Mahashivratri 2023: शिव की जटा में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा और हाथों में त्रिशूल धारण करने वाले भोलेनाथ की महिमा है न्यारी, जानें पौराणिक मान्यता
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Mahashivratri 2023: शिव की जटा में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा और हाथों में त्रिशूल धारण करने वाले भोलेनाथ की महिमा है न्यारी, जानें पौराणिक मान्यता

Maha Shiv Ratri 2023: इस साल 18 फरवरी 2023, शनिवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी.ऐसे में जानते हैं कि देवों के देव महादेव शंकर का रूप इतना अलग और सारे जग से निराले क्यों हैं?

Mahashivratri 2023: शिव की जटा में गंगा, मस्तक पर चंद्रमा और हाथों में त्रिशूल धारण करने वाले भोलेनाथ की महिमा है न्यारी, जानें पौराणिक मान्यता

Maha Shiv Ratri 2023: इस साल 18 फरवरी 2023, शनिवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी.ऐसे में जानते हैं कि देवों के देव महादेव शंकर का रूप इतना अलग और सारे जग से निराले क्यों हैं? वे अपने गंगा से लेकर चंद्रमा और गले में नागदेवता से लेकर त्रिशूल,डमरू को धारण क्यों करते हैं, पौराणिक कथाओं से जानें उसका कारण.

चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न हुए भगवान शिव

शिव पुराण की एक कथा के मुताबिक, महाराज दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया लेकिन चंद्रमा को रोहिणी से ज्यादा प्यार था. तब दक्ष की पुत्रियों ने इस बात की शिकायत अपने पिता से की और दक्ष ने क्रोध में चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया. इसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना शुरू की. इससे भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्ति दिलायी और चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर भी धारण कर लिया.

चंद्रमा को शिवजी के सिर पर धारण किया

एक और पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था और विष के प्रभाव से उनका शरीर गर्म होने लगा. तब चंद्रमा ने भोले शंकर के सिर पर विराजमान होकर उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की. जब भगवान शिव ने चंद्रमा को धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी.तभी से चंद्रमा शिवजी के सिर पर विराजमान हैं.

शिव ने गंगा को अपनी जटा में धारण कर लिया

शिव पुराण के मुताबिक भागीरथ ने माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया और उनके तप से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर आने के लिए तैयार भी हो गईं. लेकिन उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी. तब भागीरथ ने शंकर भगवान की आराधना की. शिव उनकी पूजा से प्रसन्न हुए. तब भागीरथ ने उन्हें गंगा के संबंध में सारी बातें बतायीं. इसके बाद भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटा में धारण कर लिया और उसकी केवल एक धारा को पृथ्वी पर भेज दिया.

वासुकी नाग से भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए

क्या आपको पता है कि भगवान शिव अपने गले में सर्प क्यों धारण करते हैं और यह कौन सा सर्प है? पौराणिक कथाओं के अनुसार नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे. जब अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ तब वासुकी नाग को रस्सी की जगह उपयोग किया गया. उनकी इस भक्ति से भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वासुकी नाग को अपने गले में आभूषण के तौर पर धारण कर लिया.

त्रिशूल का रहस्य

ऐसी मान्यता है कि जब शिव जी प्रकट हुए तो उनके साथ ही रज, तम और सत- ये 3 गुण भी प्रकट हुए. सत गुण त्रिगुणों में, सबसे सूक्ष्म और अमूर्त है और इसे दैवीय तत्त्व के सबसे निकट माना जाता है. तो वहीं त्रिगुणों में सबसे कनिष्ठ तम गुण है. तम गुण वाला व्यक्ति आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है. रज गुण, सत और तम को ऊर्जा प्रदान करता है और व्यक्ति से कर्म करवाता है. यही 3 गुण शिवजी के 3 शूल यात्री त्रिशूल बने. इसके अलावा महादेव का त्रिशूल प्रकृति के 3 रूप- अविष्कार, रखरखाव और तबाही का सूचक है.

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बता दें कि इस साल महाशिवरात्रि पर सालों बाद शनि ग्रह को लेकर दुर्लभ योग बन रहा है, जिसमें शिव पूजा करने से शिव और शनि दोनों प्रसन्‍न होंगे. 30 साल बाद महाशिवरात्रि के मौके पर शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में रहेंगे. देवों के देव महामाल भक्तों को काल से मुक्ति दिलाएंगे. 

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