राजस्थान चुनाव: चूरू राजस्थान के मरुस्थलीय भाग का एक नगर एवं लोकसभा क्षेत्र है. इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है. यह चूरू जिले का जिला मुख्यालय है. इसकी स्थापना 1620 ई में राजपुरोहित द्वारा की गई थी और उनके नाम पर ही जिले का नाम चूरू है.
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चूरू: राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव है और पूरी तरह से तमाम पार्टियां चुनावी रण में उतर चुकी है .वहीं जनता को अपने अपने तरीके से मुद्दों के साथ अब वादे करने का भी सिलसिला शुरू हो चुका है, आपको बताते हैं कि ग्राउंड जीरो पर जनता क्या सोचती है. जनता के दिल और दिमाग में क्या चल रहा है.
विधानसभा - चूरू
कुल मतदाता - 253,988/-
पुरुष मतदाता -131275
महिला मतदाता-122713
जातीय समीकरण - ब्राह्मण, जाट, ओबीसी , दलित, राजपूत व मुस्लिम
विधायक -राजेन्द्र सिंह राठौड़ - ( बीजेपी)
चूरू राजस्थान के मरुस्थलीय भाग का एक नगर एवं लोकसभा क्षेत्र है. इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है. यह चूरू जिले का जिला मुख्यालय है. इसकी स्थापना 1620 ई में राजपुरोहित द्वारा की गई थी और उनके नाम पर ही जिले का नाम चूरू है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक और आर्थिक पहलू, सीट की अहमियत
गर्मियों में अधिक गर्म और सर्दियों में अधिक ठंडा रहने वाले चूरू ने देश के मौसम तंत्र में अपनी अलग ही छाप छोड़ी है, इस बार सर्दियों में
होने वाले विधानसभा चुनावों की तपिश यहां अभी से देखी जा सकती है. इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है, कहते हैं कि चूरू की स्थापना चूहरू जाट ने 1620 ई. में की थी, जिसके नाम से इसका नाम चूरू पड़ा. यह क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य है और यहां से कांग्रेस के टिकट से मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे हैं.
वोटों का मार्जिन (जीते और हारे के बीच)-
गत विधानसभा चुनाव 2018 में 2 लाख 33 हजार 187 कूल मतदाता थे, जिनमें से 1 लाख 80 हजार 634 ने मताधिकार का प्रयोग किया. भाजपा के राजेन्द्र सिंह राठौड ने अपने निकटवर्ती कांग्रेस के रफीक मण्डेलिया को 1854 वोटों से पराजित किया. भाजपा के राजेन्द्र राठौड़ को 87233 मत मिले जबकि कांग्रसे के रफीक मण्डेलिया को 85379 मत मिले.
सीट के प्रमुख मुद्दे-
1. विधानसभा क्षेत्र में रिंग रोड़ की कमी
2. शहर में बरसाती एवं गन्दे पानी की निकासी का स्थाई समाधान नहीं.
3. विधानसभा क्षेत्र में किसानों के लिए नहर का न आना.
4. चूरू जयपुर रोड़ पर बना हुआ ओवर ब्रिज जो दुर्दशा का शिकार
5. सरकारी बीएड कॉलेज व इजीनियरींग कॉलेज की मांग
6. गांव गाजसर की गन्दे पानी की समस्या
7. शहर की सड़कों के खस्ताहाल
सीट कब बनी और अब तक कौन व किस पार्टी के विधायक रहे
1952 से अब तक चूरू सीट पर ये बने विधायक-
1952 प्रभुदयाल- कांग्रेस
1952 कुम्भाराम- कांग्रेस
1957 मोहरसिंह- निर्दलीय
1957 रावतराम मेघवाल- कांग्रेस
1952 व 1957 के विधानसभा चुनाव में चूरू में दो-दो विधायक चुने गए. उस समय सादुलपुर चूरू में ही शामिल था.
