अगली बार बच्चों पर हाथ उठाने से पहले जान लें कानून, खानी पड़ सकती है जेल की हवा
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अगली बार बच्चों पर हाथ उठाने से पहले जान लें कानून, खानी पड़ सकती है जेल की हवा

आपने अक्सर बाहर के देशों में पैरेंट्स (parents) के खिलाफ केस (Case)और सजा के मामले सुने होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत(india) में भी बच्चे(Children) को मारने पीटने या फिर डराने धमकाने पर पैरेंट्स पर केस दर्ज हो सकता है. हालांकि ये एक जमानती अपराध(bailable offense) है और इसमें 6 महीने तक की जेल (jail) भी हो सकती है.

अगली बार बच्चों पर हाथ उठाने से पहले जान लें कानून, खानी पड़ सकती है जेल की हवा

Child Rights : अक्सर स्कूलों में बच्चों की पिटाई की खबरें और फिर केस दर्ज होने के मामले आपने सुने होंगे. अक्सर बाहर के देशों में पैरेंट्स के खिलाफ केस और सजा के मामले भी आपने सुने होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में भी बच्चे को मारने पीटने या फिर डराने धमकाने पर पैरेंट्स पर केस दर्ज हो सकता है. हालांकि ये एक जमानती अपराध है और इसमें 6 महीने तक की जेल भी हो सकती है.

भारत में बच्चे की मारपीट या फिर प्रताड़ना करने पर पैरंट्स पर मामला दर्ज हो सकता है. जूवनाइल जस्टिस एक्ट के तहत पुलिस में रिपोर्ट की जा सकती है और अगर बच्चे को चोट लगती है तो आईपीसी की धाराओं के तहत मामला भी दर्ज होगा. वहीं राइट-टू-एजुकेशन एक्ट के तहत टीचर भी बच्चे को डरा-धमका या पीट नहीं सकते है. ऐसा करने पर केस भी दर्ज होगा और नौकरी भी जा सकती है.

बच्चों की प्रताड़ना के मामले में आईपीसी की धारा 323 के तहत केस दर्ज होगा. जिसमें आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होगी. बच्चे को कोर्ट में खुद ही अपना केस लड़ना पड़ सकता है और जुर्म अगर साबित होता है तो आरीपो को एक साल तक की जेल और जुर्माना भी हो सकता है.

लेकिन किसी नुकीले हथियार से मारने पर धारा 324 आरोपी पर लगेगी और 3 साल तक की सजा का प्रावधान है. वहीं जानलेवा चोट लगने पर धारा 326 के तहत 10 साल तक की सजा या फिर उम्रकैद तक हो सकती है.

वही अगर बच्चे के सिर पर चोट लगती है तो धारा 308 के तहत (गैर-इरादतन हत्या का प्रयास) का केस बन जाएगा. जिसमें 3 से 7 साल तक कैद का प्रावधान है. धारा 326 और 308 ये दोनों गैर-जमानती हैं. 

वैसे मामला समझौतावादी होने पर पिता-बच्चे की इच्छा से केस खत्म भी हो सकता है, लेकिन गंभीर धाराओं (326 और 308) में एफआईआर दर्ज होने पर मुकदमे होकर रहेगा. गैर-समझौतावादी मामले में सिर्फ हाई कोर्ट ही ये ताकत रखता है कि एफआईआर रद्द हो जाए. 

यहां ये बताना जरूरी है कि कोर्ट में बच्चे को पीटने के पीछे का मोटिव जरूर देखा जाता है और अगर गलत हरकत से रोकने के लिए या नहीं पढ़ने पर पीटा गया हो तो बचाव पक्ष के लिए केस आसान हो सकता है.

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