Rajasthan Politics : अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी जंग के बीच बीजेपी की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है.
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Rajasthan Politics : राजस्थान में सियासी हलचल के बीच बीजेपी की चुप्पी पर बड़ा सवाल. आखिर क्या चल रहा मुख्य विपक्षी पार्टी के नेताओं के मन में? 'वेट एण्ड वॉच' की स्थिति में क्यों है? बीजेपी सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस विधायक दल की बैठक को लेकर मचे जिस घमासान में कांग्रेस के पार्टी आलाकमान तक को हिला दिया, क्या उस घटनाक्रम से बीजेपी की सेहत पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता? सवाल यह भी है कि क्या प्रदेश की जनता बीजेपी के इस रवैये से संतुष्ट है?सवाल यह कि क्या बीजेपी का यह रवैया राजनीति के अनुकूल है और सवाल यह भी कि हर छोटे-बड़े मुद्दे पर सरकार और उसके नेताओं को घेरने वाली बीजेपी आखिर इस मामले में 'वेट एण्ड वॉच' की पॉलिसी पर क्यों आ गई है?
प्रदेश में सियासी संकट के बीच बीजेपी 'वेट एण्ड वॉच' की स्थिति में दिख रही है. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष से लेकर दूसरे वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि बीजेपी की इस सियासी संकट में न तो कोई भूमिका है? और न ही कोई दावा, लिहाजा पार्टी अभी इन्तज़ार कर रही है कि सरकार और विधानसभा अध्यक्ष क्या फ़ैसला लेते हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर बीजेपी प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने के बावजूद तटस्थ स्थिति में क्यों है? क्या पार्टी इस पूरे मामले में सेफ गेम खेल रही है या फिर पार्टी के रणनीतिकार किसी दूसरे ही मोर्चे पर सरकार और सत्ताधारी पार्टी को घेरने की तैयारी कर रहे हैं?
क्या है चुप्पी का राज
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी चुनावों के लिए तैयार होने का दावा कर रही है. बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष और उपनेता और ज़िलाध्यक्ष तक यह दावा कर रहे हैं कि साल 2023 में राजस्थान की सत्ता से कांग्रेस का सफ़ाया होना तय है. पार्टी जनता के हितों की आवाज़ उठाने का दावा भी करती है? और सदन से सड़क तक संघर्ष की बात भी कहती है. लेकिन इन सब दावों के बीच प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम में बीजेपी की चुप्पी राजनेताओं और राजनीतिक प्रेक्षकों को हैरान कर रही है. सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस विधायक दल की बैठक को लेकर मचे जिस घमासान में कांग्रेस के पार्टी आलाकमान तक को हिला दिया, क्या उस घटनाक्रम से बीजेपी की सेहत पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता? क्या इसे कांग्रेस का अन्दरूनी मामला माना जा सकता है?
दरअसल भारतीय जनता पार्टी अभी तक इस मामले को कांग्रेस पार्टी का अन्दरूनी मामला बताकर ज्यादा कुछ बोलने से बच रही है. लेकिन सवाल फिर इस बात पर उठता है कि अगर कांग्रेस पार्टी के विधायक अपनी ही पार्टी के नेता यानि प्रदेशाध्यक्ष या पीसीसी चीफ को इस्तीफ़े देते तो इसे पार्टी का अन्दरूनी मामला माना जा सकता था. लेकिन इस बार पार्टी के विधायकों के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को दिए हैं. ऐसे में इसे सिर्फ कांग्रेस का अन्दरूनी मामला कैसे माना जा सकता है?
खुद अपने बोझ से गिर जाएगी सरकार
क्या बीजेपी किसी विशेष रणनीति पर काम कर रही है? बीजेपी की चुप्पी को प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी भले ही कांग्रेस का अन्दरूनी मामला बता रही हो, लेकिन क्या इसे बीजेपी की विशेष रणनीति के रूप में देखा जाए. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि पिछली बार साल 2020 में हुए प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम में मुंह की खाने के बाद बीजेपी कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती. लिहाजा पार्टी अभी सत्ता की खीर के ठण्डी होने का इन्तज़ार कर रही है. बीजेपी में ही एक धड़े का मानना है कि राज्य की कांग्रेस सरकार खुद अपने बोझ से गिर जाएगी. ऐसे में सरकार को अपने चक्रव्यूह में फंसने का इन्तज़ार बीजेपी नेता कर रहे हैं.
बीजेपी के सक्रिय होते ही कांग्रेस ज्यादा अलर्ट हो सकती है, लिहाजा पार्टी चुप रहना बेहतर मान रही. साल 2020 में राजनीतिक घटनाक्रम के वक्त बीजेपी मुखर हुई और सक्रिय भी दिखी. बीजेपी की सक्रियता देखकर कांग्रेस के एक धड़े ने अपने ही नेताओं को बीजेपी की गोद में बैठने के आरोप लगाते हुए घेरना शुरू कर दिया था. इसके चलते कांग्रेस में भी सरकार पर सवाल उठाने वाले नेता कुछ कमज़ोर हुए थे. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी अभी इसी सोच पर चल रही है कि कांग्रेस में विरोध का झण्डा बुलन्द करने वाला खेमा कमज़ोर नहीं हो तो कांग्रेस के कुनबे में कलह ज्यादा बढ़ेगी और भविष्य में बीजेपी इसका ज्यादा फ़ायदा उठा सकेगी.
जो होता है वो दिखता नहीं, जो दिखता है वो होता नहीं
पिछले दिनों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर कांग्रेस नेता सचिन पायलट इस बात का ज़िक्र कर चुके हैं कि राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं. ऐसे में क्या राजनीतिक घटनाक्रम पर बीजेपी की प्रतिक्रिया को भी इसी नज़रिये से देखा जाए? अगर वाकई ऐसा है तो फिर बीजेपी की चुप्पी वाकई में चुप्पी है ही नहीं.
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