1962 मोहरसिंह राठौड़- निर्दलीय
1967 मेघराज- निर्दलीय
1972 मोहरसिंह राठौड़- कांग्रेस
1977 मेघराज- जनता पार्टी
1980 भालू खां- कांग्रेस
1985 हमीदा बेगम- कांग्रेस
1990 राजेंद्र राठौड़- जनता दल
1993 राजेंद्र राठौड़- भाजपा
1998 राजेंद्र राठौड़- भाजपा
2003 राजेंद्र राठौड़- भाजपा
2008 मकबूल मण्डेलिया- कांग्रेस
2013 राजेंद्र राठौड़- भाजपा
2018 राजेन्द्र राठौड़- भाजपा
मौजूदा विधायक की उपलब्धियां और कमियां (इस कार्यकाल में)
विधायक राजेन्द्र राठौड़ ने लोगों के व्यक्तिगत कार्य करवाये जिसकी वजह से ये लोगों के बीच उनके नाम से जानते पहचानते हैं. चूरू विधानसभा में आईटीआई कॉलेज, पॉलिटेक्निकल कॉलेज, नर्सिग कॉलेज, पुराना गर्वरमेंट नर्सिग ट्रेनिग सेन्टर, चूरू डाइट, बीएसटीसी कॉलेज, लॉ कॉलेज, नर्सिग कॉलेज, मेडीकल कॉलेज, बालिका महाविधालय, लोहिया कॉलेज में स्टेडियम का निर्माण, चूरू में जिला स्टेडियम, नया बस स्टेण्ड, चूरू आगार बस स्टेण्ड, चूरू विधानसभा के 108 गांवो में 21 पीएचसी, 04 शहरी पीएचसी, 03 सीएचसी,चूरू विधानसभा में 10 पशु चिकित्सालय (चूरू सातड़ा झारिया, भामासी, दुधवाखारा, धांधू, रतननगर, सहजूसर, लोहसना, खण्डवा), चूरू विधानसभा में आयुर्वेद चिकत्सालय, इसीएचसी अस्पताल, नेत्र चिकित्सालय, नेत्र एवम् इएनटी चिकित्सालय, इन्द्रमणी पार्क का विकास, चूरू कृषि मण्डी, किसान भवन, पॉलिक्लिनीकल चिकित्सालय, 4 प्रथम श्रेणी के चिकित्सालय, 11 पशु चिकित्सालय, 26 सब सेन्टर, नेचर पार्क, बागला स्कूल का खेल मैदान, चूरू चोपाटी आदि के लिए कार्य करवाए.
चूरू विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण भाजपा व कांग्रेस ने कई बार मुस्लिम उम्मीदवार पर ही दांव खेलती है. लेकिन यहां तीन बार ही सफल हो पाए हैं. चुनावों में मूल ओबीसी, एससी, अल्पसंख्यक ,जाट व राजपूत मतदाता चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं.
यहां पर लगातार 1990 से 2018 तक राजेन्द्र राठौड़ लगातार चुनाव लड़ते आये, ओर जीत भी हासिल की. जिनमें एक बार 2008 में उन्होंने सीट बदल कर तारानगर चले गए थे, इस दौरान हाजी मकबूल मंडेलिया चूरू के विधायक बने.
1990 के बाद सिर्फ एक बार कांग्रेस नद जीत हासिल की है. इस तरह चूरू विधानसभा भाजपा की परंपरागत सीट रही है, यह भाजपा के लिए अभेद्य किला मानी जाती है. लेकिन इसबार विधानसभा चुनाव में बदलते समीकरण भाजपा के लिए चिंताजनक है. इस बार फिर भाजपा ने हरलाल सारण को प्रत्याशी बनाया है. वहीं राजेंद्र राठौड़ ने फिर इस बार तारानगर सीट से नामांकन दाखिल किया है देखना यह है कि 2008 में हाजी मुकुल मंडेलिया के सामने हरलाल सारण पराजित हुए थे इस बार मंडेलिया के पुत्र रफीक मंडेलिया के सामने कड़ी टक्कर में हरलाल सारण कितने सफल होते हैं.
चूरु में भाजपा का विधायक होने के बाद भी यहां कांग्रेस की नगरपरिषद है. पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी राजेन्द्र राठौड़ व कांग्रेस से रफीक मंडेलिया मैदान में थे, लेकिन सीधी टक्कर में राजेंद्र राठौड़ मात्र 1850 मतो से विजय हुआ.
इस बार चूरू के विधानसभा चुनाव रोचक स्थिति में आगया है. एक तरफ कांग्रेस के रफ़ीक मंडेलिया ने अशोक गहलोत सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों व स्थानीय चुनावों में जनता से मिले समर्थन के अधार पर जीत का दावा कर रही है. वही दूसरी ओर भाजपा के हारलाल सारण चूरू को अपनी परंपरागत सीट मानते हुए जीत का दावा कर रही है. ऐसे में भाजपा व कांग्रेस के लिए यह सीट निकालना प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है.
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