गुलाबी शहर में जगह-जगह लगा कचरे का अंबार, अधिकारी कह रहे- कहीं कोई गंदगी नहीं
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गुलाबी शहर में जगह-जगह लगा कचरे का अंबार, अधिकारी कह रहे- कहीं कोई गंदगी नहीं

जयपुर शहर में इनदिनों कचड़े का अंबार लगा है. नगर निगम प्रशासन में किसी को शर्म नहीं आती है. ऐसा लग रहा है जैसे सबको कचरे और बदबू के बीच रहने की आदत पड़ गई हो. शहरवासियों पर क्या गुजर रही है किसी को चिंता नहीं है. जनता से लेकर जनप्रतिनिधि सब इस कचरे के ढे़र और सीवरेज के गंदे पानी में रहने को मजबूर हैं. इतना सबकुछ होने के बावजूद अफसर कह रहे हैं की शहर साफ हैं.

जयपुर शहर में कचड़ा-ही कचड़ा.

Jaipur: जयपुर शहर में इनदिनों कचड़े का अंबार लगा है. नगर निगम प्रशासन में किसी को शर्म नहीं आती है. ऐसा लग रहा है जैसे सबको कचरे और बदबू के बीच रहने की आदत पड़ गई हो. शहरवासियों पर क्या गुजर रही है किसी को चिंता नहीं है. जनता से लेकर जनप्रतिनिधि सब इस कचरे के ढे़र और सीवरेज के गंदे पानी में रहने को मजबूर हैं. इतना सबकुछ होने के बावजूद अफसर कह रहे हैं की शहर साफ हैं.

नगर निगम ग्रेटर सिर्फ नाम हैं. इसमें बैठने वाली शहरी सरकार की मुखिया और लालफीताशाही इसे ग्रेट बनाने में पूरी तरह फेल साबित हुई हैं. आज राजधानी के हर गली-मोहल्ले में लगे कचरे के ढेर शहर का 'गौरव' बढ़ा रहे हैं. आम लोगों का सड़कों से गुजरना तक मुहाल हो गया है,पर जिम्मेदारों ने आंख-नाक-कान सब बंद कर रखे हैं. 

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जब राजधानी के ये हाल हैं तो प्रदेश के अन्य शहरों की क्या दशा होगी, कल्पना की जा सकती है. एक ही उपाय रह गया है नागरिक स्वयं झाड़ू-तगारी लेकर सड़कों पर निकल जाएं . शायद किसी का जमीर जाग जाए. गली नुक्कड से लेकर मुख्य सडकों, वीआईपी रोड पर आपको कचरे का ढेर और सीवरेज का बहता पानी दिख जाएगा. 

जिम्मेदार अफसर नगर निगम ग्रेटर आयुक्त महेन्द्र सोनी बयान दे रहे हैं कि बीवीजी को हटाने के बाद नगर निगम के सभी संसाधन झोंक दिए हैं. ग्रेटर के वार्डों में 300 हूपर लगा दिए हैं. जेसीबी, डंपर की व्यवस्था की जा रही हैं. सवाल ये है की फिर ये सब व्यवस्था कर रखी है तो सडकों पर कचरा क्यों दिख रहा हैं ? क्या कागजों में हूपर, जेसीबी चल रही हैं. स्टेट हैंगर जैसा वीआईपी रूट पर सडक पर पानी बह रहा हैं और कचरे का ढेर लग रहा है. ये तस्वीरे भी आपने खुद ने देखी. फिर हूपर, जेसीबी, डंपर कहा गए. कहने को दो नगर निगम बना दिए गए हैं पर इससे शहर का भला होने के बजाए मुख्य समस्याएं दोगुनी हो गईं. रीढ़-विहीन अफसर साहसिक निर्णय नहीं ले पाते. मंत्रियों और विधायकों के इशारे पर काम करने वाले कठपुतले बनकर रह गए हैं.

नगर निगम आयुक्त महेन्द्र सोनी ने पदभार संभालने के बाद ढाई महीने में दो या तीन बाद ग्रेटर सीमा का विजिट किया. आज भी वो शहर के दौरे पर निकले लेकिन ऑफिस में बैठकर सफाई व्यवस्था पटरी पर लाने का दावा करने वाले खुद आयुक्त महेन्द्र सोनी को जगह-जगह कचरे के ढेर मिले. सीवरेज का बहता पानी दिखा. इस पर सांगानेर जोन उपायुक्त संगीता मीना को नोटिस देकर सफाई व्यवस्था में लापरवाही करने पर स्पष्टीकरण मांगा हैं. वहीं मालवीय नगर, जगतपुरा और सांगानेर में वार्डों में जगह-जगह कचरा मिलने पर तीन स्वास्थ्य निरीक्षकों को निलंबित किया गया हैं.

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सोनी का कहना हैं की नई सफाई व्यवस्था जल्द ही नगर निगम में लागू हो जाएगी. बीवीजी कंपनी को हटाने के बाद नगर निगम ने खुद के संसाधन वार्डों में लगाए गए हैं घर-घर कचरा संग्रहण का काम हो रहा हैं. लेकिन सच्चाई ये है की पिछले 15 दिन से घर-घर कचरा संग्रहण की व्यवस्था गड़बड़ाई हुई है. इसका असर ग्रेटर निगम सीमा क्षेत्र में जगह-जगह ओपन कचरा डिपो बन गए हैं. जयपुरराइट्स को इस बात का इंतजार रहता है कि कचरा लेने हूपर कब आएगा ?. जिम्मेदार अधिकारियों ने व्यवस्था बनाने की बात कहकर जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया है.

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जबकि एक जून से महापौर सौम्या गुर्जर ने निगम आपके द्वार अभियान शुरू किया लेकिन उसका जनता को सीधे कोई फायदा मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. अब तक एक भी वार्ड में किसी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ. उधर नगर निगम ग्रेटर में आयुक्त का जिम्मा संभालने के बाद मुश्किल से दो से तीन बार महेन्द्र सोनी ने सिटी राउंड किया हैं. सोनी ने कागजों में सिर्फ आदेश निकाले. शहर में निकलकर यदि देखते की जनता कैसे रह रही है और कचरा संग्रहण की क्या व्यवस्था है. तो शायद इस तरह का कचरा दिखाई नहीं देता. शहर के पार्षद तो जैसे कमेटियों के पद पाकर ही प्रसन्न हो गए हैं. वार्ड में एकाध सड़कें बनवा दीं तो जैसे गढ़ जीत लिया. रोजमर्रा की समस्याओं से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा.

बहरहाल, जयपुर में जनप्रतिनिधियों और अफसरों को तब भी शर्म नहीं आई जब स्वच्छता रैंकिंग में जयपुर ही नहीं, पूरा राजस्थान फेल हो गया. लगातार ऐसा हो रहा है पर सब चिकने घड़े हो रहे हैं. शहरवासी जब इंदौर और भोपाल के अच्छी रैंकिंग पर आने की बात सुनते हैं तो शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं. पर जनप्रतिनिधि और अफसर कलंक के टीके को ही विजय का तिलक मानकर इतरा रहे हैं. 

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