NCRB के आंकड़ों पर सीएम गहलोत की सफाई, बोले-राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास
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NCRB के आंकड़ों पर सीएम गहलोत की सफाई, बोले-राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास

गहलोत ने कहा है कि अनिवार्य पंजीकरण नीति का ही परिणाम है कि 2017-18 में 33% FIR कोर्ट के माध्यम से CrPC 156(3) के तहत इस्तगासे द्वारा दर्ज होती थीं परन्तु अब यह संख्या सिर्फ 13% रह गई है. इनमें भी अधिकांश सीधे कोर्ट में जाने वाले मुकदमों की शिकायतें ही होती हैं.

 NCRB के आंकड़ों पर सीएम गहलोत की सफाई, बोले-राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास

Jaipur: NCRB की ताजा रिपोर्ट के बाद राजस्थान में कानून व्यवस्था पर उठते सवालों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान सामने आया है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि NCRB 2021 की क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट के बाद राजस्थान को बदनाम करने के प्रयास किए जा रहे हैं. सामान्य वर्षों 2019 और 2021 के बीच आंकड़ों की तुलना करना उचित होगा क्योंकि 2020 में लॉकडाउन रहा. राजस्थान FIR के अनिवार्य पंजीकरण की नीति के बावजूद 2021 में 2019 की तुलना में करीब 5% अपराध कम दर्ज हुए हैं जबकि MP, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड समेत 17 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अपराध अधिक दर्ज हुए हैं. गुजरात में अपराधों में करीब 69%, हरियाणा में 24% एवं MP में करीब 20% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. हत्या, महिलाओं के विरुद्ध अपराध एवं अपहरण में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है. सबसे अधिक कस्टोडियल डेथ्स गुजरात में हुईं हैं. नाबालिगों से बलात्कार यानी पॉक्सो एक्ट के मामले में मध्य प्रदेश देश में पहले स्थान पर है जबकि राजस्थान 12वें स्थान पर है.

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गहलोत ने कहा है कि अनिवार्य पंजीकरण नीति का ही परिणाम है कि 2017-18 में 33% FIR कोर्ट के माध्यम से CrPC 156(3) के तहत इस्तगासे द्वारा दर्ज होती थीं परन्तु अब यह संख्या सिर्फ 13% रह गई है. इनमें भी अधिकांश सीधे कोर्ट में जाने वाले मुकदमों की शिकायतें ही होती हैं. यह हमारी सरकार के उठाए गए कदमों का नतीजा है कि 2017-18 में बलात्कार के मामलों में अनुसंधान समय 274 दिन था जो अब केवल 68 दिन रह गया है. पॉक्सो के मामलों में अनुसंधान का औसत समय 2018 में 232 दिन था जो अब 66 दिन रह गया है. राजस्थान में पुलिस द्वारा हर अपराध के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई की जा रही है. सरकार पूरी तरह पीड़ित पक्ष के साथ खड़ी रहती है. 2015 में SC-ST एक्ट के करीब 51% मामले अदालत के माध्यम से CrPC 156 (3) से दर्ज होते थे. अब यह महज 10% रह गया है. यह FIR के अनिवार्य पंजीकरण नीति की सफलता है.

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मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह चिंता का विषय है कि कुछ लोगों ने हमारी सरकार की FIR के अनिवार्य पंजीकरण की नीति का दुरुपयोग किया है एवं झूठी FIR भी दर्ज करवाई. इसी का नतीजा है कि प्रदेश में 2019 में महिला अपराधों की 45.28%, 2020 में 44.77% एवं 2021 में 45.26% FIR जांच में झूठी निकली. झूठी FIR करवाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है एवं आगे भी की जाएगी. जनवरी, 2022 में अलवर में नाबालिग विमंदित बालिका से गैंगरेप का मामला बताकर पूरे देश के मीडिया ने राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास किया परन्तु उस मामले की जांच में सामने आया है कि यह एक सड़क दुर्घटना का मामला था. यह मामला CBI को भी जांच के लिए भेजा था परन्तु CBI ने इस केस की जांच तक अपने पास नहीं ली. सरकार की राय है कि चाहे कुछ झूठी FIR भी क्यों नहीं हो रही हों परन्तु अनिवार्य पंजीकरण की नीति से पीड़ितों एवं फरियादियों को एक संबल मिला है वो बिना किसी भय के थाने में अपनी शिकायत देकर न्याय के लिए आगे आ रहे हैं.

बलात्कार के प्रकरणों में राजस्थान में सजा का प्रतिशत करीब 48% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये मात्र 28.6% है. महिला अत्याचार के प्रकरणों में राजस्थान में सजा का प्रतिशत 45.2% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 26.5% है. महिला अत्याचार के प्रकरणों की पेंडिंग प्रतिशत 9.6% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 31.7% है. IPC के प्रकरणों में राजस्थान में पेंडिंग प्रतिशत करीब 10% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 35.1% है.

गहलोत ने कहा है कि एक अन्य चिंता का विषय यह भी है कि यौन अपराधों के करीब 90% मामलों में आरोपी एवं पीड़ित दोनों एक दूसरे के पूर्व परिचित होते हैं यानी यौन अपराधों में परिचित लोग ही भरोसे का नाजायज फायदा उठाकर कुकृत्य करते हैं. हम सभी को इस बिन्दु पर गंभीर चिंतन करना चाहिए कि इस सामाजिक पतन को किस प्रकार रोका जाए.

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