कपासन- मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज का दानपात्र खुला, 21 लाख, 58 हजार 610 रुपए मिले
Advertisement

कपासन- मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज का दानपात्र खुला, 21 लाख, 58 हजार 610 रुपए मिले

Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ जिले में कपासन के मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज के मंदिर के तेल कुंड और नवग्रह मंदिर में लगे शनिदेव का दान पत्र  खोला गया. इस तीर्थ स्थल पर साल में एक बार शनि अमावस्या का दिन आता है जिसमें सभी दान पात्रों की राशि को बैठक कक्ष में लाकर गणना की  जाती है.

 shani-maharaj.

Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ जिले में कपासन के मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज के मंदिर के तेल कुंड और नवग्रह मंदिर में लगे शनिदेव का दान पत्र  खोला गया. दानपात्र को पूरे विधि विधान के साथ  पूजा अर्चना कर के खोला गया.  इस बारे में मंदिर कमेटी के सचिव कालू सिंह चौहान ने बताया कि,  मंदिर के तेल कुंड व नवग्रह मंदिर में लगे श्रद्धा पात्रों को विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर कमेटी के सदस्यों की उपस्थिति में खोला गया. जिसमें 21 लाख 58 हजार 610 रूपये की भेट राशि प्राप्त हुई, जबकि छोटे सिखों की गिनती करना बाकी है.

यह भी पढ़ेंः बांदीकुई: मायके की नासमझी बेटी की ले गई जान, पति से विवाद के बाद लौटी थी लेकिन अब...

 

शनि देव का भंडार खोला गया

इस तीर्थ स्थल पर साल में एक बार शनि अमावस्या का दिन आता है जिसमें सभी दान पात्रों की राशि को बैठक कक्ष में लाकर गणना की . इसमें मुख्य मंदिर नवग्रह तेल गोंड सहित पूरे मंदिरके दानपात्र होते है.  चिल्लर की गिनती रविवार के दिन की जाएगी.  कमेटी अध्यक्ष छगन लाल गुर्जर ने बताया कि श्रद्धा पात्रों से प्राप्त राशि का व्यय यात्रियों की सुख सुविधा व मंदिर विकास में खर्च किया जाएगा। 

शनि महराज मंदिर, चित्तौडगढ़
शनि देव का यह मंदिर आली गांव में स्थित है, जिसे शनि महाराज के नाम से भी जाना जाता है. यह सांवलिया सेठ प्राकट्य स्थल मंदिर, भादसोड़ा चौराहा से 8 किलोमीटर दूर है. इसे चमत्कारी मंदिर भी कहा जाता है. यहां शनिदेव को चढ़ाया जाने वाला तेल एक प्राकृतिक कुंड में इक्ट्ठा होता है. इस तेल का उपयोग चर्म रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है. प्रचलित किवदंती के मुताबिक कई बार इस कुंड के तेल को व्यवसायिक उपयोग के लिए निकाला गया तो उसके चमत्कारी गुण समाप्त हो गए.

इस मंदिर में सबसे पहले पूजा-पाठ स्वर्गीय महाराज श्री रामगिरी जी रेबारी ने शुरू की थी. उनके परलोक गमन के बाद उनकी समाधि स्थल के लिए नींव खोदी जा रही थी. इस दौरान जमीन से तेल निकलने लगा जिसे कुंड के रूप में स्थापित किया गया. कुंड के बगल में समाधि स्थल बनाया गया.

यह भी पढ़ेंः दौसा में बिपरजॉय तूफान के चलते कलेक्टर कमर चौधरी ने दिखाई मुस्तैदी, पुलिस प्रशासन और स्वास्थ विभाग को किया अलर्ट

Trending news