जयपुर न्यूज: जवाहर कला केन्द्र में मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का किया गया आयोजन
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1804405

जयपुर न्यूज: जवाहर कला केन्द्र में मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का किया गया आयोजन

जयपुर न्यूज: जवाहर कला केन्द्र में मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन किया गया.जयपुर की नाट्य प्रस्तुति में प्रेमचंद की कहानी के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था को आईना दिखाया गया.

जयपुर न्यूज: जवाहर कला केन्द्र में मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का किया गया आयोजन

जयपुर: जवाहर कला केन्द्र में सोमवार का दिन मुंशी प्रेमचंद के नाम रहा. केन्द्र व राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में कला संसार के अंतर्गत मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन किया गया. विभिन्न सत्रों में प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान पर चर्चा, कहानी पाठ व समीक्षा हुई. सभी साहित्यकारों व प्रबुद्धजनों ने वरिष्ठ साहित्यकार और सेवानिवृत आईएएस देवीराम जोधावत को भावभीनी श्रद्धांजलि भी दी.

सामाजिक व्यवस्था को आईना दिखाया 

वहीं ऋतिक शर्मा के निर्देशन में इप्टा जयपुर की नाट्य प्रस्तुति में प्रेमचंद की कहानी के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था को आईना दिखाया गया. केन्द्र के अतिरिक्त महानिदेशक (कार्यवाहक) प्रियव्रत सिंह चारण और वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी के उद्बोधन के साथ ''प्रेमचंद की विरासत के मायने'' विषय पर संवाद प्रवाह शुरू हुआ.

गोविन्द माथुर की अध्यक्षता और रजनी मोरवाल के संयोजन में हुए सत्र में मनीषा कुलश्रेष्ठ, राजाराम भादू और श्री विशाल विक्रम सिंह ने प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान और उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला. राजाराम भादू ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं आज भी मशाल बनकर साहित्यकारों और समाज का मार्ग प्रशस्त कर रही है.

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की विरासत को समग्रता में देखने की जरुरत है, वे हिंदी के पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने यथार्थवाद और गांवों को अपनी रचनाओं में स्थापित किया। उनकी रचनाओं में समाज में अंतिम छोर के व्यक्ति को बतौर नायक दिखाया गया इतना ही नहीं रचनाशीलता में वैचारिक प्रतिबद्धता को भी उन्होंने जगह दी.

विशाल विक्रम सिंह ने कहा कि विरासत के मायने सबके लिए अलग-अलग हो सकते हैं. गांधी ने जिन गावों की बात कि उनका वास्तविक ताना-बाना प्रेमचंद ने पेश किया, वे प्रामाणिक सामाजिक इतिहासकार थे. ''जब ईश्वर प्रदत्त चीजों का व्यवहार निषेध कर दिया जाए'' नमक का दारोगा की शुरूआती पंक्तियां पढ़ते हुए उन्होंने बताया कि आज जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों का सौदा किया जा रहा है यह बात सौ साल पहले प्रेमचंद ने अभिव्यक्त की थी. इसी से उनकी दूरदर्शिता और प्रासंगिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है.

मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि प्रेमचंद पर उठती अंगुलियों को देखकर हैरत होती है. पात्रों को गढ़ने में उन्होंने पूरी मनोवैज्ञानिक समझ का उपयोग किया, उनकी रचनाएं व्यक्ति को समाज और समाज को राष्ट्र से जोड़ती है. डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, कृष्ण कल्पित ने भी अपने विचार रखे. ''कहानी के नए स्वर'' सत्र में कविता मुखर, उमा, उषा दशोरा, उजला लोहिया ने अपनी कहानियां पढ़ी.

ये भी पढ़ें- राजस्थान सरकार लाखों किसानों को दिलाएगी कर्ज से मुक्ति, इस आयोग के गठन से बैंक अब नहीं कर पाएंगे जमीन नीलाम

ये भी पढ़ें- 50 साल के बाद मंगल, शुक्र और बुध साथ, इन राशियों की तरक्की करेगी आश्चर्यचकित

ये भी पढ़ें-जयपुर: इटर्नल वॉयस ऑफ डॉक्टर्स का ग्रैंड फिनाले का आयोजन, कुमार सानू और अलका याग्निक ने किया जज

Trending news