राजस्थान के जैसलमेर की कलेक्टर टीना डाबी(IAS Tina Dabi) पर भीलवाड़ा में एसडीएम रहने के दौरान अब पाकिस्तान में रह रहे परिवार की जमीन की खातेदारी के अधिकारी दूसरे को देने के मामले में बड़े सवाल हुए हैं.
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Bhilwara News : राजस्थान के भीलवाड़ा के पास पड़ती पालड़ी गांव में पाकिस्तान में रह रहे एक शख्स की करोड़ों की जमीन के खातेदारी के अधिकार दूसरों को देने के मामले में हुई पहली प्रशासनिक जांच में तत्कालीन भीलवाड़ा एसडीएम आईएएस टीना डाबी (IAS Tina Dabi) के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच और उनसे टिप्पणी लेने की सिफारिश कलेक्टर से की गई थी.
लेकिन ये रिपोर्ट सौंपने के 4 महीने बाद भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है. भीलवाड़ा एसडीएम की ओर से की गई जांच रिपोर्ट कलेक्टर को 20 जून को सौंपी गई थी. इस जमीन की डिक्री करने वाली आईएएस टीना डाबी (IAS Tina Dabi) अभी जैसलमेर कलेक्टर हैं और इसका नामांकन करने वाले तत्कालीन भीलवाड़ा उप पंजीयक अजीत सिंह अभी पदोन्नत होकर आरएएस बने हैं और हाल में भीलवाड़ा के ही हमीरगढ़ में पोस्टेड हैं.
आपको बता दें कि भीलवाड़ा शहर के निकटवर्ती सांगानेर और पालड़ी में सालों पहले पाकिस्तान जा चुके लोगों की जमीन पर भू माफियाओं की नजर है. पाकिस्तान जाने वालों की जो जमीन सरकारी कब्जा घोषित हो चुकी है इसका रिकॉर्ड जमाबंदी में अभी भी पेंसिल से लिखा हुआ है इसी का फायदा उठाकर भूमाफिया रिकॉर्ड में हेरफेर करते हैं.
इस डिजिटल युग में भी अभी तक कस्टोडियन जमीन का रिकॉर्ड ऑनलाइन नहीं होना ये बताता है कि इस पूरी गड़बड़ी में सरकारी सिस्टम भी जिम्मेदार है. इस बात का उल्लेख पिछले दिनों भीलवाड़ा एसडीएम की ओर से भीलवाड़ा तहसीलदार को लिखे पत्र में भी है.
पालड़ी क्षेत्र की जमीन की कीमत करोड़ों रुपये में होने से शहर के बड़े भू माफियाओं की इस पर नजर है. पिछले कुछ सालों से पालड़ी क्षेत्र की जमीनों की रजिस्ट्री, पंचायत की ओर से जारी पट्टे, यूआईटी की ओर से किए जा रहे अधिग्रहण की विस्तृत जांच की जाए तो कई बड़े खुलासे हो सकते हैं.
क्या है आईएएस टीना डाबी (IAS Tina Dabi) विवाद
पाकिस्तान में रह रहे शख्स की साढ़े तीन बीघा जमीन का तत्कालीन भीलवाड़ा एसडीएम (जो अभी जैसलमेर कलेक्टर है) टीना डाबी ने दूसरे लोगों को खातेदारी अधिकार (डिक्री) दे दिए. नियमों के मुताबिक खातेदार अधिकार मिलने के बाद जमीन का नामांतरण होना था, लेकिन नामांतरण के बजाय भीलवाड़ा के तत्कालीन उप पंजीयक जो फिलहाल हमीरगढ़ में पोस्टेड हैं यानि कि अजीत सिंह ने सीधे जमीन की रजिस्ट्री कर डाली.
जब राजस्व विभाग के उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने इसे गलत माना. इसके बाद भीलवाड़ा तहसीलदार ने एसडीएम टीना डाबी की ओर से की गयी डिक्री और अजीत सिंह की ओर से किए गए पंजीयन को गलत बताते हुए, इसके खिलाफ भू प्रबंध अधिकारी एवं पदेन राजस्व अपील प्राधिकारी कोर्ट में अपील कर दी, अपील पर कोर्ट ने स्टे दे दिया है.
अपील में डिक्री और पंजीयन करने को भारी भूल बताया गया है. इसके अलावा एसडीएम टीना डाबी की ओर से की गई डिक्री और अजीत सिंह की ओर से किए पंजीयन के मामले की जिला प्रशासन ने भी अपने स्तर पर एक जांच भी करवाई. इस जांच में भी डिक्री और पंजीयन पर गंभीर सवाल उठाए गये हैं. विवादित जमीन की वर्तमान कीमत 8 से 10 करोड़ रुपए हैं.
एसडीएम डाबी ने 1973 की जिस नीलामी पर्ची को आधार मानकर खातेदारी अधिकार दूसरों को दिए, तहसीलदार ने उसी पर्ची को गलत बताकर एसडीएम की निष्पक्षता पर प्रश्न चिह्न लगा दिये हैं. नीलामी में जमीन ली इसलिए अधिकार भीलवाड़ा एसडीएम टीना डाबी ने 25 नवंबर 2019 को निर्णय दिया था. इसमें क्या लिखा गया है- भीलवाड़ा शहर के नजदीक पालड़ी गांव में आराजी नंबर 1186/1 की 3.06 बीघा जमीन अब्दुल रहमान की थी, उसके पाकिस्तान चले जाने के कारण उनकी जमीन 9 जनवरी 1991 को कस्टोडियन (सरकारी कब्जा) घोषित हो गई. इसकी जानकारी पुर्नवास विभाग नई दिल्ली के 9 जनवरी 1991 की क्रम संख्या 101 पर भी दर्ज है. साल 2014 से 2017 की जमाबंदी की नकल में अब्दुल के पाकिस्तान जाने संबंधित नोट भी अंकित है.
