संख्या में भक्त झाड़खंड महादेव मंदिर में पहुंचते हैं. सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां शिवलिंग का अभिषेक करनेवाले श्रद्धालुओं की कतारें लगी रहती हैं. अगर आप सावन में जयपुर जाएं तो झाड़खंड महादेव मंदिर में दर्शन-पूजन करना न भूलें.कहा जाता है कि इस मंदिर में एक बार चले जाएं तो भगवान भोले नाथ सारे कष्ट दूर कर देते है.
सिरोही के सारणेश्वर महादेव
सिरोही के सारणेश्वर महादेव मंदिर में सावन माह में दिनभर भक्तों की कतारें लगी रहती है.सिरोही के सारणेश्वर महादेव मंदिर भी आस्था का केन्द्र है. यह मंदिर कट्टर शासक अलाउद्दीन खिलजी को भी पीछे हटने पर मजबूर होने का कारण बना था. बताया जाता है कि इस मंदिर के पीछे की बावड़ी के जल से खिलजी के शरीर का रोग दूर हुआ था. उसके बाद उसने इस मंदिर में तोड़फोड़ करने की हिम्मत नहीं की.
सिरोहीके पूर्व नरेश रघुवीरसिंह बताते हैं कि 1298 में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात के सिद्धपुर स्थित रूद्रमाल का महादेव मंदिर को तहस नहस किया और वहां के शिवलिंग को गाय की खाल में बांधकर सिरोही के रास्ते लौटा, लेकिन सिरोही के महाराव ने उसे आगे नहीं जाने दिया और युद्ध में हराकर शिवलिंग को सिरोही में स्थापित किया.
इस स्थान को आज सारणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर के पीछे पहाड़ों के बीच पानी बहता है. जिसे शुक्ला तीज तालाब के नाम से जाना जाता है. जबकि सामने वैजनाथ महादेव का मंदिर है.इस मंदिर में लोगों के बीच आज भी बड़ी श्रद्धा है. माना जाता है कि यहां सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, वो जरूर पूरा होता है, तो आप भी इस सावन में यहां पहुंचकर अपनी मुराद पूरी करें.
जलंधरनाथ महादेव मंदिर
जालोर के दुर्ग पर स्थित महादेव मंदिर में सोमनाथ के शिवलिंग का अंश को पूजा जाता है.इस मंदिर को सोमनाथ महादेव के नाम से भी जानते है. जालोर के इतिहास के अनुसार 13वीं शताब्दी में जालोर में राजा कान्हडदेव सोनगरा चौहान के शासनकाल के समय अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ आक्रमण के बाद जालोर होकर गुजरा था.
सोमनाथ में खिलजी ने कई महादेव मंदिरों में लूटपाट की थी. जिसके बाद जालोर के दुर्ग पर भी खिलजी ने आक्रमण किया और उस दरम्यान सोमनाथ महादेव के शिवलिंग का एक अंश यही पर छोड़ दिया. वो ही शिवलिंग आज दुर्ग स्थित जलंधरनाथ महादेव मंदिर में पीछे वाले प्राचीन मंदिर में एक विशेष प्रकार का शिवलिंग सोमनाथ महादेव के रुप में पूजे जाते है.
दुर्ग पर महादेव मंदिर में प्राचीन मंदिर में पार्वती, गणेश व कार्तिकेयन भगवान की पुरानी मूर्तियों के साथ एक अलग प्रकार के शिवलिंग के रुप में भगवान महादेव विद्यमान हैं. दूसरे मंदिरों में भगवान महादेव की मूर्ति के रुप में विद्यमान शिवलिंग में भग स्वरुप के ऊपर लिंग स्वरुप विद्यमान होता है. जबकी इस प्राचीन शिवलिंग में विशालकाय भग स्वरुप के अंदर के भाग में लिंग स्वरुप की पूजा होती है.
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आपेश्वर महादेव (रामसीन)
वैसे तो शिवलिंग की ही पूजा होती हैं लेकिन जालोर के आपेश्वर महादेव में शिव प्रतिमा की पूजा होती है. इस आदमकद प्रतिमा का दर्शन मनोहारी हैं. आपेश्वर महादेव की यह आदमकद मूर्ति विक्रम संवत 1318 में एक खेत में हल चलाने के दौरान मिली थी. दंतकथाओं के अनुसार मूर्ति के आपोआप प्रकट होने से इनका नाम आपेश्वर महादेव पड़ा.
पैराणिक कथा के अनुसार त्रैतायुग में भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान अनुज लक्ष्मण व माता सीता के साथ विश्राम किया था. इससे गांव का नाम रामसेन पड़ा तथा बाद में धीरे धीरे इसे रामसीन के नाम से पुकारा एवं पहचाना जाने लगा. सावन के पावन मौके पर यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. इस सावन में महादेव मंदिर में दर्शन-पूजन करना न भूलें. कहा जाता है कि इस मंदिर में एक बार चले जाएं तो भगवान भोले नाथ भक्तों के सारे कष्ट दूर कर देते है.
सलारेश्वर महादेव मंदिर
डूंगरपुर के चौरानी विधानसभा में भी भगवान शिव के मंदिर में सावन के मौके पर भाड़ी भीड़ उमड़ती है. भोले बम-बम के नारों के साथ पूरा परिसर गूंज उठता है. इस सलारेश्वर महादेव मंदिर में शिवभक्त संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते है और जिस भक्त की इच्छा भगवान भोलेनाथ पूरी करते है वह भक्त पत्थर से बने नंदी को मंदिर में चढ़ाते है. इस मंदिर में इस कारण ही नंदी के ढेर लगे हुए है. इस मंदिर में दूर – दूर से लोग संतान प्राप्ति की कामना करने आते है.
ऐसा कहा जाता है कि जिस जगह पर आज यह मंदिर है, वहां पहले जंगल हुआ करता था. जहां गाय और दूसरे मवेशी चारा चरते थे. इसी दौरान एक गाय जंगल में वटवृक्ष के पास खड़ी रहती तो अचानक उसके स्तनों से खुद ब खुद दूध बहने लगता. और ऐसा एक – दो बार नहीं बल्कि हर बार होता और गांव के चरवाहे यह देख हैरान रह गए.
एक दिन लबाना समाज के तत्कालीन नायक कमलसिंह बाबा को एक सपना आया उन्होंने देखा की वटवृक्ष के पास कंथार के पेड़ के नीचे जहां वह गाय खड़ी रहती, वहां जमीन पर एक शिवलिंग है. जब समाज के लोगों ने पेड़ के नीचे खुदाई की तो कुदाल शिवलिंग पर लगी और उससे दूध और खून बहने लगा.