Rajasthan Election : कभी ढूंढने पर भी नहीं मिलता था उम्मीदवार, आज सत्ता लहर के साथ जाती है मारवाड़ की ये सीट
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Rajasthan Election : कभी ढूंढने पर भी नहीं मिलता था उम्मीदवार, आज सत्ता लहर के साथ जाती है मारवाड़ की ये सीट

Sheo (Shiv) Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान के सरहदी इलाके बाड़मेर की शिव विधानसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है, कांग्रेस के अमिन खान ने यहां से पांच बार जीत हांसिल की है, 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले जान लें यहां का इतिहास

Rajasthan Election : कभी ढूंढने पर भी नहीं मिलता था उम्मीदवार, आज सत्ता लहर के साथ जाती है मारवाड़ की ये सीट

Sheo (Shiv) Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान का सुदूर सरहदी विधानसभा क्षेत्र शिव चुनावी लिहाज से बेहद दिलचस्प रहा है. यहां जीत और हार कभी सिर्फ 9 मतों से तय हुई तो कभी यह आंकड़ा 32 हजार तक भी पहुंचा. यह ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां किसी जमाने में सियासी दलों को उम्मीदवार तक नहीं मिलते थे, जबरदस्ती घरों से उठाकर नेताओं से पर्चा भरवाया जाता था, लेकिन आज यह क्षेत्र सियासी तौर पर बेहद अहम हो गया है. पिछले तीन दशकों में यहां कोई भी पार्टी रिपीट नहीं हो पाई है. 1977 के बाद से ही यहां कभी कांग्रेस तो कभी अन्य दल (भाजपा-जनता पार्टी) जीतती आई है, जबकि 1993 के बाद से यहां एक बार कांग्रेस एक बार बीजेपी जीते का रिवाज रहा है. हालांकि कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक अमीन खान यहां से पांच बार विधायक रह चुके हैं, अमीन खान ने 1980 में पहली बार विधायकी हासिल की थी. 

शिव विधानसभा क्षेत्र का जातिय गणित

शिव विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों की है, जबकि इसके बाद रवाना राजपूतों का सबसे ज्यादा दबदबा है. हालांकि यहां बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के भी मतदाता है. साथ ही जाट, प्रजापत, चारण और पुरोहित मतदाता भी यहां अच्छा वजूद रखते हैं. तकरीबन 500 गांव वाले शिव विधानसभा क्षेत्र में 1967 से लेकर अब तक कुल 12 विधानसभा चुनाव में 7 बार कांग्रेस, दो बार जनता पार्टी और तीन बार भाजपा विजय रही है.

शिव विधानसभा का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1967 

1967 में शिव विधानसभा पहली बार अस्तित्व में आया. यहां के 21888 मतदाताओं ने अपने पहले विधायक के रुप में हुकम सिंह को 2229 मतों से विजयी बनाया. कांग्रेस के हुकुम सिंह के सामने स्वतंत्र पार्टी के कान सिंह ने चुनाव लड़ा था, उन्हें महज 9335 मत मिले थे.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1972

1972 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से हुकुम सिंह ने ताल ठोकी, जबकि सामने एक बार फिर स्वतंत्र पार्टी के कान सिंह मैदान में थे. यह चुनाव इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. हुकुम सिंह ने कान पर महज रिकार्ड 9 मतों से जीत हासिल की थी, जहां हुकुम सिंह को 9376 वोट मिले तो वहीं कान सिंह को 9367 मत मिले. यह आज भी सबसे कम मतों से जीत का रिकॉर्ड है.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1977

स्वतंत्र पार्टी से दो बार चुनाव लड़ कर हार का सामना करने वाले कान सिंह ने 1977 में जनता पार्टी से चुनाव लड़ कर जीत का स्वाद चखा. कान सिंह के सामने कांग्रेस के तगाराम चौधरी थे, हालांकि यहां भी जीत का अंतर बेहद बड़ा नहीं था. जहां कान सिंह को 12680 मत मिले तो वहीं तगाराम को 12155 वोट मिले, यानी जनता पार्टी के कान सिंह ने 525 मतों से जीत हासिल की.

चौथा विधानसभा चुनाव 1980

1980 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुए, जहां से पहली बार अमीन खान चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उनके सामने शोभ सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर थे, तो वहीं जनता पार्टी की ओर से सवाई सिंह मैदान में थे, चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो चला था. इस चुनाव में अमीन खान 16700 वोट पाए तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक रहे शोभ सिंह को 11731 मत मिले, जबकि जनता पार्टी की ओर से चुनाव लड़ रहे सवाई सिंह को 9141 मत मिले. इस चुनाव में 4969 मतों से जीत हासिल कर अमीन खान पहली बार विधायक बने.

पांचवा विधानसभा चुनाव 1985

इसके 5 साल बाद 1985 में एक बार विधानसभा चुनाव हुए. इस विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायक अमीन खान के सामने जनता पार्टी के उम्मीदवार उमेद सिंह ताल ठोक रहे थे. इस बार शिव की जनता ने उमेद सिंह पर भरोसा जताते हुए उन्हें 40002 मत दिए जबकि अमीन खान के पक्ष में 28865 वोट पड़े. इस चुनाव में अमीन खान को करारी हार का सामना करना पड़ा.

