पर्वत बिहार के बांका जिले में है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र मंथन किया गया था. तो वहीं सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया था. जिसके बारे में कहा गया है कि इसी पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र मंथन किया गया था.
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Samudra Manthan: पुराणों में समुंद्र मंथन को लेकर प्रचलित कहानियां हैं, जिनके बारे में आज भी साक्ष्य मिलते हैं. ऐसा ही एक पर्वत बिहार के बांका जिले में है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र मंथन किया गया था. तो वहीं सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया था. जिसके बारे में कहा गया है कि इसी पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र मंथन किया गया था. ऐसे में किन बातों पर यकीन किया जाएं? तो क्या ये पहाड़ जो मथनी बनाकर संमुद्र मंथन किया गया था ये इतनी दूर कैसे पहुंच गया, तो सवाल उठता है कि ये उठाकर ले जाया गया. जानिए इस पर्वत पर को लेकर पूरी कहानी....
आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी विभाग ने ये दावा किया कि सूरत जिले के पिंजरात इलाके के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया था. इस विभाग के अधिकारियों के अनुसार बिहार के भागलपुर के पास स्थित भी एक मंदराचल पर्वत है, जो गुजरात के समुद्र से निकले पर्वत का हिस्सा है.
इस दावे की पुष्टि इस दावे के साथ किया कि बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है. इस तरह ये दोनों पर्वत एक ही हैं. तो क्या संभव नहीं है कि ऐसे ग्रेनाइट पत्थर कहीं और नहीं मिलते है. इनके दावे में ये बताया गया कि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते हैं. जबकि दूसरी ओर ये दावा किया गया है कि खोजे गए पर्वत के बीचोबीच नाग आकृति है जिससे यह साबित होता है कि यह पर्वत समुंद्र मंथन के दौरान इस्तेमाल किया गया होगा. इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध और कौतूहल का विषय बना हुआ है.
पौराणिक कथाओं में मंदार पर्वत को लेकर प्रचलित कहानी है. देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे.ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन में नाग को रस्सी की तरह प्रयोग किया गया था, जिसका साक्ष्य पहाड़ पर अंकित लकीरों से होता है.
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इसी मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब भी मौजूद है. कहा जाता है कि कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान आदि करके पूजा अर्चना किया था, जिसके बाद से उसका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है. पापहरणी तालाब के बीचों बीच लक्ष्मी -विष्णु मंदिर स्थित है. हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है. मेले के पहले यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं.