Jaipur: जवाहर कला केंद्र में लोकरंग 2022 समारोह, विभिन्न संस्कृतियों को देख लोगों ने की तारीफ
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Jaipur: जवाहर कला केंद्र में लोकरंग 2022 समारोह, विभिन्न संस्कृतियों को देख लोगों ने की तारीफ

इन दिनों लोक कला के रंग में रंगे जवाहर कला केंद्र की ओर कला प्रेमी खींचे चले आ रहे हैं. लोकरंग महोत्सव के चौथे दिन मध्यवर्ती में हुए कार्यक्रम में आगंतुक राजस्थान समेत सात राज्यों की लोक कला से रूबरू हुए.

Jaipur: जवाहर कला केंद्र में लोकरंग 2022 समारोह, विभिन्न संस्कृतियों को देख लोगों ने की तारीफ

Jaipur: इन दिनों लोक कला के रंग में रंगे जवाहर कला केंद्र की ओर कला प्रेमी खींचे चले आ रहे हैं. लोकरंग महोत्सव के चौथे दिन मध्यवर्ती में हुए कार्यक्रम में आगंतुक राजस्थान समेत सात राज्यों की लोक कला से रूबरू हुए. वहीं राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का वैभव समेटे शिल्पग्राम में जादूगरी, गैर नृत्य व मांगणियार गायन की प्रस्तुति देखने का मौका मिला. 

मध्यवर्ती वाद्य वृंद प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. श्रोताओं ने मशक, राम सारंगी, नगाड़ा, ढोलक, जेम्बे वादन की सुरीली प्रस्तुति का आनंद लिया. अजमेर के रमेश कंडारा ने बताया कि सारंगी, रावणहत्था, वायलिन और सितार के संयोजन से उन्होंने राम सारंगी को इजाद किया है, जिसका वादन पहली बार किया गया है. इसमें स्टील के 10 तार रावणहत्थे की तरह लगे हैं वहीं अन्य 4 तार वायलिन की तर्ज पर लगे हैं. इस वाद्य यंत्र का स्वरूप सारंगी की तरह है पर यह वायलिन की तरह नीचे से ऊपर की ओर बजाया जाता है.

वहीं आंध्र प्रदेश से आए कलाकारों ने चेका बजना प्रस्तुति में भगवान राम का गुणगान किया. गुजरात के मिक्स रास नृत्य की मनोरम प्रस्तुति के बाद परवीन मिर्जा की आवाज में ढूंढाडी गायन से लोगों ने आत्मीय जुड़ाव महसूस किया. इसके बाद मणिपुर से आए कलाकारों ने थांगटा नृत्य की प्रस्तुति दी. मणिपुर में ‘थांग‘ यानी तलवार और ढाल को ‘टा’ कहा जाता है. समूह के अगुआ सुनील ने बताया कि प्राचीन समय में हर मणिपुरवासी को थांगटा सीखना जरूरी होता था. 

यह प्राचीन युद्ध कला थी जो अब नृत्य स्वरूप में पेश की जा रही है. मंच पर युद्ध की इस कला को देख लोग रोमांचित हो उठे. इसके बाद बस्तर से आए कलाकारों ने गौंडा जनजाति द्वारा किया जाने वाला ककसार नृत्य पेश किया. वहां चावल की फसल कटने पर देव पर्व के दौरान यह नृत्य किया जाता है.

 मराठी वेशभूषा में तैयार युवक-युवतियों ने पारंपरिक कोली नृत्य की पेशकश के साथ माहौल खुशनुमा बना दिया. इसके बाद पुंग (पारंपरिक वाद्य यंत्र) बजाते हुए मणिपुर के कलाकारों ने जो चोलम (बाॅडी मूवमेंट) दर्शाया वह काबिले तारीफ रहा. पुंग चोलम की इस प्रस्तुति ने खूब तालिया बंटोरी. ओडिशा के डालखाई नृत्य में भाई-बहन के प्रेम को दर्शाया गया. अंत में हुई राजस्थान की सहरिया जनजाति के स्वांग नृत्य की प्रस्तुति चर्चा का विषय बनी. विभिन्न रूप धरकर पारंपरिक नृत्य से कलाकारों ने लोगों का मनोरंजन किया.

Reporter- Anoop Sharma

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