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छठा विधानसभा चुनाव 1990

पिछला चुनाव हार चुके अमीन खान ने एक बार फिर कांग्रेस की ओर से चुनावी ताल ठोकी तो वहीं सामने जनता दल के हरि सिंह थे, इस चुनाव में अमीन खान के पक्ष में 38756 वोट पड़े. तो वहीं जनता दल के हरि सिंह को 34169 वोट मिले.

सातवां विधानसभा चुनाव 1993

हालांकि 3 साल बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में अमीन खान को हार का मुंह देखना पड़ा. इस चुनाव में पहली बार भाजपा चुनावी मैदान में ताल ठोक रही थी, भाजपा की ओर से हरि सिंह को जनता ने 45881 वोट दिए तो वहीं अमीन खान के खाते में 41739 वोट आए. इस चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार हरि सिंह विजयी हुए.

आठवां विधानसभा चुनाव 1998 

1998 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर अमीन खान चुनावी मैदान में थे, जबकि उनका मुकाबला सामने भाजपा के मौजूदा विधायक हरि सिंह से था. इस चुनाव में अमीन खान के पक्ष में 64552 वोट पड़े तो वहीं भाजपा के हरि सिंह 45235 मत मिले. इस चुनाव में अमीन खान तीसरी बार विधायक बनकर विधानसभा की चौखट पर पहुंचे.

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नौवां विधानसभा चुनाव 1998 

इस चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए जालम सिंह को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक अमीन खान पर भरोसा जताया. इस चुनाव में जालम सिंह के पक्ष में 72526 वोट पड़े तो वहीं अमीन खान को हार का मुंह देखते हुए 61529 मतों से संतुष्ट होना पड़ा.

दसवां विधानसभा चुनाव 2008 

इस चुनाव में भाजपा की ओर से उनके मौजूदा विधायक जालम सिंह चुनावी मैदान में थे, उनके सामने कांग्रेस ने एक बार फिर अमीन खान को उतारा.उनके पक्ष में 75787 वोट पड़े. जालम सिंह के पक्ष में 45927 वोट पड़े. जनता ने जालम सिंह को सिरे से नकार दिया.

ग्यारवां विधानसभा चुनाव 2013 

विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से भाजपा के संस्थापक सदस्य जसवंत सिंह जसोल के पुत्र मानवेंद्र सिंह थे, सामने एक बार कांग्रेस ने अपने विधायक अमीन खान को उतारा. इस चुनाव में मानवेंद्र सिंह ने अमीन खान जबरदस्त चुनौती दी और मानवेंद्र सिंह ने अमीन खान को रिकॉर्ड 31,425 हरा दिया.

बारहवां विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव आते आते ना सिर्फ राजस्थान बल्कि शिव में भी सियासी समीकरण बदल चुके थे, भाजपा की ओर से विधायक रहे मानवेंद्र सिंह इस बार कमल का फूल हमारी भूल का नारा लगाते हुए हुए कांग्रेस के पक्ष में थे. यहां से एक बार फिर कांग्रेस ने अपने पुराने सिपाही अमीन खान पर ही विश्वास जताया, जबकि भाजपा इस चुनाव में खंगार सिंह सोधा के रूप में एक नए उम्मीदवार को लेकर सामने आई. इस चुनाव में अमीन खान ने एक बार फिर रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की. अमीन  खान के पक्ष में 84338 वोट पड़े तो वहीं बीजेपी के खंगार सिंह सोधा के पक्ष में 60,784 मत पड़े. इस चुनाव में अमीन खान ने जीत हासिल करके रिकॉर्ड पांचवी बार विधायकी अपने नाम करने का इतिहास कायम किया.

खासियत

सबसे बड़ी खासियत यह है कि शिव पुरुष प्रधान विधानसभा क्षेत्र भी कहलाता है, शिव के इतिहास में आज तक सिर्फ एक महिला उम्मीदवार गोमती देवी ने चुनावी ताल ठोकी है, हालांकि उन्हें महज 330 वोट मिले थे, जबकि अब तक यहां एक भी महिला विधायक नहीं चुनी गई है, शिव विधानसभा क्षेत्र का इतिहास कहता है कि यहां विधायक लगातार दो बार जीत हासिल नहीं कर पाते हैं, हालांकि अमीन खान 5 बार शिव से विधायक बने लेकिन वह कभी भी लगातार दो बार जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सके.  सिर्फ शिव के पहले विधायक हुकुम सिंह यह कारनामा कर चुके हैं.

सबसे बड़ी जीत-हार

शिव विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी जीत मानवेंद्र सिंह ने साल 2013 में हासिल की थी, जिसमें उन्हें 31425 मतों के अंतर से जीत मिली थी जबकि इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे छोटी जीत हुकुम सिंह के नाम रही, जिन्होंने महज 9 मतों से जीत हासिल की थी.

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