अब्दुल रहमान के पाकिस्तान जाने के बाद जमीन के आराजी नंबर 2011 हो गए. जिसे सार्वजनिक नीलामी में सुखदेव जाट को साल 1973 में 320 रुपए में दी गयी. अभी मौके पर कब्जा भी सुखदेव जाट का है, इसलिए इनको खातेदार घोषित किया जाता है. इस मामले में तहसीलदार ने अपील में निष्पक्षता पर प्रश्न चिह्न लगाया (तहसीलदार की ओर से की गई अपील में लिखा- कस्टोडियन जमीन के हस्तांतरण के लिए संपदा अधिकारी नियुक्त होते हैं लेकिन ये प्रक्रिया नहीं अपनाई) नीलामी की कार्रवाई विधि संगत नहीं है. इसलिए पहले की गई पूरी कार्रवाई अवैध और शून्य हो जाती है. डिक्री के लिए जिस तथाकथित नीलामी की रसीद को आधार बनाया गया है. उस रसीद में न तो आराजी संख्या लिखी और ना ही उसके संबंध में कोई जानकारी लिखी है. इसलिए रसीद से जमीन नीलाम करना सिद्ध नहीं होता है.
इस रसीद के अलावा नीलामी के और कोई भी दस्तावेज नहीं हैं. नीलामी में लेने के बाद इसका पंजीयन भी नहीं करवाया गया. इसके बावजूद इसकी डिक्री की गई जो भारी भूल है. 1973 में जमीन मिलने के 25 साल बाद जाकर मामला राजस्व न्यायालय में लेकर आए. जिस तरह एसडीएम ने इस मामले में तत्परता दिखाई, उससे सामान्य मन मस्तिष्क में ये अवधारणा आती है कि उन्होनें अनुचित एवं अनैतिक तरीके से निर्णय किया है. एक तरफ 15-20 साल से मामले पेंडिंग हैं. इनमें एक-दो महीने की पेशी दी जाती है, वहीं दूसरी ओर एक साल से भी कम समय में बिना विधिक प्रक्रिया के निर्णय दिया जो पीठासीन अधिकारी की निष्पक्षता पर प्रश्न चिह्न लगाता है. इसलिए ये निर्णय निरस्त किया जाना चाहिए.
शिकायत के बाद जिला प्रशासन की ओर से भी एक उच्च अधिकारी से इस मामले की जांच करवाई गई. 23 जून की जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जमीन की डिक्री 25 नवंबर 2019 को होने के बाद 14 दिन में 9 दिसंबर 2019 को जमीन का पंजीयन कर दिया गया जबकि अपील के निर्धारित दिन के नियम का पालना करना चाहिए था. इस डिक्री का नामांतरण नहीं होने और जमाबंदी में खातेदारी का अंकन नहीं होने के बावजूद जमीन का पंजीयन कर दिया गया.
विक्रय पत्र के अनुसार भूमि की कीमत 23 लाख 82 हजार 600 रुपए थी और ये जमीन पेराफेरी क्षेत्र में थी. इसका मौका मुआयना करना आवश्यक था, लेकिन नहीं देखा गया. अजीत सिंह के पास तहसीलदार का अतिरिक्त चार्ज था. उन्होनें एसडीएम को बतौर तहसीलदार जवाब भी पेश किया. उन्हें इस मामले की जानकारी थी इसके बावजूद पंजीयन कर दिया. इस जमीन के मामले में विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव भी लगा है. इसके बाद 20 सितंबर को राजस्व विभाग ने कलेक्टर से इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है.
2008 में भी रजिस्ट्री हो चुकी इस जमीन की, ये दूसरी बार पंजीयन किया आराजी नंबर 2011 की जमीन को विक्रय पत्र के जरिए जरिना बेगम को पहले भी बेचा जा चुका है. इसकी 30 जून 2008 को रजिस्ट्री भी हो चुकी है. इसका जानकारी जिल्द संख्या 34, पेज 45 पर क्रम संख्या 2008006645 पर दर्ज है. अब दूसरी बार इस जमीन का 9 दिसंबर 2019 को फिर पंजीयन हुआ है जो जिल्द संख्या 578 के पेज नंबर 47 और क्रम संख्या 201903026115593 पर अंकित है.
पहला पंजीयन खारिज किए बिना ही इस जमीन का दूसरी बार पंजीयन कर दिया गया. इस संबंध में तत्कालीन उपपंजीयन अजीत सिंह ने कहा कि उन्होंने इस जमीन का पंजीयन एसडीएम की डिक्री के आधार पर किया था, हालांकि तहसीलदार की ओर से अपील करने के बाद नामांतरण रोक दिया गया और अभी जमीन पाकिस्तान में रह रहे व्यक्ति के ही नाम है.
रिपोर्टर- दिलशाद खान